भारत में जनजातियों के कल्याण के लिए किये गये संवैधानिक प्रावधानों का जनजातियों पर क्या प्रभाव हुआ? जैसा कि हमें ज्ञात है कि सभ्य समाज के चतु...
भारत में जनजातियों के कल्याण के लिए किये गये संवैधानिक प्रावधानों का जनजातियों पर क्या प्रभाव हुआ?
जैसा कि हमें ज्ञात है कि सभ्य समाज के चतुर, होशियार तथा व्यापारी व सदखोरों द्वारा जनजातियों का एक लम्बे समय से शोषण किया जाता है तथा इन पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार जाते रहे हैं. जिसके परिणामस्वरूप इनका विकास रुक गया है किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात उनका शोषण रोकने हेत भारतीय संविधान में जो प्रावधान किये गये, उनके प्रभाव एवं परिणाम समसामयिक परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे हैं। इस बात का पता यहीं से चलता है कि जनजातियों में अपने अधिकारों के प्रति चेतना का विकास हुआ और शिक्षा के प्रति भी इनकी जागरूकता में वृद्धि होती जा रही है। शिक्षण संस्थाओं में होने वाली वृद्धि इस बात का द्योतक है कि इनमें शिक्षा के प्रति अधिक लगाव होता रहा है। संकलित आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि शासकीय सेवाओं में जनजातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा है। भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं भारतीय पुलिस सेवा में भी इनकी संख्या बढती जा रही है।
जनजातीय सदस्यों की बंधुआ मजदूरी पर नियंत्रण पर भी संवैधानिक प्रावधानों द्वारा लगाया गया गया और इन्हें स्वेच्छा से किसी भी धर्म को ग्रहण करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गयी। संवैधानिक प्रावधानों के फलस्वरूप ही इन्हें साहूकारों व सूदखोरों के ऋणों से मुक्त किया गया तथा इनके शोषण को रोका गया। इसके अतिरिक्त विभिन्न विकास योजनाओं तथा कार्यक्रमों के कारण इनमें सहभागिता तथा भागीदारी की भावना का विकास होता जा रहा है। जिसके कारण इनकी स्थानीय समस्याओं को खोजना तथा उनका शीघ्र समाधान करना सम्भव होता जा रहा है। सभी नेता, अधिकारी व कर्मचारी आदि इन प्रावधानों से बधे हुए हैं, जिसके कारण ये अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग करके जनजातीय कल्याण हेतु प्रयत्नशील हैं। वास्तव में इन्हीं .प्रावधानों के कारण ही जनजातीय समाज की प्रगति की कल्पना को साकार किया जाना सम्भव हो सका है और इन्हें विकास के पथ पर अग्रसित किया जा सका है।
लेकिन इस बात को निश्चित रूप से मानना पड़ेगा कि संवैधानिक नियम आशा के अनुरूप परिणाम न दे सके, अर्थात इनसे जो आशा की गयी थी, वह पूर्ण न हो सकी और जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, उनकी प्राप्ति भी न हो सकी। इसके बावजूद यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि संवैधानिक परिणामों के परिणामस्वरूप ही जनजातियों के जीवन में परिवर्तन लाना सम्भव हो सका और वह समय भी अब दूर नहीं है जब लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकेगा, लेकिन इसके लिए यह अति आवश्यक है कि जनजातीय समाज के कल्याण कार्यों से जुडे समाज के सभी सदस्य पूर्ण ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें तथा संवैधानिक प्रावधानों से जनजातियों के सदस्यों को अवगत करायें।
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