पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत - Piaget ka Sangyanatmak Vikas ka Siddhant: ज्याँ पियाजे संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले मन
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत - Piaget ka Sangyanatmak Vikas ka Siddhant
ज्याँ पियाजे (Jean Piaget 1896-1980) संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले मनोविज्ञानिकों में सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाते हैं। पियाजे का जन्म, 9 अगस्त 1896 को स्विट्जरलैंड में हुआ था। उन्होंने जन्तु-विज्ञान में पी-एच० डी० की उपाधि प् की।विकासात्मक मनोविज्ञान के अनेक सिद्धांतों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धान्त ज्याँ पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त है। संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन में ज्याँ पियाजे का अभूतपूर्व योगदान है। पियाजे ने अपने सिद्धान्त में शैशवावस्था से वयस्कावस्था के बीच चिन्तन-क्रिया में जो विकास होते हैं उनकी व्याख्या की है। इस सिद्धांत को ज्याँ पियाजे द्वारा प्रतिपादित किया गया ओर इसमें यह परिकल्पना की गई कि मानव शिशु विकसित होने के क्रम में चार स्तरों से गुजरता है। सामान्यतया यह चार अवस्थाएं विशेष आयु वर्ग से सम्बंधित होती हैं। जिन चार अवस्थाओं को ज्याँ पियाजे द्वारा प्रतिपादित किया गया है, इनका विवरण निम्नवत प्रस्तुत है -
इन्द्रिय जनित गामक अवस्था (Sensory Motor Stage)
संज्ञानात्मक विकास की यह अवस्था जन्म से लेकर 02 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में शिशु की मानसिक क्रियाएँ उसकी इन्द्रियों से जुड़ी हुई गामक क्रियाओं के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं। बोलचाल की भाषा को उपयोग न कर सकने के कारण शिशु इस उस वस्तु को दिखाकर अपने को व्यक्त करने का प्रयास करते हैं। शिशु अपनी समझ को व्यक्त करने के लिए विभिन्न गामक क्रियाओं का उपयोग करते हैं। यही कारण है कि इस अवस्था में जो वस्तु उसके सामने होती है उसी का उसके लिए अस्तित्व होता है। आँखों से ओझल होते ही वस्तु क अस्तित्व भी नहीं रहता है। यही कारण है कि इस अवस्था में शिशु 'खिलौने को बन्दर ले गया' जैसी बातों को मानने लगता है। इसी प्रकार किसी वस्तु को किसी चीज से ढ़क कर छुपाने पर वह शिशु उसको बाद में ढूढ़ने का प्रयास भी करता है।
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre- Operational Stage 02-07 Years)
संज्ञानात्मक विकास की पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था लगभग दो साल से प्रारंभ होकर सात साल तक चलती है। इस अवधि में शब्दों, वाक्यों क उपयोग कर शिशु / बच्चा अपनी बात कहना शुरू कर देता है संज्ञानात्मक विकास की पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था लगभग दो साल से प्रारंभ होकर सात साल तक होती है। इस प्रकार अभिव्यक्ति का माध्यम गामक क्रियाओं के स्थान पर भाषा बनाने लगती है।
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था की विशेषताएं
- पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में संप्रत्यय निर्माण (Concept Formation) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । बच्चे अपने वातावरण में विद्यमान वस्तुओं के नाम और उनमें अंतर समझना प्रारम्भ कर देते हैं। उदाहरण- चार पैरों वाली प्राणियों के दो वर्गों जैसे 'कुत्ता और गाय' में अंतर कर सकना प्रारम्भ हो जाता है ।
- निर्जीव व सजीव वस्तुओं में अंतर कर सकना प्रारम्भ हो जाता है। प्रारम्भ में बच्चे खिलौनों को भी सजीव समझते हैं बाद में वे सब समझ जातें हैं कि निर्जीव वस्तुओं को सर्दी व गर्मी नहीं लगती है। इसी प्रकार उनकी समझ में आ जाता है कि गुड़िया या खिलौनों को भूख नहीं लगती है और वे दूध नहीं पीते हैं। इसको प्याजे ने जीववाद कहा है। में बालक निर्जीव वस्तुओं को भी सजीव समझने लगता है उनके अनुसार जो भी वस्तुएँ हिलती हैं या घूमती हैं वे वस्तुएँ सजीव हैं। जैसे सूरज, बादल, पंखा ये सभी अपना स्थान परिवर्तन करते हैं, व पंखा घूमता है, इसलिए ये सभी सजीव हैं।
- इस अवस्था में बच्चे अत्यधिक आत्मकेंद्रित (Egocentrism) होते हैं। उनको लगता है कि आस-पास की सभी चीजें केवल उन्हीं के लिए हैं। अपने माता-पिता को वो केवल अपना ही मानते हैं तथा उन पर दूसरों का नहीं समझते हैं । बाद में धीरे- धीरे आत्मकेंद्रित रहने की स्थिति से वे सामाजिकता की ओर बढ़ना प्रारम्भ कर देते हैं। साथ ही दूसरों के साथ चीजों को लेना देना प्रारम्भ हो जाता है और वे दूसरों को भी अपना जैसा समझ शुरू कर देते हैं।
- इस अवस्था में बच्चे कल्पनाशील होते हैं परन्तु इस कल्पना से कुछ नई चीज बनाने की क्षमता उनमें नहीं होती है। अपने द्वारा बनाए गए कागज़ के हवाई जहाज को वो वास्तविक हवाई जहाज समझते हैं। इस अवस्था में उन्हें परियों और जादू की कहानियाँ अच्छी लगाने लगती हैं। तर्क पर आधारित चिंतन करने की क्षमता उनमें नहीं होती है और वे केवल हवाई किले बनाते हैं ।
- पियाजे के अनुसार इस उम्र के बच्चों में तार्किक चिन्तन की कमी रहती है, जिसे पियाजे ने संरक्षण का सिद्धान्त (Law of conservation) कहा है। उदाहरण के लिए : दो अलग-अलग आकार प्रकार के कांच के बर्तनों में समान मात्रा में रखे गए दूध को इस अवस्था के बच्चे समान या बराबर नहीं मान पाते हैं। कम चौड़ाई के लंबे बर्तन में रखे समान मात्रा दूध को बच्चे अधिक चौड़ाई के छोटे बर्तन में रखे समान मात्रा के दूध के बराबर नहीं मान पाते हैं ।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage)
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 साल से 11 साल तक चलती है। इस अवस्था में मानसिक विकास की विशेषताएँ निम्नवत हैं-
- विभिन्न प्रकार के संप्रत्ययों की समझ स्पष्ट हो जाती है। गाय, पेड़, जंगल, खेत, तालाब आदि संप्रत्यय स्पष्ट हो जाते हैं। वस्तुओं को पहचानना, उनको अलग- अलग वर्गों में विभाजित करना तथा वस्तुओं में अंतर कर सकने की क्षमता विकसित हो जाती है।
- इस अवस्था में बच्चे चीजों के बीच की समानता, अंतर, सम्बन्ध और दूरी को समझने लगते हैं। वे 05 आमों और 10 आमों के संबंधों का समझाना प्रारम्भ कर देते हैं। दो अलग-अलग वर्गों के प्राणियों में अंतर स्पष्ट होने लगता है। वे समझने लगते हैं कि कुछ प्राणी 'गाय' होते हैं कुछ प्राणी 'कुत्ता' होते हैं तथा कुछ ‘बिल्ली' होते हैं। इस अवस्था में वस्तुओं के सामने ना होने पर भी वे उन पर अमूर्त रूप से विचार प्रारम्भ कर देते हैं।
- उनके विचार करने के तरीके में क्रमबद्धता तथा तार्किकता आनी प्रारम्भ हो जाते है। उनकी कल्पनाशीलता धीरे- धीरे यथार्थ पर आधारित होने लगती है।
- पलट कर के सोचने की समझ तथा संख्या तथा परिमाण के आधार पर सही समझ भी धीरे- धीरे विकसित होने लगती है। अधिक या कम बटनों को वे संख्या के आधार पर समझना प्रारम्भ कर देते हैं। उनकी समझ में यह बात भी आ जाती है कि समान मात्रा का दूध अलग- अलग आकार के के बर्तनों में होने के बाद भी बराबर होता है। इतना होने पर भी इस अवस्था में मानसिक क्रियाएं अधिकांशत मूर्त या स्थूल रूप में ही उपयोग में लाई जाती है।
अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Period of Formal Operations)
अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था संज्ञानात्मक विकास की अंतिम अवस्था है जो लगभग 11-15 की आयु तक होती है । इस अवस्था की मानसिक विकास के महत्वपूर्ण बिंदु निम्नवत हैं-
- संप्रत्ययों की समझ पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है भाषाई दक्षता एवं सम्प्रेषण तक पहुँचने के लिए विचार, सोच, तर्क, कल्पना, निरीक्षण, परिक्षण, अवलोकन, प्रयोग आदि करने के योग्य हो जाता है ।
- स्मरण करने की योग्यता रटने के स्थान पर तर्क एवं समझ पर निर्भर करने लगती है।
- चिंतन करने के लिए चीजों का मूर्त रूप में दिखाना आवश्यक नहीं रह जाता है । अ, बी, स, द एक चतुर्भुज है, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत आदि की कल्पना संभव हो जाती है। वस्तुओं का निर्माण करने के लिए कल्पनाशक्ति क प्रयोग प्रारम्भ हो जाता है। तथ्यों, सूचनाओं से होते हुए नियमों और सिद्धांतों की समझ विकसित होने लगती है। सृजनात्मकता के लिए आवश्यक योग्यताएं जैसे खोज करना, रचना करना, मौलिक चिंतन करना आदि बौद्धिक योग्यताएं विकसित हो जाती हैं।
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का निष्कर्ष
- सीखने के प्रक्रिया सहज सरल व सुगम बन सके इस के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों की आयु के अनुरूप शिक्षण व्यवस्था का आयोजन किया जाए।
- प्रारम्भ में भाषा आधारित शब्दों से जुड़े संप्रत्ययों को अधिकाधिक मूर्त रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- अवस्था आधारित विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यवस्तु का निर्धारण एवं पाठ्य सामग्री का निर्माण किया जाना चाहिए ।
- औपचारिक शिक्षा 07 वर्ष से प्रारम्भ करनी चाहिए। इस व्यवस्था के अंतर्गत मूर्त चिंतन से अमूर्त चिंतन की ओर बढ़ने के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास किए जाने चाहिए।
- निरीक्षण, प्रयोग, तथा खोज करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
- वस्तुओं की पहचान तथा सम्प्रत्ययों के समझ विकसित करने के उपरान्त सूचनाओं तथा तथ्यों के आधार पर नियमों एवं सिद्धांतों की समझ विकसित करने हेतु उपयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए ।
- विद्यालयों एवं कक्षा-कक्षों में ऐसा वातावरण सृजित किया जाना चाहिए जिससे 11-15 वर्ष की आयु के विद्यार्थी कर की सीखना, निष्कर्षों तथा परिणामों तक पहुँचने के लिए आगमन तथा निगमन विधियों का उपयोग करना, क्रमबद्ध तरीके से तार्किक चिंतन करने की योग्यता प्राप्त कर सकें ।
- इस कार्य को करने हेतु सुसज्जित प्रयोगशालाओं के साथ- साथ शैक्षिक भ्रमणों, योजना विधि, विज्ञान संग्रहालय तथा प्रकृति से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए ।
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