राज्य मंत्रिपरिषद के गठन, कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
राज्य की मंत्रिपरिषद का गठन शक्तियाँ व कार्य
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यों में संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल को परामर्श तथा सहायता देने के उद्देश्य से एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा। राज्य की वास्तविक कार्यपालिका (Real Executive) मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद होगी।
राज्य मंत्रिपरिषद का संगठन, अथवा निर्माण (Formation of Council ot Ministers)
भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य मंत्रिपरिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होता है जिसकी नियुक्ति राज्यपाल करता है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है जबकि सैद्धान्तिक रूप में यह राज्यपाल का मात्र औपचारिक अधिकार ही है क्योंकि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति में पूरी तरह से स्वतन्त्र नहीं है वह विधानसभा में बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के लिए बाध्य होता है।
मंत्रिपरिषद का कार्यकाल
यद्यपि संविधान में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि मंत्रिपरिषद के सदस्य अपने पदों पर राज्यपाल के प्रासादपर्यन्त तक रह सकेंगे, परन्तु यह संविधान का उपबन्ध औपचारिकता मात्र ही है। व्यवहार में मंत्रिपरिषद अपने शासन सम्बन्धी कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है तथा सामान्यतया उसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परन्तु केन्द्र की भाँति राज्यों में भी मंत्रिपरिषद उसी समय तक अपने पद पर रह सकती है जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त है।
मंत्रियों की श्रेणी - केन्द्र की भाँति राज्यों में भी मंत्रियों के तीन स्तर हैं :-
- कैबिनेट मंत्री
- राज्यमंत्री
- उपमंत्री।
इनके अतिरिक्त संसदीय सचिव भी नियुक्त किए जा सकते हैं।
मंत्रिपरिषद की शक्तियाँ और कार्य
राज्यों की 'मंत्रिपरिषदों के प्रमुख कार्य और शक्तियाँ निम्नलिखित हैं -
- राज्य का प्रशासन चलाने के लिए नीतियों का निर्धारण करना,
- राज्य विधानमण्डल में विधेयक पेश करना और उसे पारित करना,
- राज्य के प्रशासन पर नियन्त्रण रखना,
- वार्षिक बजट पेश करना और उसे पारित करना,
- कानूनों को लागू करना तथा व्यवस्था को बनाए रखना।
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