स्वतंत्र भारत में पहली फांसी कब दी गई ?
स्वतंत्र भारत में पहली मौत की सजा नाथुराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 महात्मा गांधी की हत्या मामले में को दी गयी। मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गयी थी। महात्मा गांधी रोज शाम वहां प्रार्थना करने जाया करते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को जब वे शाम की प्रार्थना को जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे उनके पैर छूने का अभिनय करते हुए उनके सामने गए और उन पर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियाँ दाग दीं जिससे महात्मा गाँधी की मृत्यु हो गयी। इस हत्या में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोग शामिल थे। इन आठों लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, विनायक दामोदर सावरकर, में से दिगम्बर बड़गे के सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने से अदालत ने उन्हें मुक्त कर दिया। अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से तीन - मदनलाल पाहवा, विष्णु गोपाल गोडसे और रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ जबकि नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे को फाँसी की सजा दी गयी।