वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक (वंशानुक्रम) निम्न है - (1) दैनिक जीवन के अनुभव, (2) सामाजिक स्थिति पर प्रभाव, (3) मूल शक्तियों पर प्रभाव,
वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Vriddhi aur Vikas ko Prabhavit Karne wale Karak)
वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक (वंशानुक्रम) निम्न है - (1) दैनिक जीवन के अनुभव, (2) सामाजिक स्थिति पर प्रभाव, (3) मूल शक्तियों पर प्रभाव, (4) चरित्र पर प्रभाव, (5) व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव, (6) महानता पर प्रभाव,
1. दैनिक जीवन के अनुभव: बालक-बालिकाओं में अपने माता-पिता अथवा अपने पूर्वजों के गुण विकसित होते हैं। वे जैसा देखते-समझते हैं वैसा ही करते हैं। उन पर अपने परिवार की परम्पराएँ एवं संस्कार की झलक दिखाई देने लगती है। इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य के व्यक्तित्व पर आनुवांशिकता का प्रभाव पड़ता है।
2. सामाजिक स्थिति पर प्रभाव: प्रतिभासम्पन्न, गुणवान एवं प्रतिष्ठित माता-पिता की सन्तान भी समाज में सम्मान प्राप्त करती है। जैसे- रिचर्ड एक प्रतिष्ठित एवं गुणवान व्यक्ति था। उसकी पत्नी भी उसके समतुल्य थी। इनकी सन्तानों (वंशजों) ने भी महाविद्यालयों एवं विधानसभा में प्रतिष्ठित पदों की प्राप्ति की एवं समाज में सम्मान पाया।
3. मूल शक्तियों पर प्रभाव: वंशानुक्रम द्वारा ही बालक की मूल शक्तियाँ प्रभावित होतीहैं।
4. चरित्र पर प्रभाव: बालक के चरित्र पर भी उसके वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है। ज्यूकस एक चरित्रहीन व्यक्ति था। उसके वंशजों के बारे में कहा जाता है कि उसकी पाँच पीढ़ियों में लगभग 1000 व्यक्तियों में से 300 बाल्यावस्था में मर गये 310 व्यक्तियों ने 230 वर्षों तक दरिद्रगृहों में समय बिताया 440 रोग के कारण मर गये, 130 दण्ड प्राप्त अपराधी थे और केवल 20 ने ही कोई व्यवसाय करना सीखा। इसीलिए कहा जा सकता है कि मनुष्य के चरित्र पर आनुवांशिकता का प्रभाव पड़ता है।
5. व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव: बालक की व्यावसायिक योग्यता पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जैसे कलाकार का पुत्र कलाकार, गायक का पुत्र गायक, राजनेता का पुत्र राजनीतिज्ञ एवं खिलाड़ी का पुत्र खिलाड़ी बनाने को ही प्राथमिकता देता है।
6. महानता पर प्रभाव: किसी भी व्यक्ति की महानता का कारण उसका वंशानुक्रम होता है। महान सैनिकों, राजनीतिज्ञों या साहित्यकोश की जीवनी से ज्ञात होता है कि इनके परिवारों में भी कोई न कोई इस क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर चुका है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के वृद्धि एवं विकास पर वंशानुक्रम का थोड़ा या अधिक प्रभाव अवश्य पड़ता है।
वृद्धि एवं विकास पर वातावरण का निम्न प्रभाव पड़ता है -
1. बुद्धि पर प्रभाव: बालक की बुद्धि विकास पर वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। अगर बच्चे का लालन-पालन व देखभाल उचित व स्वस्थ वातावरण में होगा तो उसकी बुद्धि का विकास उचित तथा शीघ्र होगा।
2. मानसिक विकास पर प्रभाव: बालक का पर्याप्त विकास उचित सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण मिलने पर ही होता है और यदि उचित वातावरण नहीं मिल सका तो बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है।
3. शारीरिक विशेषताओं पर प्रभाव: बालक पर भौगोलिक परिस्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस के बालक यहाँ के वातावरण के अनुसार लम्बे होते हैं और अफ्रीका के काले । भारत में भी उत्तरी भाग के लोग अधिकतर गोरे तथा दक्षिण भाग के लोग अधिकतर साँवले रंग के होते हैं । अतः शारीरिक रचना पर भौगोलिक वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है।
4. व्यक्तित्व पर प्रभाव: व्यक्ति के व्यक्तित्व पर वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। जबकि वंशानुगत कम प्रभाव रहता है। किसी भी व्यक्ति को यदि व्यक्तित्व के लिये उचित वातावरण न मिले तो वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण सही तरीके से नहीं कर सकता।
5. जुड़वाँ बच्चों पर प्रभाव: यदि हम जुड़वाँ बच्चों को लें और उनमें से एक का पालन-पोषण गाँव तथा दूसरे का शहर में किया जाये तो हम देखेंगे कि गाँव के वातावरण में पला बच्चा कम शिक्षित, अशिष्ट एवं गँवार होगा, जबकि शहर के वातावरण में पलने वाला बच्चा अधिक शिक्षित होगा और शिष्ट एवं चिन्तामुक्त होगा। परन्तु गाँव का बालक बलिष्ट एवं शहर का बालक साधारण होगा।
6. प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव: अफ्रीकी नीग्रो तथा अमेरिकी लोगों में यदि बुद्धि परीक्षण करें तो अमेरिकी लोगों का बुद्धि स्तर ऊँचा होगा जबकि नीग्रो लोगों का कम। क्योंकि उन्हें अमेरिकी लोगों की भाँति उचित वातावरण उपलब्ध नहीं है।
निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि वंशानुक्रम और वातावरण दो महान शक्तियाँ हैं जो मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। प्राणी वंशानुक्रम और वातावरण का उत्पाद है यदि वंशानुक्रम को बीज और वातावरण को जलवायु की संज्ञा दी जाये तो अच्छी उपज के लिये दोनों का समान रूप से विद्यमान होना अति आवश्यक है। यदि बीज अच्छा हो, परिपोषण व वातावरण अच्छा न हो, यदि परिपोषण और वातावरण की सभी सुविधाएँ विद्यमान हों और बीच अच्छा न हो तो दोनों ही शक्तियों का कोई महत्व नहीं रह जाता। इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में वातावरण के अन्तर्गत सभी नैतिक, सामाजिक, शारीरिक और बौद्धिक गुण व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करते हैं और वंशानुक्रम उन सभी विशेषताओं अथवा गुणों का योग है जो व्यक्ति जन्म से ही अपने साथ लाता है। यह अनुवांशकीय गुण व्यक्ति को निश्चित विशेषताएँ प्रदान करते हैं, किन्तु उन्हें परिमार्जित करना उपयुक्त साँचे में ढालना, वातावरण का ही अर्थ है। वास्तव में वंशानुक्रम और वातावरण दोनों ही अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे के पूरक भी हैं।
वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शक्तियाँ बच्चे के विकास का साधन हैं। कुछ बच्चे जन्म से खेलों में निपुण होते हैं, उनमें अच्छे खिलाड़ी बनने के जन्मजात गुण होते हैं, अच्छे वातावरण की कमी के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाते हैं। एक अच्छा नागरिक और अच्छा खिलाड़ी बनने के लिये अच्छे वंशानुक्रम और अच्छे वातावरण का होना अति आवश्यक है।
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