तुलनात्मक राजनीति में संरचनात्मक कार्यात्मक दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिए। संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण के विषय में बताइये ? 'संरचनात्मक प्रकार्यात
तुलनात्मक राजनीति में संरचनात्मक कार्यात्मक दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिए।
- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण के विषय में बताइये ?
- 'संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम' का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- आमण्ड का संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम क्या है ?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
हम तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण के आधुनिक उपागम की अनेक धाराओं की पहचान कर सकते हैं। इनमें से दो धाराएँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। एक धारा राजनीतिक प्रणाली की संकल्पना के साथ जुड़ी है। इसमें राजनीतिक को सामाजिक पर्यावरण का अंग मानते हुए उसमें आने वाले आगत तत्वों और उसमें पैदा होने वाले निर्गत-तत्वों का विश्लेषण किया जाता है। इस धारा का मुख्य अंग संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण है। दूसरी धारा के अन्तर्गत राजनीति और अर्थव्यवस्था के श्रृंखला सम्बन्ध पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इस आगम को राजनीतिक अर्थव्यवस्था उपागम की संज्ञा दी जाती है।
तुलनात्मक राजनीति में संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण - संरचनात्मक कृत्यात्मक विश्लेषण वस्तुतः प्रणाली-विश्लेषण का ही विकसित रूप है। तुलनात्मक राजनीति में संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम के प्रयोग की प्रेरणा रैडक्लिफ-ब्राउन और बी० मैलीनोस्की सरीखे मानव-वैज्ञानिकों की कृतियों से आई है।
इन अनुसन्धानकर्ताओं ने अनेक जनजातीय समुदायों (Tribal Communities) के अध्ययन में कृत्यात्मक उपागम का प्रयोग करते हुए यह दिखाया था कि इनके कुछ विशेष कृत्य-जैसे कि विधि-विधान (Rituals), मन्त्र-तन्त्र (Magic) और धर्म-कर्म (Rites) इनमें एकता कायम रखने में किस तरह सहायक सिद्ध होते हैं ? इस तरह मानव-वैज्ञानिकों ने आदिम जातियों (Primitive Communities) के अध्ययन के लिए उपयुक्त सैद्धान्तिक ढाँचा तैयार कर दिया था। परन्तु सभ्य समाज के अध्ययन के लिए ऐसा सैद्धान्तिक ढाँचा तैयार करने का श्रेय प्रसिद्ध समाज-वैज्ञानिक टैल्कट पार्संस को है। उसके बाद गेब्रियल ऑल्मंड ने राजनीति-विश्लेषण के लिए इस उपागम का उपयुक्त सैद्धान्तिक ढाँचा विकसित किया।
समाज विज्ञान के अन्तर्गत संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम का ध्येय उन कृत्यों का पता लगाना था जो समाज-व्यवस्था को कायम रखने की भूमिका निभाते हैं। अपेक्षित अनुसन्धान के बाद ऐसे चार कृत्यों की पहचान की गई
- लक्ष्य-सिद्धि-यह राज व्यवस्था का मुख्य कार्य है।
- अनुकूलन-इसके अन्तर्गत सामाजिक प्रणाली को कायम रखने के लिए अपेक्षित संसाधन जुटाए जाते हैं;
- एकीकरण-इसका ध्येय सामाजिक प्रणाली को अटूट रखना है,
- प्रतिमान अनुरक्षण-इसका ध्येय मूल्यों का सम्प्रेषण और तनाव प्रबन्धन है ताकि सामाजिक मूल्यों के प्रति समाज के अधिकांश सदस्यों की आस्था बनी रहे।
इस विस्तृत ढाँचे की तुलना में अमरीकी राजनीति-वैज्ञानिक आल्मंड ने राजनीतिक प्रणाली के सीमित क्षेत्र से जुड़े हुए कृत्यों की पहचान की है। ऑल्मंड ने ईस्टन के आगत-निर्गत विश्लेषण (Input-Output Analysis) को अधूरा मानते हुए 1960 में 'द पॉलिटिक्स ऑफ द डिवेलपिंग एरियाज' (विकासशील क्षेत्रों की राजनीति) के अन्तर्गत यह तर्क दिया कि ये आगत और निर्गत तत्व केवल राजनीतिक प्रणाली के कृत्य (Functions) हैं। ऑल्मंड ने न केवल इन कृत्यों का विस्तृत वर्गीकरण प्रस्तुत किया बल्कि ऐसे प्रत्येक कृत्य के लिए उपयुक्त संरचनाओं (Structures) की भी पहचान की। इस तरह ऑल्मंड ने राजनीति-विश्लेषण के क्षेत्र में संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का सूत्रपात किया।
ऑल्मंड ने चार प्रकार के आगत कृत्यों (Input Functions) और तीन प्रकार के निर्गत कृत्यों (Output Functions) तथा इनके साथ जुड़ी हुई संरचनाओं का पता लगाया। वैसे किसी भी कृत्य के लिए अनेक संरचनाओं की जरूरत हो सकती है और कोई भी संरचना अनेक कृत्यों को सम्पन्न करने में अपना योग दे सकती है।
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