मारी नगर की विशेषता : 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी नगर फ़रात नदी की उर्ध्वधारा पर स्थित है जबकि नगर के दक्षिण
मारी नगर की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए
मारी नगर की विशेषता : 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी नगर फ़रात नदी की उर्ध्वधारा पर स्थित है जबकि नगर के दक्षिण के मैदानी भाग खेती की होती थी। मारी राज्य में वैसे तो किसान और पशुचारक दोनों ही तरह के लोग होते थे, लेकिन उस प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था।
पशुचारकों को जब अनाज, धातु के औज़ारों आदि की जरूरत पड़ती थी तब वे अपने पशुओं तथा उनके पनीर, चमड़ा तथा मांस आदि के बदले ये चीजें प्राप्त करते थे। बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भी किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। फिर भी, किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार झगड़े हो जाते थे। गड़रिये कई बार अपनी भेड-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हए खेतों से गुज़ार कर ले जाते थे जिससे किसान की फसल को नुकसान पहुँचता था। ये गड़रिये खानाबदोश होते थे और कई बार किसानों के गाँवों पर हमला बोलकर उनका इकट्ठा किया माल लूट लेते थे। दूसरी तरफ, कई बार ऐसा भी होता था कि बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन पशुचारकों का रास्ता रोक देते थे और उन्हें अपने पशुओं को नदी-नहर तक नहीं ले जाने देते थे।
पशुपालन : मेसोपोटामिया के इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि वहाँ के कृषि से समृद्ध हुए मुख्य भूमि प्रदेश में यायावर समुदायों के झुंड के झुंड पश्चिमी मरुस्थल से आते रहते थे। ये गड़रिये गर्मियों में अपने साथ इस उपजाऊ क्षेत्र के बोए हुए खेतों में अपनी भेड़-बकरियाँ ले आते थे। ये समूह गड़रिये, फसल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे और समृद्ध होकर यहीं बस जाते थे। उनमें से कुछ ने तो अपना खुद का शासन स्थापित करने की भी शक्ति प्राप्त कर ली थी। ये खानाबदोश लोग अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आर्मीनियन जाति के थे।
विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण : मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी और उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर ही नहीं किया बल्कि स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन (Dagan) के लिए मारी नगर में एक मंदिर भी बनवाया। इस प्रकार, मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों के लिए खुली थी और संभवतः विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोगों के परस्पर मिश्रण से ही वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न हो गई।
जन-जातीय संघर्ष : मारी के राजाओं को सदा सतर्क एवं सावधान रहना पड़ता था; विभिन्न जन-जातियों के चरवाहों को राज्य में चलने-फिरने की इजाजत तो थी, परन्तु उन पर कड़ी नजर रखी जाती थी। राजाओं तथा उनके पदाधिकारियों के बीच हुए पत्र-व्यवहार में अक्सर इन पशुचारकों की गतिविधियों और शिविरों का उल्लेख किया गया है। एक बार एक पदाधिकारी ने राजा को लिखा था कि उसने रात को बार-बार आग से किए गए ऐसे संकेतों को देखा है जो एक शिविर से दूसरे शिविर को भेजे गए थे और उसे संदेह है कि कहीं किसी छापे या हमले की योजना तो नहीं बनाई जा रही है।
मारी नगर का राजमहल : मारी का विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास स्थान तो था ही, साथ ही वह प्रशासन और उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केंद्र भी था। उसके विशाल, खुले प्रांगण (जैसे 131) सुंदर पत्थरों से जड़े हुए थे। राजा विदेशी अतिथियों और अपने प्रमुख लोगों से कमरा-132 में मिलता था जहाँ के भित्ति-चित्रों को देखकर आगंतुक लोग हतप्रभ रह जाते थे। राजमहल 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में स्थित एक अत्यंत विशाल भवन था जिसमें 260 कक्ष बने हुए थे। नक्शा देखने से आपको पता चलेगा कि राजमहल का सिर्फ एक ही प्रवेश द्वार था जो उत्तर की ओर बना हुआ था। अपने समय में वह इतना अधिक प्रसिद्ध था कि उसे देखने के लिए ही उत्तरी सीरिया का एक छोटा राजा आया; वह अपने साथ मारी के राजा ज़िमरीलिम के नाम उसके एक अन्य राजा का परिचय पत्र लेकर वहाँ आया था।
खान-पान : दैनिक सूचियों से पता चलता है कि राजा के भोजन की मेज पर हर रोज भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ पेश किए जाते थे-आटा, रोटी, मांस, मछली, फल, मदिरा और वीयर। वह संभवतः अपने अन्य साथियों के साथ सफ़ेद पत्थर जड़े आँगन (106) में बैठकर बाकायदा भोजन करता था।
मारी एक व्यापारिक नगर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
मारी एक व्यापारिक नगर : मारी नगर एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा और अन्य कई किस्मों का माल नावों के जरिए फ़रात नदी के रास्ते दक्षिण और तुर्की, सीरिया और लेबनान के ऊँचे इलाकों के बीच लाया-ले जाया जाता था। मारी नगर व्यापार के बल पर समृद्ध हुए शहरी केंद्र का एक अच्छा उदाहरण है। दक्षिणी नगरों को घिसाई-पिसाई के पत्थर, चक्कियाँ, लकड़ी और शराब तथा तेल के पीपे ले जाने वाले जलपोत मारी में रुका करते थे, मारी के अधिकारी जलपोत पर जाया करते थे, उस पर लदे हुए सामान की जाँच करते थे (एक नदी में 300 मदिरा के पीपे रखे जा सकते थे।) और उसे आगे बढ़ने की इजाज़त देने से पहले उसमें लदे माल की कीमत का लगभग 10 प्रतिशत प्रभार वसुल करते थे। जौ एक विशेष किस्म की नौकाओं में आता था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कुछ पट्टिकाओं में साइप्रस के द्वीप 'अलाशिया' (Alashiya) से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है, यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए मशहूर था। परंतु यहाँ राँगे का भी व्यापार होता था। क्योंकि काँसा, औज़ार और हथियार बनाने के लिए एक मुख्य औद्योगिक सामग्री था, इसलिए इसके व्यापार का बहुत महत्त्व था। इस प्रकार, यद्यपि मारी राज्य सैनिक दृष्टि से उतना सबल नहीं था, परंतु व्यापार और समृद्धि के मामले में वह अद्वितीय था।
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