असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य एवं कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। सितम्बर 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कलकत्ता में आयोजित किया गया। इस अधिवेश
असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य एवं कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर - सितम्बर 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कलकत्ता में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पंजाब और खिलाफत के मुद्दे को हल किये जाने तथा स्वराज्य की स्थापना होने तक असहयोग आन्दोलन चलाने की स्वीकृति प्रदान की। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने निम्न उद्देश्य एवं कार्यक्रम तय किये -
असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य एवं कार्यक्रम
- सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार।
- न्यायालयों का बहिष्कार तथा पंचायतों के माध्यम से न्याय का कार्य।
- विधान परिषदों का बहिष्कार (यद्यपि इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेताओं में मतभेद थे तथा वे इस कार्यक्रम को असहयोग आन्दोलन में शामिल किये जाने का विरोध कर रहे थे। विरोध करने वालों में प्रमुख नाम सी.आर. दास का था।)
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा इसके स्थान पर खादी के उपयोग को बढ़ावा। चरखा कातने को भी प्रोत्साहन दिया गया।
- सरकारी उपाधियों एवं अवैतनिक.पदों का परित्याग, सरकारी सेवाओं का परित्याग, सरकारी करों का भुगतान न करना, सरकारी तथा अर्द्धसरकारी उत्सवों का परित्याग तथा सैनिक, मजदूर व क्लर्कों का मेसोपोटामिया में कार्य करने के लिए न जाना।
- एकता को प्रोत्साहित करने तथा अस्पृश्यता को दूर करने का सराहनीय प्रयास किया। पूरे कार्यक्रम में अहिंसा को सर्वोपरि रखा गया।
दिसम्बर 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ, इस अधिवेशन में -
- असहयोग कार्यक्रम का अनुमोदन कर दिया गया।
- कांग्रेस के सिद्धान्त प्राप्ति के अपने लक्ष्य के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्यायोचित तरीके से स्वराज्य प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया। इस प्रकार कांग्रेस ने संवैधानिक दायरे के बाहर जनसंघर्ष की अवधारणा स्वीकार किया।
- कुछ महत्वपूर्ण संगठनात्मक परिवर्तन भी किये गये। अब कांग्रेस के प्रतिदिन के कार्यकलापों को देखने के लिए 15 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति गठित की गई। स्थानीय स्तर पर कार्यक्रमों के वास्तविक क्रियान्वयन के लिए भाषाई आधार पर प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का गठन किया गया। गाँवों और कस्बों में भी कांग्रेस समितियों का गठन किया गया। सदस्यता फीस चार आना साल कर दिया गया।
- गाँधी जी ने घोषणा की कि यदि पूरी तन्मयता से असहयोग आन्दोलन चलाया गया तो एक वर्ष के भीतर स्वराज्य का लक्ष्य प्राप्त हो जायेगा।
क्रान्तिकारी आतंकवादियों के कई संगठनों मुख्यतया बंगाल के क्रान्तिकारी सगठनों ने कांग्रेस के कार्यक्रम को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। किन्तु इसी समय मो. अली जिन्ना, एनीबेसेन्ट, जी.एस. कापर्डे एवं बी.सी: पाल ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि वे संवैधानिक एवं न्यायपूर्ण ढंग से संघर्ष चलाये जाने के पक्षधर थे। जबकि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 'इण्डियन नेशनल लिबरल फेडरेशन' का गठन कर लिया तथा इसके पश्चात् राष्ट्रीय राजनीति में उनका योगदान नाममात्र का रह गया।
कांग्रेस द्वारा असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम का अनुमोदन करने तथा खिलाफत कमेटी द्वारा इसे पूर्ण समर्थन दिये जाने की घोषणा से इसमें नई ऊर्जा का संचार हो गया। इसके पश्चात् वर्ष 1921 और 1922 में पूरे देश में इसे अप्रत्याशित लोकप्रियता मिली।
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