राजनीतिक सिद्धांत तथा राजनीतिक दर्शनशास्त्र के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। राजनीतिक सिद्धांत व राजनीतिक दर्शनशास्त्र में अंतर राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक
राजनीतिक सिद्धांत तथा राजनीतिक दर्शनशास्त्र के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
राजनीतिक सिद्धांत व राजनीतिक दर्शनशास्त्र में अंतर
दर्शनशास्त्र का दूसरा नाम है 'ज्ञान का विज्ञान' (Science of Knowledge) अर्थात् इस संसार, व्यक्ति तथा ईश्वर के बारे में ज्ञान। यह वह ज्ञान है जो किसी भी विषय की सूक्ष्म व्याख्या करने में सक्षम होता है। जब यह ज्ञान राजनीतिक क्षेत्र अर्थात् राज्य की व्याख्या करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है तो उसे राजनीतिक दर्शनशास्त्र का नाम दिया जाता है। राजनीतिक दर्शनशास्त्र का संबंध नैतिक राजनीतिक सिद्धांतों से है अर्थात् राजनीतिक दर्शनशास्त्र का संबंध केवल 'क्या है' की व्याख्या करना नहीं होता बल्कि 'क्या होना चाहिये' की व्याख्या से अधिक होता है। इसी तरह, यह केवल समकालीन राजनीतिक विषयों की व्याख्या नहीं करता बल्कि इसका संबंध व्यक्ति के राजनीतिक जीवन के कुछ अजर और अमर विषयों की व्याख्या करना होता है, जैसे राजनीतिक संगठन की प्रकृति और उद्देश्य, राजनीतिक सत्ता के आधार, अधिकार, स्वतन्त्रता, समानता, न्याय आदि की प्रकृति। राजनीतिक दर्शन-शास्त्र और राजनीतिक सिद्धांत में अन्तर इस तरह स्पष्ट किया जा सकता है कि राजनीतिक दार्शनिक राजनीतिक सिद्धांतकार तो हो सकता है परन्तु राजनीतिक सिद्धांतकार जरूरी नहीं कि राजनीतिक दार्शनिक भी हो। उदाहरण के लिये, अमरीका के प्रमुख राजनीति-वैज्ञानिक डेविड ईस्टन के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक सिद्धांतकार तो हैं परन्तु उसे राजनीतिक दार्शनिक नहीं माना जाता। यद्यपि राजनीतिक सिद्धांत भी उन्हीं विषयों पर विचार करते हैं जिन पर राजनीतिक दर्शनशास्त्र करता है, परन्तु सिद्धांत उन विषयों की दार्शनिक और व्यवहारिक. दोनों दृष्टिकोणों से व्याख्या करते हैं। दूसरे शब्दों में, जहाँ राजनीतिक दर्शन अमूर्त और काल्पनिक होता है वहाँ सिद्धांत नैतिक और व्यवहारिक दोनों होते हैं। राजनीतिक सिद्धांतकार राज्य की प्रकृति और उद्देश्यों की व्याख्या करने में उतनी ही रुचि रखता है जितनी व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार, व्यक्ति और राज्य में वास्तविक संबंध या समाज में शक्ति की भूमिका का अध्ययन करने का। जैसा कि ब्रेख लिखते हैं, दार्शनिक व्याख्यायें भी सिद्धांत होते हैं, परन्तु वह अवैज्ञानिक होते हैं। राजनीतिक सिद्धांतों का संबंध राजनीतिक संस्थाओं तथा उन संस्थाओं के वैचारिक और प्रेरणादायक आधार, दोनों से है। तथापि हम केवल अध्ययन के दृष्टिकोण से ही राजनीतिक दर्शन और सिद्धांतों में भेद कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि यदि सिद्धांतों को दर्शनशास्त्र से अलग कर दिया जाये तो इनका अर्थ और व्याख्यायें विकृत हो जायेंगी तथा यह तर्कसंगत नहीं रहेंगे। सिद्धांतों की दर्शनशास्त्र से आपूर्ति करना आवश्यक है।
राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक विज्ञान में अंतर
अध्ययन के विषय के रूप में राजनीति विज्ञान अपेक्षाकृत एक व्यापक विषय है जिसमें राजनीतिक चिन्तन, सिद्धांत, विचारधारा, संस्थायें, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय कानून सभी का समावेश किया जा सकता है। राजनीतिक विज्ञान का एक स्वतन्त्र विषय के रूप में स्थापित हो जाने के बाद राजनीतिक सिद्धांत उसका एक भाग बन गये। परन्तु यदि हम राजनीतिक विज्ञान में प्रयुक्त 'विज्ञान' शब्द को सिद्धांतों' से अन्तर करने के सन्दर्भ में प्रयोग करते हैं तो हम राजनीतिक की उस शाखा की बात करते है, जो अपने अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति' (Scientific method) का प्रयोग करती है और उस दार्शनिक पद्धति से भिन्न है जो अपनी आत्मा की आवाज सुनने के लिये स्वतन्त्र है। एक लेखक के अनुसार, वे राजनीतिक सिद्धांत जो दर्शनशास्त्र का विरोध करते हैं, राजनीति विज्ञान है।
राजनीतिक सिद्धांतों में दर्शन और विज्ञान का सम्मिश्रण होता है। विज्ञान का संबंध वास्तविक राजनीतिक व्यवहार, व्यवहारिक प्रमाणों के आधार, व्यक्ति और राजनीतिक संस्थाओं के बारे में सामान्य निष्कर्ष तथा समाज में शक्ति की भूमिका आदि विषयों की व्याख्या और उनका वर्णन करने से है। इसके विपरीत, राजनीतिक सिद्धांतों का संबंध केवल व्यवहारिक पक्ष से ही। नहीं बल्कि उन उद्देश्यों का निर्धारण करने से भी है जो राज्य, सरकार तथा समाज के राजनीतिक जीवन में व्यक्ति के उचित व्यवहार तथा शक्ति के न्यायोचित प्रयोग के लिये अपनाने चाहिये। संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत न तो शुद्ध चिन्तन है और न ही दर्शन अथवा विज्ञान। अपने अध्ययन को परिष्कृत करने के लिये ये इन सबसे सहायता लेते हैं परन्तु फिर भी ये सबसे भिन्न है। समकालीन राजनीतिक दर्शन और विज्ञान में समन्वय करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
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