चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
चुनाव सुधारों में आने वाली बाधाएँ
2 मई 2002 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में निर्वाचन आयोग द्वारा जारी 20 जून के निर्देश को लगभग सभी राजनीतिक दलों ने यह कहकर खारिज कर दिया कि कानून बनाने का अधिकार संसद को है, किन्तु यह बात भी किसी से छपी नहीं है कि पिछले 50 वर्षों में राजनीतिक भ्रष्टाचार और अपराधीकरण रोकने में संसद विफल रही है।
चुनावी राजनीति में धन तथा बाहुबल के बढ़ते प्रभाव को रोकने की माँग काफी समय से उठाई जा रही है, किन्तु इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही करने से सरकारें बचती रही हैं। कई बार अपराधी छवि तथा अपराधी प्रकृति वाले लोग राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर संसद तथा विधानमण्डलों तक पहुँचते हैं वर्तमान में भी इनकी संख्या कुछ कम नहीं है। जब राजनीतिक दल ही ऐसा करेंगे तो इन्हें रोकेगा कौन ? यद्यपि न्यायालय तथा निर्वाचन आयोग द्वारा यदि कोई प्रयास इस तरह का किया जाता है तो संसद में वैसे इन्हीं राजनीतिक दलों के सांसद इस तरह के प्रयासों को बहुमत से अस्वीकार कर देते हैं। इससे राजनीतिक दलों के दोहरे मापदण्ड ही उजागर होते हैं। यही कारण था कि दिनेश गोस्वामी तथा इन्द्र जीत गुप्त की अध्यक्षता वाली समितियों की सिफारिशें लागू नहीं हो सकी थीं।
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