वर्तमान भारत में स्त्रियों की परम्परागत स्थिति सुधार 1. शिक्षा के सम्बन्ध में सुधार 2. सामाजिक स्थिति में सुधार 3. राजनैतिक क्षेत्र में समान भागीदारी
वर्तमान भारत में स्त्रियों की परम्परागत स्थिति में कौन-कौन से परिवर्तन हुए हैं ?
वर्तमान भारत में स्त्रियों की परम्परागत स्थिति सुधार
- 1. शिक्षा के सम्बन्ध में सुधार
- 2. सामाजिक स्थिति में सुधार
- 3. राजनैतिक क्षेत्र में समान भागीदारी
- 4. परिवार और विवाह के सम्बन्ध में उच्चस्थिति
- 5. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण
स्त्रियों की परम्परागत स्थिति में परिवर्तन भारत में स्त्रियाँ मध्यकालीन युग की परिस्थितियों में रहती थीं और इनका पर्याप्त शोषण हो रहा था। इसी शोषण के विरुद्ध स्त्रियों का महिला आन्दोलन प्रारम्भ हुआ और उनके ऊपर लादी गई समस्त परम्परागत निर्योग्यताओं को चुनौती दी गई। इस चुनौती के सन्दर्भ में भारतीय स्त्रियों की स्थिति में अनेक सुधार हुए और वर्तमान समाज में हिन्दू नारी की स्थिति पहले से कहीं अधिक अच्छी है जो कि निम्नलिखित वर्णन से स्पष्ट है।
1. शिक्षा के सम्बन्ध में सुधार - स्त्रियों की शिक्षा के सम्बन्ध में वर्तमान समय मे पर्याप्त सुधार हा हैं। सन 1951 की जनगणना के अनुसार प्रत्येक 1,000 स्त्रियों में केवल 88 स्त्रियाँ शिक्षित थी. परन्तु सन 1961 की जनगणना से पता चलता है कि प्रत्येक 1.000 स्त्रियों में 220 हो गयी, जबकि सन 1991 की जनगणना के अनुसार 28 करोड़ 17 लाख साक्षर पुरुषों की तुलना में 17 करोड़ 26 लाख स्त्रियाँ साक्षर थीं। 2001 की जनगणना अनुसार देश में साक्षरता दर 65.38 % थी। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश में इस समय कुल 33.42 करोड़ महिलाएँ साक्षर हैं। इस दशक में महिलाओं की साक्षरता में 11.28 की वृद्धि हुई है। आज स्त्रियाँ केवल सामान्य शिक्षा ही नहीं अपितु तकनीकी शिक्षा से लेकर व्यावसायिक सभी प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। देश भर में अकेले महिलाओं के लिए 6 विश्वविद्यालय हैं। सरकार की ओर से भी स्त्रियों को निःशुल्क शिक्षा, प्राइवेट शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा, छात्रवृत्तियाँ आदि देकर स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। शिक्षा संस्थाओं व सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।
2. सामाजिक स्थिति में सुधार - स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् स्त्रियों की स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ है। उनमें सामाजिक चेतना की आज एक नयी लहर देखने को मिलती है। जो स्त्रियाँ किसी समय घर के बाहर दूर, घर के दरवाजे या खिड़की में से बाहर झाँक भी नहीं सकती थी। वहीं आज घर के बाहर जाकर नौकरी करती हैं, क्लब जाती हैं, और इसी अनेक सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। वे रूढ़िवादी विचारों से दूर होती जा रही हैं और नये तार्किक आदर्शों और मूल्यों को भी अपनाती जा रही हैं। पर्दा प्रथा प्रायः अब समाप्त हो गयी हैं समाज में भी अब उनको आदर की दृष्टि से देखा जाता है। संयुक्त परिवार में उनकी स्थिति परम्परागत स्थिति से कहीं अधिक अच्छी है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि सामाजिक क्षेत्र में वर्तमान भारत में स्त्रियों की स्थिति पहले से कहीं अधिक अच्छी है।
3. राजनैतिक क्षेत्र में समान भागीदारी - स्वतंत्रता से पूर्व सभी स्त्रियों को वोट देने का अधिकार नहीं था, परन्तु आज की प्रत्येक नारी को वोट देने का तथा स्वयं भी लोकसभा, विधानसभा आदि के सदस्य के लिए उम्मीदवार होने का अधिकार है। अब तो पंचायत नगरपालिका आदि के चुनाव में काफी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई हैं। दिसम्बर 2006 तक पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं का कुल प्रतिनिधित्व 36.7 % था। फलस्वरूप देश में स्त्रियों में पर्याप्त राजनीतिक चेतना आई है। आज स्त्रियाँ लोकसभा की सदस्या भी है और मन्त्री भी। समय-समय पर कई राज्यों में सशक्त महिला मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रही हैं और आज भी हैं। भारत के प्रथम नागरिक पद पर भी महिला का अधिकार रहा है।
4. परिवार और विवाह के सम्बन्ध में उच्चस्थिति - परिवार और विवाह के सम्बन्ध में आज भारतीय नारी की स्थिति कही अधिक उच्च है। सन् 1929 के "बाल विवाह अवरोध अधिनियम द्वारा बाल विवाह का अन्त कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी माता पिता लड़की का विवाह 15 वर्ष की आयु से पहले नहीं कर सकता । अब न्यूनतम आयु को भारत सरकार ने 15 से बढ़ाकर 18 फिर बढ़ा कर 19 कर दी है। 1961 के "दहेज प्रतिबन्ध अधिनियम के द्वारा दहेज देना अपराध घोषित कर दिया गया। सन् 1955 के 'हिन्दू विवाह' तथा विवाह-विच्छेद अधिनियम' और सन 1954 के 'विशेष विवाह अधिनियम' ने स्त्रियों को धार्मिक व अन्य सभी प्रकार के प्रतिबन्धों से दूर विवाह करने की आज्ञा दे दी है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विवाह और परिवार के क्षेत्र में स्त्रियों की स्थिति अपेक्षतया उच्च है। इस सम्बन्ध में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005' भी बहुत सहायक रहा है।
5. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण - आर्थिक दृष्टिकोण से भी आज स्त्रियों की स्थिति उच्च है। वे अब केवल पति पर ही आश्रित नहीं हैं, वे आज स्वयं भी जीतिकोपार्जन कर रही है। वकील हैं. प्रोफेसर हैं. एकाउण्टेण्ट हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं, डाक्टर हैं, नर्स है पुलिस अधिकारी हैं फैक्टरी में मैनेजर हैं, जज हैं और यहाँ तक कि हवाई जहाज की चालक भी है। सन् 1956 के हिन्द उत्तराधिकारी अधिनियम के द्वारा हिन्दू स्त्रियों को माता-पत्नी और पुत्री के रूप में पुरुष के समान ही सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हो गये हैं। मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति में सुधार के दृष्टिकोण से भारत सरकार ने 'मस्लिम महिला अधिनियम, 1956 पास किया है। इन सब बातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में निश्चिय ही स्त्रियों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हआ है। आज आर्थिक जीवन के सभी क्षेत्रों में स्त्रियाँ परुषों से पीछे नहीं है। बडे-बडे आर्थिक संस्थाओं के उच्चतम पदों पर आज व आसीन हैं।
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