बहुसांस्कृतिकवाद (Multiculturalism in Hindi) हुसांस्कृतिक से आशय सांस्कृतिक बहुलता तथा सांस्कृतिक विभिन्नता से है। 'बहुसांस्कृतिकवाद' विचारों एवं धारा
बहुसंस्कृतिवाद की संकल्पना और अर्थ की व्याख्या कीजिए।
बहुसांस्कृतिकवाद (Multiculturalism in Hindi )
बहुसांस्कृतिक से आशय सांस्कृतिक बहुलता तथा सांस्कृतिक विभिन्नता से है। 'बहुसांस्कृतिकवाद' विचारों एवं धाराणाओं का संग्रह है, जोकि किसी व्यवस्था व समाज में विभिन्न संस्कृतियों के समान महत्व व अस्तित्व को स्वीकार करता हैं। दूसरे शब्दों में एक साथ सभी संस्कृतियों का सहअस्तित्व, सभी संस्कृतियों का सम्मान करना तथा संवैधानिक रूप से उन्हें समान स्थान देना ही बहुसांस्कृतिक या बहुसांस्कृतिकवाद कहलाता है। बहुसांस्कृतिकवाद की मूल मान्यता है कि किसी भी समाज में एक प्रबुद्ध संस्कृति के साथ-साथ कई अन्य संस्कृतियों का भी अस्तित्व पाया जाता है। प्रत्येक व्यवस्था में इन सांस्कृतिक विविधताओं को सहज कर रखा जाना चाहिए तथा सभी संस्कृतियों को अपने प्रचार-प्रसार के समान अवसर दिये जाने चाहिए। उदाहरण के तौर पर भारतीय संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के तहत संस्कृति सम्बन्धी अधिकार का उल्लेख करते हुए सभी संस्कृतियों को समान अधिकार व अवसर प्रदान किये गये हैं।
इस प्रकार बहुसांस्कृतिकवाद आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्रराज्यों के विकास व स्थयित्व की दृष्टि से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण धारणा है। 1970 के दशक के बाद से कई पश्चमी देशों में बहुसंस्कृतिवाद को आधिकारिक नीति के रूप में अपनाया गया, जिसका तर्क अलग-अलग देशों में अलग था। पश्चिमी दुनिया के बड़े शहरों में तेजी से संस्कृति के मोज़ेक बने। बहुसंस्कृतिवाद के समर्थकों द्वारा इसे एक बेहतर प्रणाली के रूप में देखा जाता है जो कि समाज के भीतर लोगों को उनके अस्तित्व को वास्तविक रूप से अभिव्यक्त करने की अनुमति देती है और जो अधिक सहनशील होती है और सामाजिक मुद्दों के लिए बेहतरी को अपनाया जाता है।[2] उन्होंने तर्क दिया कि संस्कृति, एक जाति या धर्म पर आधारित कोई परिभाषा नहीं होती, बल्कि कई कारकों का परिणाम होती है और जैसे-जैसे शब्द में परिवर्तन होता है उसी प्रकार उसमें भी परिवर्तन होता है।
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