जाति को निर्बल बनाने वाले कारक : ये कारक अनेक हैं : (1) औद्योगीकरण, (2) नगरीकरण, (3) आधुनिक शिक्षा (4) पाश्चात्य दर्शन, (5) स्वतन्त्रता आन्दोलन, (6) प
जाति को निर्बल बनाने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
जाति को निर्बल बनाने वाले कारक : ये कारक अनेक हैं : (1) औद्योगीकरण, (2) नगरीकरण, (3) आधुनिक शिक्षा (4) पाश्चात्य दर्शन, (5) स्वतन्त्रता आन्दोलन, (6) प्रजातन्त्र, (7) संयुक्त परिवार, (8) महिला आन्दोलन, (9) सुधार आन्दोलन, (10) जाति पंचायतों का पतन, (11) धर्म के प्रभाव का घटना, (12) नवीन शासन व्यवस्था, (13) पेशों की बहुलता, (14) धन का महत्व, (15) यातायात व संचार के साधन, (16) नवीन समूहों का उदय।
1. औद्योगीकरण - औद्योगीकरण के फलस्वरूप अपने क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं जिससे अन्धविश्वासों, कुरीतियों, रूढ़ियों के अनुदारता को आघात पहँचा है। इससे जाति के अनेक आधार निर्बल हुए हैं। औद्योगीकरण के कारण अनेक जाति के लोगों को एक साथ मिलकर काम करने व रहने के अवसर मिले हैं।
2. नगरीकरण - नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र होने से कई आधारों को धक्का लगा है। इसलिए नगरों में जातीय नियम व प्रतिबन्ध बहुत शिथिल हो गये थे। जातीय नियमों का उल्लंघन प्रगतिशीलता का परिचायक माना जाने लगा है तथा बंगाल में प्रचलित एक लोकोक्ति के अनुसार 'जाति भार ले तीन सेने-स्टेशने. विल्सने, केशवसेने' अर्थात् जाति के विनाश में स्टेशन, होटल व सुधार आन्दोलनों का प्रमुख हाथ है। ये मुख्यतः नगरीकरण की देन है।
3. आधुनिक शिक्षा - आधुनिक शिक्षा, भौतिकता, व्यक्तिवादिता, समानता, उदारता, मानवता व तार्किकता को प्रोत्साहित करती है। ये गुण और विशेषताएँ जाति के अनेक आधारों व मान्यताओं को चुनौती देते हैं। आज जाति की अलौकिक उत्पत्ति हास्यास्पद लगती है।
4. पाश्चात्य दर्शन - अंग्रेजी शासन काल में पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति के सम्पर्क में भारतीय आये तथा उनके दर्शन से प्रभावित हए। इससे नये आधुनिक मूल्यों व आदर्शों से परिचय हुआ। इस सन्दर्भ में जाति प्रथा कृत्रिम, रूढ़िवादी, विषमतामूलक व प्रगति-विरोधी संस्था लगी।
5. स्वतन्त्रता आन्दोलन - स्वतन्त्रता आन्दोलन ने भारतीयों के समक्ष ऐसा आदर्श उपस्थित किया जिसके लिए क्षुद्र स्वार्थों व संकीर्णताओं को त्यागकर सम्पूर्ण भारत एकता व संगठन के सूत्र में बंध सका।
6. प्रजातन्त्र का उदय - प्रजातन्त्र समानता, स्वतन्त्रता व भ्रातृ-भावना पर आधारित है। स्वतन्त्र भारत में प्रजातन्त्र को अपनाया गया। अतएव इस आदर्श के प्रतिकूल जाति प्रथा में अनेक सुधारों की आवश्यकता पड़ी।
7. संयुक्त परिवार का विघटन - संयुक्त परिवार जाति का पोषक व रक्षक है। औद्योगीकरण व नगरीकरण ने जिन परिस्थितियों को जन्म दिया उनमें संयुक्त परिवर की लोकप्रियता कम हुई और उसे विघटित करने वाली प्रक्रिया तीव्र हुई। जीवन की गतिशीलता में वृद्धि हुई। इससे जातिगत भावनाओं व विचारों को आघात पहुँचा।
8. महिला आन्दोलन - जाति प्रथा के नियमों और निषेधों के पालन व संरक्षण में भारतीय महिलाओं का बड़ा हाथ है। उनमें शिक्षा प्रसार में जागृति आई और अपनी स्थिति सुधार की उन्हें प्रेरणा मिली । फलस्वरूप हिन्दू धर्म के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती उपस्थित हुई।
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