गाँव एवं नगर में पारस्परिक संबंध / अन्तःक्रिया : गाँव एवं नगरों के मध्य अनेकों विभिन्नताओं के पाये जाने के साथ-साथ कुछ समानतायें भी पायी जाती हैं। इन
गाँव और शहर में परस्पर सम्बन्ध बताइये
- ग्रामीण नगरीय सातत्य को समझाइए
- अथवा गांव और नगर की पारस्परिक निर्भरता को स्पष्ट कीजिये।
- अथवा गांव एवं नगर में पारस्परिक अन्तःक्रिया को स्पष्ट कीजिये।
गाँव एवं नगर में संबंध / ग्रामीण नगरीय सातत्य
गाँव एवं नगर में संबंध / ग्रामीण नगरीय सातत्य : गाँव एवं नगरों के मध्य अनेकों विभिन्नताओं के पाये जाने के साथ-साथ कुछ समानतायें भी पायी जाती हैं। इन दोनों में पारस्परिक अन्तःक्रिया होती रहती है, परिणामस्वरूप दोनों का ही जीवन परिवर्तित होता रहता है। इन दोनों की पारस्परिक क्रियाओं के कारण अनेकों प्रक्रियाओं का जन्म हुआ है। जैसे - ग्रामीणीकरण, नगरीकरण, ग्राम्य-नगरीकरण एवं ग्राम्य-नगरीय नैस्तर्य आदि। इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप गाँव एवं नगरों की विशेषताओं का मिला-जुला रूप प्रकट हुआ। औद्योगीकरण एवं आर्थिक-सामाजिक विकास के फलस्वरूप ग्रामों की आत्मनिर्भरता का अन्त हुआ। वर्तमान समय में नगरों को कच्चे माल की प्राप्ति के लिए ग्रामों पर आश्रित रहना पड़ता है और नगरों की चमक-दमक ने ग्रामवासियों को नगरों की ओर आकर्षित किया है। ग्राम एवं नगर के सम्पर्क और अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप एक समन्वयपूर्ण अवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसमें ग्रामीण एवं नगरीय विशेषताओं की सहउपस्थिति दृष्टिगत होती है। नगर के लोग नगर से दूर खुली हवा में अपना आवास बनाते है और वहाँ बगीचा लगाकर प्राकृतिक वातावरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं। इन आवास में नगरों की सम्पूर्ण सुविधायें उपलब्ध होती हैं, जबकि इनमें निवास करने वाले लोग नगरीय व्यवसाय पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार हम ग्राम्य-नगरीकरण और ग्राम-नगर नैस्तर्य की प्रक्रियाओं को ग्राम एवं नगर के पारस्परिक सम्बन्धों के परिणामस्वरूप घटित होते हुए देखते हैं।
ग्राम्य-नगरीकरण के कारण नगरीय संस्कृति का भी विस्तार हो रहा है, महानगरीय सभ्यता और संस्कृति अपना वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं। हमें गाँव की अपेक्षा नगरों में गतिशीलता अधिक दिखाई देती है। ग्राम्य नगरीकरण सातव्य की प्रक्रिया सभी समाजों में समान रूप से कार्यरत नहीं होती है, बल्कि यह उस देश की आर्थिक व सामाजिक प्रगति औद्योगीकरण, यातायात एवं संचार के साधनों की उपलब्धता एवं कृषि का आधुनिकीकरण आदि तथ्यों पर निर्भर करती है।
कुछ प्रमुख विद्वानों ने ग्रामीण-नगरीय सातव्य की आलोचना करते हुए लिखा है कि -
'ग्रामीण-नगरीय जीवन के कहे जाने वाले सिद्धान्त, विद्यार्थियों की पाठय-पुस्तकों में सुरक्षित परीक्षा के समय दिखावटी संस्कार पाते हैं।
प्रो. लेविज के अनुसार, "उनका अन्वेषण सम्बन्धी मूल्य शोध यन्त्र के रूप में कभी भी प्रमाणित नहीं हुआ है।
ग्रामीण नगरीय सातव्य
ग्रामीण-नगरीय सातव्य एक आधुनिक प्रक्रिया है, जो किसी भी ग्रामीण पर नगरीय क्षेत्र में देखी जा सकती है। यह एक ऐसी घटना है जो अंशों में परिलिक्षित होती है। ग्रामीण-नगरीय सातव्य मानने वाले विद्वानों का मत है कि ग्राम एवं नगर में अन्तर मुख्यत: भौगोलिक, जनसंख्यात्मक और आर्थिक दृष्टि से इतने स्पष्ट नहीं है, जितने सामाजिक दृष्टि से । सामाजिक क्रिया की दृष्टि से ग्राम एवं नगरों में भिन्नता पायी जाती है किन्तु ग्रामवासियों एवं नगरवासियों की पारस्परिक अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप गाँवों में नगरीकरण एवं ग्राम्यों में नगरीकरण की प्रक्रियाओं का विकास हो रहा है।
ग्रामों एवं नगरों के बीच कई प्रकार के सम्बन्ध या अनुबन्ध पाये जाते हैं। लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए. अच्छा व्यवसाय करने के लिए, अच्छी नौकरी करने के लिए तथा आवश्यक वस्तएँ व सेवायें प्राप्त करने के लिए नगरों पर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि ग्राम का अन्य ग्रामों तथा नगरीय क्षेत्रों के साथ दिन-प्रतिदिन सम्पर्क और सम्बन्ध बढ़ता जा रहा है। नगरीय लोगों को भी अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त करने के लिए ग्रामों पर निर्भर रहना पड़ता है।
सकारात्मक दृष्टि से भी ग्रामों एवं नगरों के मध्य सम्बन्ध पाये जाते हैं। गाँवों में दूर-दूर काफा एस धार्मिक स्थल या देवी-देवताओं के स्थान हैं जहाँ पर नगरीय लोग समय-समय पर धार्मिक लाभ प्राप्त करन जात है। इसके अतिरिक्त धन कमाने के सअवसरों के मिलने तथा आवागमन के साधनों की सुविधा के कारण लोग देश के चारों दिशाओं में स्थित पवित्र धामों की तीर्थ यात्रा भी करते हैं। ग्रामों के लोग अपने यहाँ मृत लोगों की अस्थियाँ गंगा में बहाने ले जाते हैं।
प्रशासनिक दृष्टि से भी ग्रामों एवं नगरों के मध्य निकट सम्पर्क व सम्बन्ध पाया जाता है। सभी बड़ी व प्रमुख प्रशासनिक व्यवस्थायें नगरों में ही होती है। गाँव के लोगों को किसी भी प्रकार के प्रशासन सम्बन्धी कार्य के लिए नगरों को जाना पड़ता है। गाँव श्रृंखलात्मक रूप में दूसरे अन्य समुदायों से जुड़ा और बहुत से अन्य मामलों में उन पर निर्भर रहता है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि ग्राम एवं नगर के मध्य पारस्परिक आन्तरिक अन्तःक्रिया होती रही है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण व नगरीय सम्बन्ध पूर्व की तुलना में वर्तमान में अधिक बढ़े हैं।
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