लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ (Meaning of Welfare State)
आज के युग में लोक कल्याणकारी सिद्धान्त विश्व के विभिन्न राज्यों में एक प्रचलन जैसा हो चला है। यही कारण है कि विश्व के करीब-करीब सभी देश चाहे वहाँ प्रजातन्त्रात प्रणाली हो अथवा कोई अन्य प्रणाली हो, अपने को लोक कल्याणकारी राज्य कहते हैं। लोक कल्याणकारी राज्यों में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Right) दिये जाते हैं, जो राज्य के हस्तक्षेप से वर्जित होते हैं। कल्याणकारी राज्य आज इतना लोकप्रिय हो गया है कि अनेक विद्वानों ने असके अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। अतः अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा भी की है।
लोक कल्याणकारी राज्य की परिभाषा
डा० अब्राहम ने कहा है-"कल्याणकारी राज्य वह है जो अपनी आर्थिक व्यवस्था का संचालन आय के अधिकाधिक समान वितरण के उद्देश्य से करता है।"
गारनर के अनुसार-"कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य राष्ट्रीय जीवन, राष्ट्रीय धन तथा जीवन के भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक स्तर को विस्तृत करना है ।"
कांट ने कहा है- "कि कल्याणकारी राज्य का अर्थ उस राज्य से है जो अपने नागरिकों के लिये अधिकतम सामाजिक सुविधायें प्रदान करे।"
इसी प्रकार अन्य विद्वानों ने जैसे मैकाइवर (Macdver), हॉब्सन ने भी इसके अर्थ को परिभाषित किया है । इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों के मानसिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक तथा अन्य पहलुओं को विकसित करने का प्रयास करता है । इसका सम्बन्ध नागरिकों के सर्वांगीण विकास से है। इसका उद्देश्य सामाजिक शोषण का अन्त करना और कलात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना
लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतायें तथा उद्देश्य (Characteristics and Objectives of Welfare State)
लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतायें निम्नलिखित है :-
- लोक कल्याण की भावना राज्य का उत्तरदायित्व है
- लोक कल्याण राज्य का प्रमुख सिद्धान्त है
- दरिद्रता तथा अभाव का उन्मूलन करना
- नागरिकों का सर्वांगीण विकास
1. लोक कल्याण की भावना राज्य का उत्तरदायित्व है :- ‘लोक कल्याण' एक ऐसा शब्द है जो नागरिकों के लिये बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है । लोक कल्याण की मांग नागरिकों का अधिकार है। यदि कोई भी राज्य लोक कल्याण सम्बन्धी बातें करता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह नागरिकों पर कोई उपकार करता है। राज्य इन लोक कल्याण सम्बन्धी कार्यों को इस लिये करता है कि यह उसका उत्तरदायित्व है । व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करके ही राज्य अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता है
2. लोक कल्याण राज्य का प्रमुख सिद्धान्त है :- लोक कल्याण की भावना राज्य का उत्तरदायित्व ही नहीं वरन् इसका महत्वपूर्ण सिद्धान्त भी है। लोक-कल्याणकारी राज्य की एक विशेषता है कि राज्य के अन्तर्गत समाज तथा राज्य में अभिन्न सम्बन्ध होता है। इसमें एक व्यक्ति का हित दूसरे व्यक्ति का हित होता है। इसलिये लोक कल्याणकारी राज्य की सफलता के लिये देश के नागरिकों में सामुदायिक भावना का विकास होना चाहिये।
3. दरिद्रता तथा अभाव का उन्मूलन करना :- दरिद्रता तथा अभाव का उन्मूलन करना लोक कल्याणकारी राज्य की मुख्य विशेषता है नागरिकों में दरिद्रता, अभाव आदि की भावना आती है तो लोक कल्याणकारी राज्य कभी अपने उद्देय प्राप्त नहीं कर सकता।
4. नागरिकों का सर्वांगीण विकास :- लोक कल्याणकारी राज्य का नारा नागरिकों का सर्वांगीण विकास है। यह नागरिकों के मन भय और अभाव को ही दूर नहीं करता वरन् व्यक्ति का ध्यान 'पालने से कब्र तक' (From the Cradle to the grave) करता। बच्चे के जन्म से पहले माँ का स्वास्थ्य तथा पैदा होने पर बच्चों के स्वास्थ्य, पढ़ाई आदि की समुचित व्यवस्था करता है। बच्चा जब बड़ा होकर देश का नागरिक बनता है उस समय भी राज्य उसकी व्यवस्था करता है । यह नागरिकों के नागरिक जीवन से लेकर सामाजिक आर्थिक, धार्मिक तथा अन्य पहलुओं को भी विकसित करने का प्रयास करता है।
लोक कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य
कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य और राज्य के उद्देश्य के बीच आज अन्तर करना बहुत ही कठिन है। क्योंकि आज सभी राज्य अपने को कल्याणकारी राज्य की संज्ञा देते हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये तो कल्याणकारी राज्य का प्रमुख उद्देश्य अपने नागरिकों का सर्वांगीण विकास है।
एक लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक न्याय को सही दिशा में आगे बढ़ाना है । एक कल्याणकारी राज्य के लिये परिवर्तन एक सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक प्रक्रिया है। भारत में संचालित हो रही पंचवर्षीय योजनायें तथा समाज कल्या के कार्यक्रम सामाजिक विकास के ही प्रयास हैं। अतः लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य समाज में कुछ रचनात्मक परिवर्तनों को प्रारम्भ करना जिसमें पुरानी प्रथाओं का उन्मूलन तथा नई परम्पराओं की स्थापना सहित कुछ प्रवर्तित संस्थाओं को बदलना भी शामिल है।
लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य सामाजिक विकास के महत्वपूर्ण निर्धारक तत्वों या निर्देशकों (Indicators) में जीवन स्तर में परिवर्तन करना, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा में वृद्धि, रोजगार में वृद्धि, सामाजिक न्याय में वृद्धि, रोगार में वृद्धि, सामाजिक न्याय में वृद्धि तथा विस्तार समाज कल्याण, जीवन की विविधताओं तथा विषमताओं से सुरक्षा समाज कल्याण सेवाओं तथा सुविधाओं में सुधार, स्वास्थ्य सुधार तथा विकास आदि है।
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य (Functions of welfare State)
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य से तात्पर्य ऐसे कार्यों से हैं जो राज्य की सफलता के लिये आवश्यक हैं।
- प्रशासक तथा जनता की दूरी कम करना
- सामाजिक न्याय को अवधारणा
- सामाजिक नीति
- सामाजिक विधान
- सामाजिक नियोजन
- जन सहयोग
- सफलताओं का मूल्यांकन
- सार्वजनिक वित्त का सदुपयोग
1. प्रशासक तथा जनता की दूरी कम करना:-लोक कल्याणकारी राज्य को कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण है प्रशासक और जनता की दूरी कम करना । और यह तभी सम्भव हो सकता है जब सामाजिक प्रशासन के कार्यों को लोक कल्याण के कार्य से जोड़ा जाये।
2. सामाजिक न्याय को अवधारणा :-लोक कल्याण का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है सामाजिक न्याय की अवधारणा को आगे बढ़ाना । लोक तन्त्र तथा लोक कल्याणकारी राज्यों में सामाजिक न्याय की अवधारणा तेजी से पनपी है । इसके लिये जाति, धर्म, वंश, लिंग, प्रजाति, रंग तथा नरल सहित अन्य बहुत से आधारों पर व्यक्ति-व्यक्ति का भेद समाप्त करना चाहती है । सामाजिक न्याय के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों नीति निर्देशक तत्वों, सामाजिक विधानों, सामाजिक नीति तथा सामाजिक नियोजन के माध्यम से इसकी प्राप्ति का प्रयास किया जाता है।
3. सामाजिक नीति :- लोक कल्याणकारी राज्य का एक और प्रमुख कार्य सामाजिक नीति से सम्बन्धित है। सामाजिक नीति के अन्तर्गत अनेक कल्याणकारी नीतियों सम्मिलित हैं जिनमें आरक्षण नीति (Reservation Polic) सर्वोच्च है । अन्य नीतियों में बाल नीति, आवास नीति, शिक्षा नीति, एवं स्वास्थ्य नीति इत्यादि प्रमुख है जो सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों की प्राप्ति की प्रति के लिये आवश्यक हैं।
4. सामाजिक विधान :-सामाजिक विधान वे कानून हैं जो समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा सामाजिक समस्याओं जैसे-छूआछुत, बाल विवाह, सती प्रथा, बालश्रम, वैश्यावृत्ति तथा बंधुआ मजदूरी इत्यादि पर प्रभावी रोक लगाने के लिये निर्मित किये गये हैं। और लोक कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है, यह कार्य होता है कि वह उपर वर्णित सामाजिक विधान को राज्यों में लागू करे ।
5. सामाजिक नियोजन :- लोक कल्याणकारी राज्य का यह कार्य है कि वह सामाजिक नियोजन द्वारा राज्य के कार्यों को सम्पन्न करे । सामाजिक नियोजन के द्वारा समाज कल्याण के विशिष्ट कार्यक्रम तथा योजनायें संचालित की जाती हैं, जिसे समाज के दुर्बल तथा भेदभाव के शिकार व्यक्तियों को समाज की मूलधारा में लाया जा सके।
6. जन सहयोग :-जन सहयोग लोक कल्याणकारी राज्य का प्राण है । चूँकि एक लोक कल्याणकारी राज्य अपने चरम उद्देश्य की प्राप्ति के लिये अनेक नीतियों और योजनाओं का संचालन करता है इसलिये इसका यह महत्वपूर्ण कार्य है कि वह जन-सहयोग की सहायता से अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाये । क्योंकि कल्याणकारी योजनाओं की सफलता के लिये जनता का योगदान व्यावहारिक होना चाहिये ।
7. सफलताओं का मूल्यांकन :-लोक कल्याणकारी राज्य का यह भी एक महत्वपूर्ण कार्य है कि जो भी कार्य किये जा रहे हैं उनका सही मूल्यांकन किया जाये ।
8. सार्वजनिक वित्त का सदुपयोग :-हर लोक कल्याणकारी राज्य को जनता का धन खर्च करने में सावधानी बरतनी चाहिये । अतः यह उसका कार्य है कि वह सार्वजनिक वित्त का सही-सही उपयोग करे । व्यर्थ खर्च को कम करे ताकि कल्याणकारी कार्यों पर खर्च होनेवाले सार्वजनिक धन से जनता को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
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