अध्ययन का आनंद पर लेख तथा निबंध Essay on Pleasure of Learning in Hindi अध्ययन का आनंद पर लेख तथा निबंध : आनन्द की साधना को भारतीय , संस...
अध्ययन का आनंद पर लेख तथा निबंध Essay on Pleasure of Learning in Hindi
अध्ययन का आनंद पर लेख तथा निबंध : आनन्द की साधना को भारतीय, संस्कृति का मूल तत्त्व माना गया है। भारतीय दृष्टि से जीवन के प्रत्येक कार्य में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में आनन्द का
भाव सन्निहित रहा करता है। इस दष्टि से हम कुछ सीखने के लिए
पुस्तकों का साथ नहीं ढूंढ़ते, आनन्द के लिए भी हम उनका अध्ययन करते हैं। कुछ लोग मात्र मनोरंजन के लिए भी
पुस्तकें पढ़ते हैं। ये लोग पढ़ते हैं ऐसी कथा और कहानियाँ जो आज नयी हैं और कल
बासी पड़ जाती है। सच्चा और शाश्वत तत्त्वों में समन्वित साहित्य ऐसा आनन्द देता है
जिसे लोकोत्तर कहा जाता है। उसे सामान्य स्तर पर समझना कठिन है। अपने सत्य और
सौन्दर्य के समन्वय के द्वारा ही साहित्य यह आनन्द देता है।
वस्तुतः अध्ययन का अभिप्राय है स्वयं
पढ़ना। अध्ययन पुस्तक का भी हो सकता है। और अपने आसपास के जीवन का भी। इस प्रकार एक
निरक्षर व्यक्ति भी देख-सनकर, मिल-जुलकर, देश-भ्रमण करके लोगों की सेवा करके, परिस्थितिवश धक्के खाकर, कभी कुछ खोकर, कभी कुछ पाकर दुनिया का अध्ययन कर
सकता है। निश्चय ही यह जीवन का व्यावहारिक अध्ययन है। इसमें भी आनन्द आता है और
इसके द्वारा भी कबीर जैसा मनुष्य ज्ञान का पण्डित और महाकवि बन सकता है। किन्तु यह
सौदा सस्ता न होकर बहुत महँगा हुआ करता है।
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पुस्तकों का अध्ययन जीवन के अध्ययन से
कहीं सरल और सहज सुलभ होता है। जिन सहस्रों व्यक्तियों ने जीवन का सचमुच साक्षात्
अध्ययन किया है, उन सबका अनुभूत ज्ञान हमें एक ही अच्छी
पुस्तक में एक ही स्थान पर मिल जाता है। फिर भला उनके अध्ययन में हमें सहस्र गुना
आनन्द क्यों न आये? अतएव हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति ने
पुस्तकों की प्रशंसा में कहा था :
"यह बात बिल्कुल ठीक है कि आज का वास्तविक विश्वविद्यालय है पुस्तक। वे हमें जीवन के नये रूप दिखाती हैं, जीने का ढंग सिखाती हैं; दुखियों को सान्त्वना देती हैं; उद्दण्डों को दण्ड देकर सन्मार्ग पर लाती हैं, मों की डाँट-डपट करती हैं एवं बुद्धिमानो को शक्ति देती हैं। पुस्तकें सिखावन देती हैं, सलाह और बढ़ावा देती हैं, झिड़की सुनाती है,किन्तु जितने की आपको आवश्यकता है उतना ही और उससे एक अक्षर भी अधिक नहीं कभी-कभी जब हम अटपटे व मूर्खता-भरे-प्रश्न पूछ बैठते हैं, तो वह रुष्ट नहीं होती। वह मुस्करा भर देती है और चुप्पी साध लेती है। जो लोग एकाकी हैं, उनके लिए पुस्तक सचमुच बड़ी साथिन है। जो सीखना चाहते हैं, उनके लिए वह बेजोड़ गुरु है और आनन्द का अद्वितीय साधन है।"
पुस्तक-अध्ययन के अनेक प्रयोजन, लाभ और आयाम हैं। शारीरिक रूप या व्यक्तिके स्तर पर अकेले होते हुए
भी पुस्तक पढ़ते समय हम अकेले नहीं रहते। पुस्तकों के माध्यम से हम बड़े-बड़े
महापुरुषों, कवियों, लेखकों और दार्शनिकों की संगति में पहुँच जाते हैं। भला जिन लोगों के
दर्शन पाना भी दुर्लभ है, उन्हें अपने साथ घुल-मिलकर बात करते देखकर किसे आनन्द नहीं होगा! आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पुस्तकों के
अध्ययन में इसी अलौकिक आनन्द का अनुभव किया, अत: वे कह उठे-
"अध्ययन के द्वारा हम घर बेठे-बैठे धुरंधर विद्वानों के गंभीर विचारों को जान सकते हैं और संसार के प्राचीन महापुरुषों के सत्संग का लाभ उठा सकते हैं। अध्ययन के द्वारा ज्ञान के स्रोत तक बराबर पहुँच सकते हैं, चाहे ज्ञानदाता जिस स्थान पर हो और जिसमें हआ हो। हम ऐसे-ऐसे कवियों को लिए आराम से बैठे हैं कि जैसे कालिदास, भवभूति, चन्दबरदाई, तुलसी, रहीम। हमारा जब जी चाहता है, तब हम जायसी की कहानी सुनकर अपना समय काटते है, अन्धे सूर के प्रेम और चतुराई से भरे पद सुनकर रसमग्न होते है। कभी कल्पना में चित्रकूट के घाट पर बैठे राम-लक्ष्मण के दर्शन करते हए गोस्वामी तुलसीदास की गम्भीर वाणी से अपने उद्विग्न मन को शांत करते हैं। इसी प्रकार की एक मण्डली जहाँ लगी हुई है, वहाँ और कोई साथी न रहे तो क्या?"
मात्र पढ़ने और अध्ययन करने में भी एक
स्पष्ट अन्तर हआ करता है। मात्र पढ़ना समय गुजारना हो सकता है, अध्ययन नहीं। इसलिए अध्ययन को भी एक कला माना गया है। हमें केवल
क्षण-भर विनोद के लिए ही नहीं पढ़ना चाहिए, अपितु योजना बनाकर विचारपूर्वक पढ़ना श्रेयस्कर होता है। अध्ययन दो
प्रकार का होता है 1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकों का,
2. विशिष्ट ज्ञान की पुस्तकों का। सामान्य
ज्ञान की पुस्तकों में मनोविज्ञान, भाषाशास्त्र, शरीर-विज्ञान, साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा राजनीति आदि विषयों पर
पुस्तक आती है। इनके अध्ययन से पाठक को अनेक विषयों का परिचय मिलता है। तथा उसकी
दृष्टि व्यापक होती है। इनमें से अपने प्रिय विषयों को चुन लेना चाहिए और लेखकों को
चुनना भी आवश्यक है।
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आजकल स्वाध्याय का सर्वोत्तम साधन हैं
समाचार-पत्र। उनसे लोक-प्रगति का सामयिकज्ञान मिलता है। उनको न पढ़ने से मनुष्य
नये युग के साथ नहीं चल सकता। पर स्वाध्यायया अध्ययन केवल समाचार-पत्रों तक ही
सीमित नहीं रखा जा सकता। इससे प्राप्त ज्ञानउथला या ऊपरी मात्र होता है। वास्तविक
लाभ तो मनीषियों के प्रन्थ पढ़ने से सम्भव हुआकरता है। वस्तुत: गंभीर अध्ययन ही
जीवन को कोई नयी और उचित दृष्टि दे पाने मेंसमर्थ हुआ करता है। अध्ययन का वास्तविक
लक्ष्य भी यही होता है। अतः हर स्थिति मेंइस बात का ध्यान आवश्यक है।
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विशिष्ट ज्ञान के लिए हमें अपनी रुचि
को पहचानकर किसी एक विषय को चुनकरउसमें पारंगत बनना चाहिए। इस प्रकार मनुष्य उस
विषय का विशेषज्ञ बन जाता है। आजविशेषज्ञता का युग है; अत: प्रत्येक व्यक्ति को किसी-न-किसी विषय में अवश्य ही विशेषज्ञबनने
का प्रयत्न करना चाहिए। अध्ययन की पहली और अंतिम चरम उपलब्धि इस प्रकारका विशेषता
प्राप्त करना ही मानी जा सकती है। ऐसा होने पर ही अध्ययन वास्तविकआनन्द का स्रोत
बना करता है। तब अध्ययनशील व्यक्ति जीवन-समाज को भी बहत-कुछदे पाने में समर्थ हो
जाया करता है!
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