कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर निबंध : लोक कल्याण राज्य की अवधारणा (सिद्धांत) से यह तात्पर्य है कि लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मान्यता प्रदान क
कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर निबंध
लोक कल्याण राज्य की अवधारणा (सिद्धांत) से यह तात्पर्य है कि लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मान्यता प्रदान करता है। उत्पादन के साधनों पर समाज अथवा राज्य का नियन्त्रण नहीं होता है।
वर्तमान समय में राज्य को सभी देशों में लोक कल्याणकारी संस्था समझा जाता है। वह जनता की भलाई के अनेक कार्य करता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सामाजिक व आर्थिक सुधार, वेतन निर्धारण आदि इसी के सिद्धांत के अन्तर्गत आते हैं। अनेक उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है और जनहित की योजनाएँ क्रियान्वित की जाती है। इससे कार्यपालिकाका कार्य-क्षेत्र बढ़ जाता है तथा वह व्याप्त हो जाता है।
लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ
लोक कल्याणकारी राज्य की परिभाषा
संविधानवाद की रक्षा के लिए लोककल्याण की घोषणाएँ और नारे पर्याप्त नहीं हैं। लोककल्याण की दिशा में ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। संविधानवाद को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि आर्थिक विषमताएँ यथासम्भव अधिक-से-अधिक सीमा तक दूर की जायें तथा आर्थिक-सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त किया जाये। इस सम्बन्ध में अधिकांश विकासशील देश की जनता का धैर्य समाप्ति की ओर है। अतः यथासम्भव अतिशीघ्र और प्रभावी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। 20वीं शताब्दी में समाज का सर्वांगीण विकास के लिए राज्य का कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ गया। लोककल्याण से नि:सन्देह विधायिका के कार्य भी बढ़े। लेकिन कार्यपालिका विधायिका की तुलना में और महत्वपूर्ण हो गई। फलत: पिछली शताब्दी में विधायिका का प्रभाव कार्यपालिका की तुलना में कम हो गया।
साम्यवादी राज्यों में एक निश्चित आय तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाती हैं। बीमारी शारीरिक अक्षमता अथवा दुर्घटना की स्थिति में राज्यों के द्वारा नागरिकों को पेन्शन दी जाती है तथा सम्पूर्ण चिकित्सा के भार भी राज्य के द्वारा वहन किए जाते हैं। श्रमिकों के लिए कार्य करने के घण्टों को निश्चित कर दिया जाता है। अवकाश आराम-गह. क्लबों व स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की जाती है। स्त्रियों को पुरुषों के समान वेतन तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
COMMENTS