तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए। तुलनात्मक राजनीति में अर्थशास्त्रीय उपागम के अन्तर्गत राजनीतिक अर्थव्यवस्था दृ
तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
- तुलनात्मक राजनीति के राजनीतिक अर्थशास्त्रीय उपागम पर निबंध लिखिए।
- आर्थिक उदारीकरण का अर्थ क्या है?
तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण
तुलनात्मक राजनीति में अर्थशास्त्रीय उपागम के अन्तर्गत राजनीतिक अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण विश्लेषण का एक प्रमुख प्रतिरूप है। एडम स्मिथ के चिंतन में राजनीतिक अर्थशास्त्र के उदारवादी दृष्टिकोण का सर्वोत्तम निरूपण देखने को मिलता है। स्मिथ ने अपनी विख्यात कृति 'इंक्वायरी इंटू द नेचर एंड कॉजेस ऑफ द वैल्थ ऑफ नेशन्स' (राष्ट्रों की संपदा की प्रकृति और कारणों का अन्वेषण) (1776) के अन्तर्गत इस विषय को बिल्कुल नए रूप में ढाल दिया। उन दिनों इस विषय के अन्तर्गत इस प्रश्न पर भी विचार किया जाता था कि कोई आर्थिक नीतियाँ (Economic Policies) नैतिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से कितनी उपयुक्त हैं ? अतः स्मिथ के चिंतन में भी इस प्रश्न का विस्तृत विवेचन किया गया है। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक आते-आते इस विषय के वैज्ञानिक चरित्र पर बल देते हुए इसका नाम अर्थशास्त्र रख दिया गया।
स्मिथ के सम्पूर्ण चिंतन की कुंजी एक स्वायत्त (Autonomous), स्वयं-नियमित (SelfRegulating) अर्थव्यवस्था की संकल्पना है जिसे उसने नागरिक समाज' (Civil Society) की संज्ञा दी है।
स्मिथ ने नागरिक समाज की चार मुख्य विशेषताओं को रेखांकित किया है-
- नागरिक समाज को राजनीतिक क्षेत्र (Political Sphere), अर्थात् राज्य से पृथक करना सम्भव है;
- यदि इसके कार्य में कोई बाधा न डाली जाए तो इसमें स्वयं-नियमन की क्षमता पाई जाती है;
- इसमें अपने समस्त सहभागियों (Participants) के लिए-जो अपने-अपने हित-साधन के लिए स्वतंत्र हों अधिकतम हितलाभ (Maximum Benefit) की स्थिति प्राप्त करने की सामर्थ्य रहती है; और इसीलिए,
- ऐसी वस्तुस्थिति लाना दार्शनिक दृष्टि से वांछनीय है जिसमें नागरिक समाज को राज्य से स्वाधीन कर दिया जाए।
स्मिथ ने विशेष रूप से वाणिज्य (Commerce) और स्वतंत्रता (Liberty) में निकट सम्बन्ध पर बल देते हुए यह तर्क दिया है कि वाणिज्य की वृद्धि से स्वतंत्रता की वृद्धि होती है, और स्वतंत्रता की वृद्धि से वाणिज्य की वृद्धि होती है। वाणिज्य को समृद्धि (Prosperity) की कुंजी मान सकते हैं, परन्तु अधिकतम समृद्धि की प्राप्ति के लिए वाणिज्य का निर्बाध संचालन अनिवार्य है। अतःस्वतंत्रता अपने-आप में वाणिज्य की वृद्धि की जरूरी शर्त है। जब वाणिज्य का विश्वव्यापी विस्तार होता है, और संपदा को तरल रूप (Liquid Form) में संचित करना संभव हो जाता है, अर्थात् उसे नकदी के रूप में जहाँ चाहे ले जा सकते हैं, तब सौदागर लोग राजनीतिक नृशंसतंत्र (Political Tyranny) से स्वाधीन हो जाते हैं और इसीलिए इससे स्वतंत्रता की वृद्धि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
तुलनात्मक राजनीति विश्लेषण के एक उपागम के नाते उदारवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत राजनीति और आर्थिक गतिविधि के बीच श्रृंखला-सम्बन्ध की तलाश की जाती है। जैसा कि चार्ल्स लिंडब्लोम ने अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स एण्ड मार्केट्स' (राजनीति और बाजार व्यवस्थाएँ) (1977) के अन्तर्गत लिखा है-"विश्व की सभी राजनीतिक प्रणालियों में अधिकांश राजनीति अपने आप में अर्थशास्त्र भी है, और अधिकांश अर्थशास्त्र राजनीति भी है।" अनेक युक्तियुक्त कारण यह माँग करते हैं कि बुनियादी सामाजिक यंत्र व्यवस्थाओं और प्रणालियों के विश्लेषण में राजनीति तथा अर्थशास्त्र को साथ-साथ रखना जरूरूी है।
इस उपागम ने राजनीति और अर्थशास्त्र के अध्ययन में अन्तर्विषयक उपागम (Interdisciplinary Approach) को बढ़ावा दिया है। इस उपागम के अन्तर्गत ऐसी संकल्पनाओं पर विशेष ध्यान जाता है जो राजनीतिक और आर्थिक गतिविधि में समान रूप में पाई जाती हैं, जैसे कि संसाधनों का आबंटन (Allocation of Resources), माँगें (Demands), लागत (Costs), उपयोगिता (Utility), इष्टतमकरण (Optimization), इत्यादि। अर्थशास्त्र के प्रतिरूपों (Models) को राजनीति विज्ञान में और राजनीति विज्ञान के प्रतिरूपों को अर्थशास्त्र में प्रयुक्त करके इन दोनों विषयों में एक -जैसे ढाँचों के प्रयोग की कोशिश की जाती है। इनके उदाहरण हैं, आगत-निर्गत विश्लेषण (Input-Output Analysis), खेल-सिद्धांत (Game theory) के प्रतिरूप, इने-गिने प्रतिस्पर्धियों के बीच प्रतिस्पर्धा (Oligopolistic Competition) के प्रतिरूप इत्यादि।
इस उपागम के अन्तर्गत मनुष्यों के राजनीतिक और आर्थिक व्यवहार (Behaviour) में समानता स्वीकार करते हुए दोनों के विश्लेषण के लिए एक-जैसी शब्दाबली और संकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है। अतः राजनीति की उन परिभाषाओं को विशेष मान्यता दी जाती है जिनमें चयन (Choice), निर्णयन (Decision-making), इष्ट वस्तुओं के लिए प्रतिस्पर्धा, इत्यादि को प्रमुखता दी जाती है। उदाहरण के लिए, इसमें राजनीतिक प्रक्रिया को विनिमय (Exchange) की प्रक्रिया माना जाता है, चुनाव (Election) को बाजार की स्थिति (Market Situation) के रूप में देखा जाता है और वोट को मुद्रा (Money) के तुल्य समझा जाता है जिसके बदले में मनचाही नीतियाँ तथा कार्यक्रम प्राप्त किए जा सकते हैं। गठबंधन निर्माण (Coalition Formation) और दो-दलीय प्रणालियों (Two-Party Systems) को ऐसी बाजार-प्रणालियों के रूप में देखा जाता है जिनमें इने-गिने या दो पक्षों के बीच प्रतिस्पर्धा पाई जाती है। इसमें यह माना जाता है कि विभिन्न व्यक्ति और संगठन अपने-अपने स्वार्थ के अनुरूप तर्कसंगत व्यवहार करते हैं। इस उपागम के अन्तर्गत राजनीतिक प्रक्रिया में संघर्ष (Conflict) के बजाय सहयोग (Co-operation) के तत्वों को प्रमुखता दी जाती है जो कि उदारवादी दृष्टिकोण की विशेषता है। इसके अनुसार राजनीति का सरोकार इन समस्याओं से है-संसाधनों का आबंटन (Allocation of Resources) कैसे किया जाए और समाज कल्याण का स्तर कैसे उन्नत किया जाए ? अत: राजनीतिक प्रक्रिया के भीतर जो विकल्प (Alternatives) पाए जाते हैं उनका सरोकार वित्त-व्यवस्था, बजट और कराधान से होता है तथा इसमें यह देखा जाता है कि कौन-सा विकल्प अपनाने से राजनीतिक संरचनाओं (Political Structure) पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? इस तरह तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में समाजवैज्ञानिक और आर्थिक प्रतिरूपों के प्रयोग की होड़-सी लग गई है।
इस उपागम के विकास में एंथनी डाउन्स (ऐंन इकोनॉमिक थ्योरी आफ डेमोक्रेसी : लोकतन्त्र का आर्थिक सिद्धांत) (1957), जे० बुकैनन और जी० टल्लॉक (द कैल्कुलस ऑफ कंसेंट : सहमति का गणनाशास्त्र) (1962), एम० ओस्लन (द लॉजिक ऑफ कलैक्टिव एक्शन: सामूहिक कार्रवाई का तर्कशास्त्र) (1965), तथा ऑर० करी और एल० वेड (ए थ्योरी ऑफ पॉलिटिकल एक्सचेंज : राजनीतिक विनिमय का सिद्धांत) (1968) का विशेष योगदान रहा है।
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