अनुशासनहीनता की समस्या को दूर करने के उपाय बताइए: अनुशासनहीनता का अर्थ है अनुशासन का अभाव। अनुशासनहीनता के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। यह स्कूलों
अनुशासनहीनता की समस्या को दूर करने के उपाय बताइए।
अनुशासनहीनता का अर्थ है अनुशासन का अभाव। अनुशासनहीनता के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। यह स्कूलों में सीखने की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है, कार्यस्थल में उत्पादकता को कम कर सकता है, और हमारे सामाजिक संबंधों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
डब्लू0 पी0 शोरिन ने अनुशासनहीनता को समाप्त करने हेतु तीन प्रकार की अनुशासनात्मक क्रियाओं पर बल दिया है जो इस प्रकार है-
- रचनात्मक अनुशासन
- सुधारात्मक अनुशासन
- उपचारात्मक अनुशासन
1. रचनात्मक अनुशासन (Constructive Discipline )
बालक में स्वाभाविक रूप से आत्म-अनुशासन या आत्म-नियन्त्रण की भावना उत्पन्न हो, इसके लिए हमें निम्न बातों का ध्यान रखना होगा -
- बालक के लिए बहुत अधिक कार्यों को वर्जित नहीं करना ।
- बालक में ऐसी भावनाओं का विकास करना कि वह अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने दायित्वों को भी समझे।
- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में अधिक भाग लेने के अवसर देना।
- छात्रों को सभी कार्यों में सहयोग करने हेतु अभिप्रेरित करना।
- विद्यालय में बालक की वैयक्तिकता को पूर्ण सम्मान मिलना चाहिए।
- अध्यापक बालक की रुचि व आवश्यकताओं को समझे व उनकी पूर्ति कर हर सम्भव प्रयास करे।
- विद्यालय के आदर्श व परम्पराओं व अनुशासन बनाये रखने में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करे और अध्यापक का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो कि छात्र उसका अनुपालन करके अनुशासन की ओर अग्रसित हों।
- पाठ्यक्रम में सुधार लाना चाहिए।
- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएं आयोजित की जानी चाहिए।
2. सुधारात्मक अनुशासन (Preventive Discipline)
- अध्यापक को अपने सभी छात्रों को उनके नाम से पहचानना चाहिए।
- पढ़ाने समय अध्यापक की दृष्टि सम्पूर्ण कक्षा की ओर समान रूप से केन्द्रित होनी चाहिए।
- छात्रों के बैठने की व्यवस्था आरामदायक हो।
- जो बच्चे ध्यान न दे रहो हों, उन पर विशेष ध्यान दिया जाये।
- पढ़ाने का रोचक तरीका अपनाना चाहिए।
- अध्यापक का व्यवहार ऐसा हो कि छात्र उसे अपना शुभचिन्तक समझें।
- जो बच्चे कक्षा में अनुशासनहीनता उत्पन्न करें, उनको मनोवैज्ञानिक ढंग से सुधारा जाये जिससे वह कार्य में सहयोग दें।
- किसी भी छात्र के साथ अध्यापक अभद्र व्यवहार न करें चूँकि इससे उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है।
- अध्यापक को प्रारम्भ में गम्भीर व अनुशासन में स्वयं भी रहना चाहिए। प्रारम्भ की थोड़ी-सी ढील छात्रों के व्यवहार को बिगाड़ सकती है।
- अध्यापक को कक्षा के मध्य में खड़ा होना चाहिए।
- विद्यालय भवन स्वच्छ व व्यवस्थित हो।
- विद्यालय में छात्रों की मुख्य आवश्यकताओं जैसे- पानी, शौचालय, बिजली, पंखा की व्यवस्था उचित हो।
- विद्यालय परिवेश को राजनीति से दूर रखना चाहिए।
3. उपचारात्मक अनुशासन (Remedial Discipline)
उपचारात्मक अनुशासन का अभिप्राय है जो छात्र अनुशासनहीन हो चुका है, उसे कैसे सुधारा जाये। इसके अन्तर्गत दो बातें मुख्य है -
- निदान (Diagnosis)
- उपचार (Treatment)
निदान के अन्तर्गत हम अनुशासनहीनता के कारण जानते हैं और उपचार में उन कारणों का निवारण करते हैं। इसमें हमें निम्न बातों को निहित करना होगा -
- जब तक ऐसे बच्चों का सुधार न हो जाए, उन्हें अन्य छात्रों से पृथक् रखा जाये।
- इनसे इनके गलत व्यवहार का कारण पूछा जाये व उसे धैर्यपूर्वक सुना जाए।
- इन्हें इनके अपराध का पूर्ण ज्ञान करा दिया जाए व प्रारम्भ में पश्चाताप करने को बाध्य न किया जाए।
- इन्हें दण्ड बहुत ही सोच-विचार कर दिया जाए।
- इनके अपराध की चर्चा अन्य व्यक्तियों के समक्ष नहीं की जानी चाहिए।
- बालक को सुधारने हेतु उसके अभिभावकों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।
- इन्हें बहुत अधिक डाँटना-फटकारना नहीं चाहिए, न ही इनके प्रति घृणात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए।
- ऐसे छात्रों पर हँसना नहीं चाहिए।
- इनकी छोटी त्रुटियों पर गम्भीरता की प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए।
- यदि अनुशासनहीन छात्र कोई अच्छा कार्य करे तो उसकी प्रशंसा होनी चाहिए।
- इनके प्रति नकारात्मक भाव नहीं, वरन् सुधारात्मक भाव होना चाहिए।
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