भारत सरकार अधिनियम 1935 के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति: भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुसार केन्द्र में गवर्नर जनरल ही समस्त संविधान का केन्द्र बिन्दु थ
1935 भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
भारत सरकार अधिनियम 1935 के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति
भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुसार केन्द्र में गवर्नर जनरल ही समस्त संविधान का केन्द्र बिन्दु था। वह भिन्न-भिन्न विरोधी तत्त्वों को सूत्र में बाँधने वाला तथा उन्हें दिशा दिखाने वाला व्यक्ति था परन्तु उसे निम्नलिखित भूमिका निभानी पड़ी और इन्हीं भूमिका के आधार पर इसकी शक्तियों की महत्त्वता व स्थिति को भी दर्शाया गया -
- उसे प्रायः मन्त्रियों के परामर्श से ही कार्य करना होता था।
- अपने व्यक्तिगत निर्णय-जिसमें वह परामर्श को स्वीकार करे अथवा न करे, से भी कार्य कर सकता था। जिन विषयों में वह व्यक्तिगत निर्णय ले सकता था वे निम्न हैं -
- देश की वित्तीय स्थिरता और भारतीय साख की रक्षा करना।
- भारत अथवा उसके किसी भाग की शक्ति की रक्षा करना।
- अल्पसंख्यकों, सरकारी सेवकों व उनके आश्रितों के हितों की रक्षा करना।
- अंग्रेजी व बर्मी माल के विरुद्ध किसी भी भेदभाव से रक्षा करना।
- भारतीय राजाओं के हितों व प्रतिष्ठा की रक्षा करना।
- अपने निजी विवेकाधीन शक्तियों की रक्षा करना आदि।
- तीसरी भमिका में कुछ विषयों में वह अपने मन्त्रियों को पछे बिना अपने विवेकाधीन शक्तियों से कोई भी कार्य कर सकता था। ये विषय थे -
- रक्षा, विदेशी मामले, धार्मिक मामले तथा जनजाति क्षेत्र जिसके लिए उसे अधिकाधिक 3 कार्यकारी पार्षद नियुक्त करने थे।
- मन्त्रिपरिषद् की नियुक्ति तथा भंग करना।
- अपने अधिनियम बनाने तथा अध्यादेश जारी करने की शक्ति।
- क्षमतापेक्षी पदों का नियंत्रण जो कि बजट का लगभग 80 प्रतिशत भाग थी।
- गर्वनरों का आदेश जो कि उनके उत्तरदायित्व थे।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक, विधान मण्डल को दिया जाने वाला भाषाण अथवा उसको विधेयक के विषय में संदेश भेजना।
- विशेष प्रकार के विधेयक पर अपनी तथा प्रान्तीय विधान मण्डलों में प्रस्तुत करने से पूर्व स्वीकृत्ति प्रदान करना अथवा किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति प्रदान न करके उसे महामहिम सम्राट की स्वीकृति के लिए भेजना इत्यादि।
इन विशेष विभागों तथा आरक्षणों, जो कि बहुत अधिक थे, के अतिरिक्त सभी विभागों का प्रशासन उसे अपने मन्त्रियो के परामर्श व सहायक से ही चलाना था, परन्तु फिर भी वह अपने निजी निर्णय से किसी भी मामले में मन्त्रियों के परामर्श को मानने से मना भी कर सकता था। मन्त्रियों को उसी की इच्छा से उसी पद पर बना रहना था।
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