उग्र नारीवाद की विचारधारा की समीक्षा कीजिए। उग्र नारीवाद क्या है? उग्र नारीवाद का अर्थ एवं परिभाषा बताइये। नारीवाद की उग्रवादी विचारधारा बताइये।
उग्र नारीवाद की विचारधारा की समीक्षा कीजिए।
- उग्र नारीवाद क्या है?
- उग्र नारीवाद का अर्थ एवं परिभाषा बताइये।
- नारीवाद की उग्रवादी विचारधारा बताइये।
उग्र नारीवाद की परिभाषा
नारीवाद के सर्वाधिक उग्र रूप को उग्र नारीवाद कहा जाता है। नारीवाद का यह सर्वाधिक आक्रोशपूर्ण एवं उग्रवादी रूप है। उग्रवादी नारीवाद ने यह प्रतिपादित किया कि नारियों की दयनीय स्थिति का मूल कारण पुरुष की प्रभुता वाला समाज है। यह पुरुष प्रधान समाज अपने को विवाह और परिवार संस्था के माध्यम से सम्पोषित करता रहा ही इस प्रकार पैतृक समाज की जड़ें समाज के आर्थिक कारकों में नहीं वरन् जीव विज्ञान में है। महिला की प्रजनन क्षमता इसका आधार है। महिलाओं की मुक्ति तभी सम्भव है जब जैविक परिवार की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाए अर्थात यह सामाजिक संगठन का अधार न रहे। विवाह के आधार पर बच्चों के जन्म और परिवार में बच्चों के पालन-पोषण के स्थान पर उग्रवादी नारीवाद स्वतन्त्र सेक्स और बच्चों की सामूक देखभाल की वकालत करता है, यह मार्ग ही मातृक सत्ता को जन्म देगी।
उग्र नारीवाद का उदय
उग्र नारीवाद का उदय 1960 में नारीवाद के दूसरे चरण में हआ। इसने लिंग विश्लेषण के बारे में समक्ष का विस्तार किया और महिलाओं के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार मूल कारण की तलाश की। इन्होंने लैंगिक दमन और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को दर्शाया और बताया कि इनका मुख्य कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता की जिम्मेदारियाँ पालन-पोषण और पारिवारिक चरित्र में महिलाओं की अविरल बन्द स्थिति के कारण दिखाई दिए। उग्र नारीवाद का उदय अमेरिका में 1960 के अन्तिम दशक में हुआ। वहाँ से यह इंग्लैण्ड और फिर आस्ट्रेलिया पहुँचा। उग्र नारीवादियों ने महिलाओं के दमन और शोषण के विभिन्न पहलुओं पर जागरूकता फैलाने तथा उनसे निजात पाने के लिए राजनीतिक एवं रणनीतिक उपाय बताए। उनका यह दृष्टिकोण 'चेतना की जागृति' के रूप में प्रसिद्ध हुआ। व्यक्तिगत अनुभवों पर हुई बहसों से यह निश्चित हो गया कि इन सबका मूल कारण पितृसत्ता है। महिलाओं को अब पारिवारिक पुरुषों के दमन-शोषण के साथ सत्ता में बैठे पुरुषों के दमन और शोषण से भी मुक्ति पाना था। महिलाओं ने मौन तोड़कर अपनी समस्याएँ उजागर की जिन्हें पहले वे अपनी व्यक्तिगत समस्याएँ मानती थी। कुछ महिलाओं ने मिलकर एक नई चेतन जागृत की और उन समस्याओं की पहचान की जिसके समाधान ढूँढ़े जा सकते थे। यह एक स्वचेतना पर आधारित रणनीति थी कि सब महिलाओं की समस्याएँ एक जैसी है तथा सामूहिक और राजनीतिक प्रयास द्वारा इसे समाप्त किया जा सकता है इसका मुख्य नारा था "व्यक्तिगत ही राजनीतिक है"
उग्र नारीवाद की शुरुआत में सिमोन द बुआर के ग्रन्थ “द सेकेंड सैक्स (1994) में उनकी उक्ति “महिलाएँ जन्म नहीं लेती वरन् उन्हें महिला बनाया जाता है" ने एक चिंगारी का काम किया। इस लेख ने लिंग की उग्रवादी समझ को पेश किया और पितृसत्ता की व्यापक आलोचना की। केट मिलेट ने अपनी पुस्तक सैक्सुअल पॉलिटिक्स में पितृसत्तात्मक हिंसा की भूमिका का अन्वेषण किया। अधिपत्य और शक्ति द्वारा लैंगिक रिश्तों को बनाने के कार्य की भूमिका का भी अन्वेषण किया और पाया कि राजनीति भी इससे अन्जान नहीं है और वह शक्ति और वंशानुक्रम द्वारा हर जगह गम्भीरतापूर्वक चलाई जाती है। उन्होंने अलग-अलग धर्मों से उदाहरण देकर यह दिखाया कि कैसे धर्म पुरुषों के अधिपत्य को स्थापित और बनाये रखने में मदद करता है और महिलाओं की कमतर स्थिति को दर्शाता है। वे विश्वास करती है कि महिलाओं की चेतना को जागृत कर इस मूल्य प्रणाली को बदला जा सकता है।
इस युग में फायरस्टोन ने अपनी चर्चित कृति 'द डायलैक्टिक ऑफ सेक्स' के अन्तर्गत नारीवाद की नई व्याख्या देकर नारीवादी आन्दोलन को एक दिशा प्रदान की। शूलामिथ ने संकेत दिया कि नारी की पराधीनता को प्रभुत्व की किसी विस्तृत प्रणाली का हिस्सा या लक्षण मानकर नहीं समझा जा सकता। ऐतिहासिक दृष्टि से स्त्रियाँ पहला-पहला उत्पीडित समूह थीं। स्त्रियों के प्रति पूर्वाग्रह को मिटाकर या समाज के वर्ग-विभाजन का अन्त करके महिलाओं की पराधीनता ऐसा संकल्पनात्मक प्रतिरूप प्रस्तुत करती है जिसके आधार पर समाज में सब तरह के उत्पीड़न का विश्लेषण किया जा सकता है। शूलामिथ के ध्यान का मुख्य केन्द्र स्त्रियों की पराधीनता का जीव-वैज्ञानिक आधार है। मानवीय प्रजनन ऐसी प्रक्रिया है जिसने विश्व स्तर पर एक विशेष प्रकार के सामाजिक संगठन की जरूरत पैदा कर दी थी। इस तरह मानव जाति का जीववैज्ञानिक आधार ही पुरुष प्रधान समाज को जन्म देता है। शूलामिथ ने स्त्रियों की पराधीनता के विषय को एक राजनीतिक समस्या के रूप में प्रस्तुत करके नारीवादी चिन्तन और आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। जरमाइन ग्रीअर ने अपनी कृति “द फीमेल यूनक (1970)" में यह विचार कि घरेलू काम और एकल परिवारों के बोझ ने महिलाओं को अपनी क्षमता के अनुसार अपनी पसंद के कार्य करने के विचार से वंचित किया है। महिलाओं को पुरुषों के समाज में उनकी लैंगिकता प्राकृतिक और राजनीतिक स्वायत्ता से अलग किया है।
उग्रवादी नारीवाद की आलोचना
उग्रवादी नारीवाद ‘आक्रोशपूर्ण मात्र सैद्धांतिक अतिरेचना' मात्र है तथा सैद्धांतिक दृष्टि से भी नारीवादियों के एक छोटे समूह की मानसिक उपज है, नारीवादियों ने व्यापक रूप से या सामान्य रूप से इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया। नारीवाद के नाम पर सदियों से जाँची-परखी सेस्या परिवार को समाप्त करने की बात का कोई औचित्य नहीं है। परिवार का अन्त नारी मुक्ति का मार्ग नहीं है। फ्री सेक्स की स्थिति नारी मुक्ति को नहीं, वरन घोर अव्यवस्था और ‘शक्ति ही सत्य है, की स्थिति को ही जन्म देगी।
COMMENTS