विसंगति और विडंबना पर समीक्षात्मक टिप्पणी कीजिए। आधुनिक आलोचना की एक प्रवृत्ति है--रूपात्मक समीक्षा, जिसका प्रचलित नाम नयी समीक्षा है। नयी समीक्षा का
विसंगति और विडंबना पर समीक्षात्मक टिप्पणी कीजिए।
विडंबना
आधुनिक आलोचना की एक प्रवृत्ति है--रूपात्मक समीक्षा, जिसका प्रचलित नाम नयी समीक्षा है। नयी समीक्षा का मूल सिद्धांत है कि कविता का स्वतंत्र और सुनिश्चित अस्तित्व है, जो कवि तथा सामाजिक परिवेश से पृथक् है। नयी समीक्षा के उन्नयाकों में जान को रैन्सम, एलन टैट, रिचर्ड पी. ब्लैकमर और कलीन्थ ब्रुक्स प्रमुख हैं।
विडंबना नयी समीक्षा का मूलभूत शब्द है, जिससे उसका अन्तःस्वरूप समझा जा सकता है। नयी समीक्षा को भाषिक सरंचना भी कहा जाता है। क्लीन्थ बुक्स ने अपनी आलोचनात्मक शब्दावली में विडंबना शब्द का प्रयोग किया है और उसे व्यापक अर्थ देने का प्रयास किया है। विडंबना काव्य भाषा का अपना गुण है, जो उसे विद्वान की अभिधात्मक भाषा से अलग करता है। विडंबना के संबंध में उनका कथन है--
"Irony is the most general term that we have for the kind of qualitication which the various elements in the context. This kind of qualification......................is oftremendous importance in any poem. More over irony is our most general term for indicating that recognitions of incongruities.''
अर्थात् विडंबना एक खास सन्दर्भ में आये हुए अन्तर्विरोधों द्वारा पहचानी जाती है। विडंबना काव्य भाषा का सामान्य वैशिष्ट्य है।
अरस्तू की भाषा में यह विपरीत अर्थ धारण करने वाले रूपक हैं। कॉलरिज इसी को कल्पना.की संज्ञा देते हैं। इस प्रकार विडंबना व्यक्तियों की वक्रता है । इसे व्यापक अर्थ में ग्रहण न करने के कारण हिन्दी समीक्षा में मजाक को भी कविता मानने का आग्रह किया जाने लगा है।
विसंगति
काव्य-भाषा के अनोखेपन या भाषिक सृजन को नये समीक्षकों ने अपने-अपने ढंग से व्यक्त किया है। क्लीन्थ ब्रुक्स इसे विसंगति में देखते हैं। एलन टेट इसे तनाव शब्द द्वारा विवेचित करते हैं । रैन्सम की दृष्टि में यह टेक्श्चर और स्ट्रक्चर का तनाव है, जबकि टेक्श्चर और स्ट्रक्चर में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। ब्लैकमर भाषा को जेश्चर या सांकेतिकता मानते हैं, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति रचना की आन्तरिक संगति शब्दों के पारस्परिक संबंध या संरचना को ही काव्य कहता है।
संरचना का अभिप्राय मूल्यांकन और अर्थापन की सरंचमा है। इसमें अन्विति का सिद्धांत निहित होता है, जो लाक्षणिकता, अभ्युद्देश्य और अर्थों को संगतिपूर्ण और संतुलित बनाता है। अन्विति की प्रकृति जटिल होती है। यह एक ही प्रकार के अनेक तत्त्वों को समंजित नहीं करती, अपितु एक-दूसरे के विरोधी तत्त्वों में सामंजस्य स्थापित करती है। इसमें प्रक्रिया विरोधी तत्त्वों को अन्तर्भुक्त किया जाता है, क्योंकि यह निश्चयात्मक अन्विति है। अन्तर्विरोधों के इस सामंजस्य को ब्रुक्स विसंगति में देखता है। विसंगति काव्य-भाषा का अपना गुण है। अतः विसंगति अन्तर्विरोधी का सामंजस्य है । रैन्सम उपमा और रूपक को ऐसा सटीक साधन मानते हैं, जिनसे काव्य में असंगति पैदा होती है। क्लीन्थ के मत में काव्य रचना का आधार विसंगति है। कविता मूलतः भाव या अनुभूति है, जिसे व्यक्त करने के लिए विशिष्ट भाषा की जरूरत होती है। भारतीय आचार्यों ने इसे 'विशिष्टौ शब्दार्थों काव्यम्' कहा है। क्रोक्ति सम्प्रदाय विसंगति जैसे तत्त्व पर ही आधारित है।
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