संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा क्यों दी गई है?
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा दी गई है क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अंतर्गत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण ले सकता है। इसी अनुच्छेद की शक्तियों के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय अपने नागरिकों के मौलिक अधिकार, सुरक्षित और संरक्षित रखता है। इसलिये डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि,“इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।"
- इस भाग द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।
- इस भाग द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।
- उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।
- इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।