काव्यात्मक अंतर्विरोध को स्पष्ट कीजिये।
काव्यात्मक अंतर्विरोध : नयी समीक्षा में काव्यात्मक अंतर्विरोध की चर्चा भी विस्तार से हुई है। कविता में विरोधी शक्तियों और अर्थों की परस्पर सम्बद्धता में तनाव की उपस्थिति मानी गयी है। विलियम एम्पसन शब्द के विभिन्न अर्थों के मध्य आये तनाव से काव्य-भाषा का विश्लेषण करते हैं। रैन्सम-तन्तु विन्यास व संरचना में अंतर्विरोध देखते हैं तो क्लीन्थ ब्रुक्स सन्दर्भ और उक्ति की विसंगतिपूर्ण स्थिति में। रिचर्ड्स की काव्य-मूल्य विषयक धारणा का आधार अंतर्विरोध है जो प्रमाता के चित्त में उत्पन्न अधिक से अधिक विरोधी रागात्मक प्रतिक्रियाओं का समीकरण करने में सफल होती है, उसका उतना ही मूल्य है अर्थात् प्रमाता की चेतना में विविध प्रकार की, प्रायः विरोधी चित्तवृत्तियों के उद्बोध और समाधान की क्षमता। यह कार्य काव्य अथवा संवेद्य भाव सामग्री के संयोजन के दूसरी ओर शब्दार्थ के विधान द्वारा सम्पन्न होता है।
ऐलेन टेट अंतर्विरोध' को स्पष्ट करने के लिए 'तनाव' को सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत करते हैं। तनाव वहाँ होता है, जहाँ कविता में शाब्दिक और रूपकात्मक अर्थ एक साथ उपस्थित होते हैं।
शाब्दिक अर्थ को एलेन टेट ने बहिर्मुख तनाव और रूपकात्मक अर्थ को आन्तरिक तनाव कहा है। इन दोनों में जितना अधिक तनाव और अंतर्विरोध होगा, कविता उतनी ही उत्तम होगी। यह अंतर्विरोध ही कविता का काव्यत्व है और भाषिक होने के कारण काव्य संरचना का विषय भी है।
एम्पसन ने अंतर्विरोध को श्लेष का एक भेद माना है, वे शब्द-विशेष के अर्थ--संदर्भ के अन्तर्गत दो परस्पर विरोधी भावों की इस प्रकार व्यंजना करते हैं कि कुल मिलाकर उनके द्वारा कवि या वक्ता के मन्तव्य में निहित मूलवर्ती अंतर्विरोध का संकेत मिलता है।