चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
चुनाव सुधार (Election Reforms)
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव एक स्वस्थ लोकतंत्र के अस्तित्व की पूर्व शर्त हैं। इसके अभाव में लोगों में आस्था समाप्त हो जाती है। मोहन धारिया के अनुसार, "वर्तमान निर्वाचन व्यवस्था, जो काले धन, जातिवाद प्रशासकीय मशीनरी के दुरुपयोग तथा बूथ कैप्चरिंग पर आधारित है, बड़ी तेजी से स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन में जनमानस की आस्था को समाप्त कर रही है।" यह तो सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई है परन्तु इसके साथ ही इस प्रक्रिया में अनेक विसंगतियाँ भी स्पष्ट हुई हैं। निर्वाचन में धन एवं बाहुबल के बढ़ते प्रभाव ने स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन के समक्ष प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
चुनाव से सम्बंधित व्याधियों की विवेचना तथा चुनाव सुधार का विषय पिछले कुछ वर्षों से संसद एवं देश के प्रबुद्ध वर्ग का ध्यान आकर्षित करता रहा है। अनेक पक्षों द्वारा इस सम्बन्ध में अध्ययन कर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गयी है। इन अध्ययनकर्ताओं में सबसे प्रमुख हैं - 'सिटिजन फॉर डेमोक्रेसी' नामक संगठन की ओर से जयप्रकाश नारायण द्वारा नियुक्त 'वारकुण्डे समिति'। इसी प्रकार 1972 में 'संयुक्त संसदीय समिति' ने अपने सुझाव दिये तथा अप्रैल 1975 में 'आठ दलीय स्मरण पत्र' प्रस्तुत किया गया।
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