शिक्षा का अर्थ परिभाषा उद्देश्य एवं कार्य बताइए

शिक्षा का अर्थ परिभाषा उद्देश्य एवं कार्य: शिक्षा 'Education' का अर्थ बहुत विशाल है। प्रत्येक काल में समाज की आवश्यकता अनुसार एक निश्चित शिक्षा प्रणाल

शिक्षा का अर्थ परिभाषा उद्देश्य एवं कार्य बताइए 

शिक्षा 'Education' का अर्थ बहुत विशाल है। प्रत्येक काल में समाज की आवश्यकता अनुसार एक निश्चित शिक्षा प्रणाली का निर्माण किया जाता यही कारण है कि शिक्षा की भिन्न परिभाषाएं प्रस्तुत की गई हैं । दर्शनशास्त्री, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, अध्यापक, औद्योगिक तथा साधारण व्यक्ति सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण से तथा अपनी समझ के अनुसार शिक्षा की परिभाषा दी है।

शिक्षा शब्द की परिभाषा (Definition of Education in Hindi

प्लेटो के अनुसार- "आधुनिक ज्ञान के जन्मदाता प्लेटो के अनुसार “मेरे विचार में वह प्रशिक्षण ही शिक्षा कहलाती है जो सही आदतों के निर्माण द्वारा बच्चे की आरम्भिक मनोवृत्तियों को प्रदान की जाती है तथा जो आपको जीवन के आरम्भ से लेकर अन्त तक उन बातों से घृणा सिखाती है जिनसे घृणा करनी चाहिए तथा उन बातों से प्रेम करना सिखाती है जिनसे प्रेम करना चाहिए।

अरस्तु के अनुसार - "आरोग्य शरीर में आरोग्य आत्मा का विकास करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है । यह मनुष्य की योग्यता - विशेषतया मानसिक योग्यता का विकास करती है।"

पैस्टालोजी ने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार देने का यत्न किया है। उनके अनुसार "शिक्षा मनुष्य की भीतरी शक्तियों की प्राकृतिक, सर्वपक्षीय तथा विकासमयी प्रगति है।"

टी.पी.नन - "शिक्षा बच्चे के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, जिसके द्वारा वह अपनी समस्त सुयोग्य समर्थानुसार मानवीय जीवन को अपनी मौलिक देन दे सके।"

(x) रैडिन द्वारा शिक्षा की परिभाषा - "शिक्षा वह प्रभाव है जो एक परिपक्व व्यक्ति सोच-समझ कर नियमित ढंग से बच्चे पर डालता है। यह प्रभाव व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुसार उपदेश, अनुशासन तथा व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, सहजात्मक सामाजिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों के एकसार विकास द्वारा पाया जाता है। इस प्रभाव का अन्तिम उद्देश्य है बच्चे का सृष्टिकर्ता (ईश्वर) से एक स्वर हो जाना।

शिक्षा का विशाल अर्थ (broader Meaning)

शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह गर्भ से आरम्भ होकर मृत्यु तक चलती रहती है । व्यक्ति का ज्ञान हमेशा बढ़ता रहता है। जैसे-जैसे उसके अनुभव बढ़ते रहते हैं, उसका ज्ञान भी बढ़ता रहता है। डॉ. एस राधाकृष्णन के शब्दों में “शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने तथा कुशलताओं के प्रशिक्षण देने तक सीमित नहीं। इसके द्वारा शिक्षित व्यक्तियों में सांस्कृतिक मूल्यों के बारे में उचित समझ उत्पन्न होनी चाहिए।"

संकुचित अर्थ में शिक्षा को स्कूल कॉलेज में दिए गए निर्देशों के समतुल्य समझा जाता है। इसमें बालक में 'विशिष्ट प्रभाव' शैक्षिक संस्था में विकास के लिए निर्मित किए जाते हैं। यहाँ विद्यालय से आशय किंडरगार्डन से लेकर विश्वविद्यालय तक की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था से है। इसकी शुरूआत विद्यालय से प्रवेश से लेकर विश्वविद्यालय से निकलने पर पूर्ण समझी जाती है इसका आकलन प्राप्त डिग्री डिप्लोमा, सर्टिफिकेट इत्यादि से किया जाता है। विद्यालय औपचारिक शिक्षा के साधन है जहाँ बालक को प्रत्यक्ष एवं क्रमबद्ध शिक्षा प्रदान की जाती है।

शिक्षा का सीमित अर्थ (Narrow Meaning of Education)

अपने सीमित अर्थों में शिक्षा में वह विशेष प्रभाव सम्मिलित है जो विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये बच्चे पर पाये जाते हैं । यह यूनिवर्सिटी और स्कूल की पढ़ाई तक सीमित है। इस दृष्टिकोण के अनुसार बच्चे की शिक्षा तब आरम्भ होती है जब वह स्कूल में प्रवेश करता है तथा पढ़ाई का विशेष कोर्स समाप्त करने के पश्चात उसकी शिक्षा समाप्त हो जाती है।

1. “शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है और जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भण्डार में वृद्धि होती है" - एस०एस० मैकेन्जी

2. “जीवन ही शिक्षा है और शिक्षा ही जीवन है।" - लाज

3. “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बच्चे और मनुष्य का अर्थात उनके शरीर, मन तथा आत्मा का सर्वोत्तम सर्वोन्मुखी विकास करना है।" - महात्मा गाँधी 

दोनों दृष्टिकोणों का सुमेल (Synthesis of two meanings)- शिक्षा में बच्चे का सुधार तथा उसके व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ ज्ञान तथा कौशल होना आवश्यक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शिक्षा स्कूल एवं पढ़ाई तक सीमित नहीं, परन्तु यह भी सत्य है कि स्कूल तथा पढ़ाई अत्यधिक आवश्यक है इसलिये परिणाम स्वरूप हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा में वह ज्ञान, कला तथा दृष्टिकोण सम्मिलित हैं जिनको प्राप्त कर मनुष्य स्वयं को स्वस्थ रख सके । आर्थिक रूप से स्वयं को सुरक्षित रख सके और जीवन में उचित आनन्द प्राप्त कर सके।

शिक्षा का वास्तविक अर्थ (True Meaning of Education)

अभी तक शिक्षा को औपचारिक व अनौपचारिक तरीकों से विश्लेषित किया गया है औपचारिक या संकुचित अर्थ में शिक्षा एक औपचारिक रूढ़िवादी प्रक्रिया है जो बालक को विद्यालय में दी जाती है। व्यापक या अनौपचारिक अर्थ में शिक्षा एक अस्पष्ट प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य स्वच्छंद क्रियाओं को करने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करना है। ये दोनों ही प्रक्रियाएँ दो चरम बिंदुओं को महत्व देती हैं। अतः एक ऐसी प्रक्रिया है, जो मानव की जन्मजात शक्तियों के स्वाभाविक और सामंजस्यपूर्ण विकास में योगदान देती हैं, उसकी वैयक्तिकता का पूर्ण विकास करती है, उसे अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में सहायता देती है, उसे जीवन और नागरिकता के कर्तव्यों और दायित्वों के लिए तैयार करती है और उसके व्यवहार, विचार और दृष्टिकोण में ऐसा परिवर्तन करती है जो समाज, देश और विश्व के लिए हितकर होता है।"

शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ (Analytical Meaning of Education)

शिक्षा के अर्थ की और अधिक व्याख्या करने के लिए उसके विभिन्न तत्वों का वर्णन इस प्रकार है-

1. विद्यालय में दिए जाने वाले ज्ञान तक सीमित नहीं है - यह एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें मानव के सभी पक्षों को सम्मलित किया जाता है । वह अपने अनुभवों एवं क्रियाओं के द्वारा कुछ न कुछ सीखता रहता है।

2. शिक्षा बालक की जन्मजात शक्तियों के प्रकटीकरण के रूप में - बालक को ऐसे वातावरण में तैयार करना है जिसमें उसकी अर्न्तनिहित शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास हो सके, वे पोषित हो सकें।

इसायल शैफलर के अनुसार - " उच्चतम स्वानुभूति ही शिक्षा है। वह व्यक्ति की क्षमताओं का सम्पूर्ण उपयोग है । वह व्यक्ति को उसकी क्षमताओं के विषय में पूर्ण संतोष प्रदान करती है अर्थात व्यक्ति वह बन जाता है जो कुछ वह बन सकता था।" 

3. शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में - शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। यह समय, स्थान, आवश्यकताओं, परिस्थितियों तथा समस्याओं के अनुसार बदलती रहती है।

4. शिक्षा त्रिधुवीय प्रक्रिया के रूप में - जॉन ड्यूवी ने शिक्षा को विकास की प्रक्रिया माना है। ड्यूवी के अनुसार शिक्षा के दो तत्व हैं 1. मनोवैज्ञानिक 2. सामाजिक। उन्होंने कहा कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा बालक में उन आधारभूत गुणों, क्षमताओं का विकास किया जा सकता है, जो कि उसकी व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हो। अतः शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो बालक की क्षमता एवं आवश्यकता के अनुसार उसमें गुणों का विकास करती है।

शिक्षा की इस प्रक्रिया के तीन प्रमुख तत्व हैं। ये हैं-

  1. शिक्षार्थी अर्थात जिसे शिक्षा प्राप्त करनी है।
  2. अध्यापक अर्थात जिसे छात्र को शिक्षा प्रदान करनी है।
  3. सामाजिक संरचना अर्थात वह सामाजिक- सांस्कृतिक परिवेश जिसमें शिक्षा प्रदान की जानी हैं जैसे- देश, काल, भाषा इत्यादि।

शिक्षा की यह प्रक्रिया त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहलाती है।

शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education in Hindi)

शिक्षा के माध्यम से किसी उद्देश्य की प्राप्ति को शिक्षा का ध्येय कहा जा सकता है। यह अमूर्त अर्थात् दिखाई नहीं देता और आदर्श का द्योतक है। स्वामी दयानंद के अनुसार "शिक्षा का मूल उद्देश्य चरित्र का विकास कर व्यक्ति को उदारता की ओर ले जाना है।"

सेकेंडरों एजूकेशन कमीशन (1952-53) ने भारत में शिक्षा के चार उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया है।

  1. प्रजातंत्रात्मक नागरिकता का विकास
  2. व्यवसायिक कार्यक्षमता में सुधार
  3. व्यक्तित्व का विकास
  4. नेतृत्व क्षमता का विकास

विभिन्न दार्शनिकों व शिक्षाविदों के मत पर विचार के बाद यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सुव्यवस्थित एवं सर्वांगीण विकास करना है। 

शिक्षा के कार्य (Shiksha ke Karya)

शिक्षा का मुख्य कार्य बालक को पढ़ाना या बताना नहीं बल्कि विकसित करना है। शिक्षा के कार्यों को हम सीधे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं।

  1. बच्चों में ज्ञान, कौशलों, गुणों तथा अभिवृत्तियों का विकास कर आत्म सहायक (self supportive) तथा उत्पादक (productive) नागरिक तैयार करना है।
  2. बच्चों में आत्मिक बल व चरित्र विकास के लिए आचरण व नैतिक मूल्यों का विकास करना।
  3. शिक्षा बालक के व्यक्तित्व को विकसित कर उसे वयस्क जीवन के लिए तैयार करती है 
  4. शिक्षा व्यक्ति को वातावरण के साथ समायोजन कर वातावरण को परिवर्तन योग्य बनाती है 
  5. आदर्श स्वास्थ्य के लिये शारीरिक विकास करना। 
  6. विवेकपूर्ण तर्क शक्ति के लिए बच्चों में बौद्धिक विकास करना।
  7. शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यक्ति को अपना जीवन-यापन कर पाने में सक्षम बनाना है।
  8. आध्यात्मिक एवं सौंदर्यात्मक विकास के लिए करना।

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