आईडब्लूएमपी वाटरशेड परियोजना उद्देश्य विशेषताएं कार्यान्वयन : वाटरशेड एक भू-जलीय इकाई या क्षेत्र है जहां पर एक ही स्थान से जल की निकासी होती है। निकासी के आसपास इकाई क्षेत्र लगभग 1000-5000 हैक्टेयर है, जहां 5 वर्षों की अवधि में कार्यान्वयन किया जाता है। आईडब्लूएमपी के अंतर्गत लोगों की भागीदारी के जरिए वर्ष सिंचित अवक्रमित क्षेत्रों के विकास कार्य शुरू किए जाते हैं। भूमि संसाधन विभाग की क्षेत्र विकास योजनाओं नामत: सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (डीपीएपी), मरूभूमि विकास कार्यक्रम (डीडीपी) और समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्लूएमपी) नामक एक एकल संशोधित कार्यक्रम में एकीक्रत किया गया है। यह समेकन संसाधनों के इष्टतम उपयोग, सतत् परिणामों और एकीकृत आयोजना के लिए है।
आईडब्लूएमपी वाटरशेड परियोजना उद्देश्य विशेषताएं कार्यान्वयन
वाटरशेड एक भू-जलीय
इकाई या क्षेत्र है जहां पर एक ही स्थान से जल की निकासी होती है। निकासी के
आसपास इकाई क्षेत्र लगभग 1000-5000 हैक्टेयर है, जहां 5 वर्षों की अवधि
में कार्यान्वयन किया जाता है।
आईडब्लूएमपी के
अंतर्गत लोगों की भागीदारी के जरिए वर्ष सिंचित अवक्रमित क्षेत्रों के विकास कार्य
शुरू किए जाते हैं। भूमि संसाधन विभाग की क्षेत्र विकास योजनाओं नामत: सूखा प्रवण
क्षेत्र कार्यक्रम (डीपीएपी), मरूभूमि विकास कार्यक्रम (डीडीपी) और समेकित
वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्लूएमपी) नामक एक एकल संशोधित कार्यक्रम में
एकीक्रत किया गया है। यह समेकन संसाधनों के इष्टतम उपयोग,
सतत् परिणामों और एकीकृत आयोजना के लिए है।
आईडब्ल्यूएमपी के
उद्देश्य हैं:
- मृदा, वानस्पतिक आच्छादन और जल जैसे अवक्रमित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण और विकास
- परिस्थितिकीय संतुलन को बहाल करना
- मृदा-बहाव को रोकना
- प्राकृतिक वनस्पति का पुनरुद्धार
- वर्षा जल संचयन और भू-जल स्तर की पुन: भराई
- बहु-फसली और विविध कृषि-आधारित कार्यकलापों की शुरूआत
- सतत आजीविका को बढ़ावा देना।
आईडब्ल्यूएमपी की
मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं:
- जीविका अभिमुखीकरण-जीविका संदर्श, पशुधन प्रबंधन को एक केंद्रीय कार्यकलाप के रूप में समेकित करना तथा डेयरी उद्योग और दुग्ध उत्पादों के विपणन को प्रोत्साहित करना है।
- सामूहिक पद्धति-लघु-वाटरशेडों के समूह के शामिल करते हुए परियोजना का आकार कुशल प्रबंधन, आयोजन और कृषि उत्पादन तथा बाजार लिंकेजिज पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव के कारण बढ़ा दिया गया है।
- वैज्ञानिक आयोजना-वाटरशेड कार्यक्रमों के संबंध में राज्य, जिला और गांव स्तरों पर जी.आई.एस. आधारित आंकड़ों का प्रयोग किया जा रहा है। दूर संवदी निविष्टियों के उपयोग से विस्तृत परियोजना आयोजना, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) तैयार करने और निगरानी में सहायता मिलेगी।
- संस्थागत ढांचा-राष्ट्रीय राज्य, जिला परियोजना और गांव स्तर पर बहु-विधा विशेषज्ञों के साथ समर्पित संरचनाएं गठित की गई हैं।
- क्षमता निर्माण- नेतृत्व विकास, महिला सशक्तिकरण, जीविका कार्यकलापों और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए ग्रामीणों को क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
वाटरशेड परियोजनाओं के
मुख्य कार्यकलाप हैं:
- टेरिसिंग, बाँध बनाने, ट्रैंचिंग, वानस्पतिक अवरोधों आदि जैसे मृदा एवं नमी संरक्षण उपाय करना।
- बहु-प्रयोजनीय वृक्षों, झाडि़यों, घास, लेग्यूम्स का पौधारोपण और बीजारोपण तथा चरागाह भूमि का विकास।
- प्राकृतिक पुनरूद्धार को बढ़ावा देना।
- लकड़ी का विकल्प और ईंधन-लकड़ी संरक्षण उपाय।
- प्रोजेक्ट के प्रचार-प्रसार के लिए आवश्यक उपाय।
- प्रशिक्षण, विस्तार तथा प्रतिभागियों के बीच अधिकाधिक जागरूकता सृजन। जन भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- संपत्तिहीन व्यक्तियों के लिए जीविका कार्यकलाप।
- उत्पादन प्रणाली और लघु-उद्यम।
आईडब्ल्यूएमपी के
अंतर्गत नई परियोजनाओं का चयन करते समय राज्य द्वारा निम्नलिखित मानदंड अपनाए जा
रहे हैं:
गरीबी सूचकांक (जनसंख्या
की तुलना में गरीबों का) अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों की प्रतिशत वास्तविक
मजदूरी, छोटे और सीमांत किसानों की प्रतिशत भू-जल स्थिति,
नमी सूचकांक/डीपीएपी/डीडीपी ब्लाक, वर्षा सिंचित कृषि के अंतर्गत क्षेत्र पेयजल
कमी की तीक्ष्ण्ता, अवक्रमित भूमि, भूमि की उत्पादन
क्षमता, पहले से विकसित किसी अन्य वाटरशेड के साथ
निकटता और मैदानी क्षेत्रों में क्लस्टर अप्रोच (परियोजना में एक से अधिक सटे
हुए माइक्रो-वाटरशेड)।
परियोजना अवधि को लचीला
रखा गया है और यह 4 से 7 वर्ष के बीच हो सकती है। इस परियोजना के अंतर्गत,
मैदानी क्षेत्रों में 12,000/- रुपये प्रति है और पहाड़ी और दुर्गम
क्षेत्रोंमें 15,000/- रूपये प्रति है,
की इकाई लागत मुहैया कराई जाती है। इस प्रकार, 600/-लाख रुपये के बजट
के साथ 5000 है. की वाटरशेड परियोजना मुहैया कराई जाती है।
परियोजना अवधि के दौरान
निधियां 20 प्रतिशत 50 प्रतिशत और 30 प्रतिशत की 3 किस्तों में मुहैया कराई
जाएंगी। परियोजना की स्वीकृत करने की तारीख ही परियोजना को आरंभ करने की तारीख
होती है।
निधियों को एक राष्ट्रीयकृत
बैंक में खोले गए संयुक्त खाते के जरिए संचालित किया जाता है। इस खाते को वाटरशेड
परियोजना खाता कहा जाता है और इसे वाटरशेड सचिव और वाटरशेड समिति की और से वाटरशेड
विकास दल (डब्ल्यू.डी.टी) नामिति द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है।
आईडब्ल्यूएमपी के
अंतर्गत वाटरशेड विकास हेतु लिया जाने वाला परियोजना क्षेत्र,
जिला संदर्श योजना का एक हिस्सा होना चाहिए। राज्य संदर्श और कार्यनीतिक योजना
(एसपीएसपी), जो 11वीं योजना से 14वीं योजना के अंत तक की
अवधि को शामिल करते हुए 18 वर्षो के लिए तैयार की जाती है,
तैयार करने के लिए सभी जिलों की जिला संदर्श योजना को राज्य स्तर पर एसएजएनए
द्वारा संकलित किया जाता है। इस तरह की योजना में आईडब्ल्यूएमपी के अंतर्गत
वाटरशेड विकास परियोजनाएं शुरू करते हुए राज्य के सभी वर्षा सिंचित/अवक्रमित
क्षेत्रों को संतृप्त करने की परिकल्पना की गई हैं।
एसएलएनए की बैठक में,
क्षेत्र में शुरू की जाने वाली परियोजनाओं की प्रारंभिक परियोजना रिपोर्टों
(पीपीआर) के बारे में चर्चा की जाती है और उन्हें अनुमोदित किया जाता है। तत्पश्चात
अनुमोदित प्रारंभिक परियोजना रिपोर्टों को आईडब्ल्यूएमपी संबंधी संचालन समिति के
समक्ष मूल्यांकन एवं स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किया जाता है। संचालन समिति के
समक्ष मूल्यांकन एवं स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किया जाता है। संचालन समिति की स्वीकृति
के उपरांत, एसएलएनए द्वारा परियोजनाएं स्वीकृत की जाती
हैं।
वाटरशेड विकास निधि,
परियोजना अवधि के पूरा होने के उपरांत सामुदायिक भूमि पर सृजित परिसंपत्तियों के
रखरखाव अथवा सार्वजनिक उपयोग के लिए होती है। वैयक्तिक लाभ हेतु शुरू किए गए
संकार्य, इस निधि के अंतर्गत मरम्मत/रखरखाव के लिए पात्र
नहीं है।
जिन लाभार्थियों की
भूमि पर कार्यों को निष्पादित किया जाता है, उनके अंशदान के जरिए ये निधियां जुटाई जाती
हैं। यह अंशदान नआरएम कार्यों की लागत का कम से कम 10 प्रतिशत होगा। अनुसूचित
जातियों/अनुसूचित जनजातियों तथा बीपीएल समूहों के मामले में न्यूनतम अंशदान
एनआरएम कार्यों का 5 प्रतिशत होगा। यह अंशदान नकद अथवा वस्तु रूप में किया जा
सकता है। तथापि, निजी भूमि पर जलीय कृषि,
बागवानी, कृषि-वानिकी, पशुपालन आदि जैसे अन्य
लागत आधारित कृषि पद्धति कार्यकलापों, जिनसे वैयक्तिक किसनों को सीधे-सीधे लाभ
पहुंचता है, के लिए किसानों का अंशदान सामान्य श्रेणी के
लिए 40 प्रतिशत और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों तथा
कार्यकलापों की शेष लागत के लिए 20 प्रतिशत होगा।
वाटरशेड,
लोगों को वाटरशेड परियोजना के कार्यकलापों और कार्यों की आयोजना तैयार करने और उन्हें
कार्यान्वित करने का अवसर प्रदान करता है। एकसमान विचारधारा वाले
ग्रामीणों को प्रयोक्ता समूह अथवा स्व-सहायता समूह गठित करने चाहिए। वे ऐसे
संसाधनों के विकास का उत्तरदायित्व लेते हैं, जिन पर उनकी जिविका
आश्रित होती है।
गरीबों,
छोटे तथा सीमांत किसानों के परिवारों, भूमिहीन, सम्पत्तिहीन कृषि श्रमिकों,
महिलाओं, गडरियों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के
लोगों में से वाटरशेड विकास दल की सहायता से वाटरशेड समिति स्व-सहायता समूहों का
गठन करती है। ये समूह एक ही वर्ग के होने चाहिए और इनकी पहचान एवं इनका हित एक ही
होना चाहिए, जो अपनी जीविका के लिए वाटरशेड क्षेत्र पर
निर्भर होते हैं। यह समिति प्रत्येक स्व-सहायता समूहों का गठन करती है। ये समूह
एक ही वर्ग के होने चाहिए और इनकी पहचान एवं इनका हित एक ही होना चाहिए,
जो अपनी जीविका के लिए वाटरशेड क्षेत्र पर निर्भर होते हैं। प्रत्येक स्व–सहायता
समूह को परिक्रामी निधि उपलब्ध कराई जाएगी, जिसकी राशि के संबंध में निर्णय भूमि संसाधन
विभाग द्वारा किया जाएगा।
वाटरशेड परियोजना से
क्षेत्र की भूमि, वनस्पति और जल संसाधनों के विकास एवं संरक्षण
की संभावना बनती है। इसके अंतर्गत आय सृजन संबंधी कार्यकलाप शुरू करके संपत्तिहीन
व्यक्तियों को जीविका के अवसर उपलब्ध होते हैं और वाटरशेड कार्यकलापों के जरिए
रोजगार भी मिलता है।
कोई भी ग्रामीण निम्नलिखित
के जरिए अपनी शंकाओं को दूर कर सकता है:
- वाटरशेड समिति, ग्राम सभा और पंचायत प्रधान।
- प्रयोक्ता समूह/स्व–सहायता समूह के सदस्यों की उनके ग्रुप-लीडर द्वारा सहायता की जाती है।
- अधिक जानकारी पीआईए/डब्लूडीटी सदस्यों, पीडी डीआरडीए सीईओ जिला परिषद से प्राप्त की जा सकती है।
- कोई भी व्यक्ति पंचायत/सीईओ, जिला पंचायत/पीडी, डीआरडीए/जिला स्तरीय कार्यान्वयन एजेंसी/जिला कलक्टर/सीईओ, एसएलएनए/राज्य सरकार के नोडल विभाग के सचिवसे संपर्क कर सकता है। वह संयुक्त सचिव, भूमि संसाधन विभाग, भारत सरकार को भी सूचित कर सकता है/सकती हैं।
आईडब्ल्यूएमपी के अंतर्गत
ग्राम पंचायत की भूमिका निम्नलिखित कार्यों को करना है:
- समय पर वाटरशेड समिति का पर्यवेक्षण करना, उसे सहायता देना और सलाह देना।
- वाटरशेड समिति तथा वाटरशेड परियोजना की अन्य संस्थाओं के लेखों/व्यय विवरणोंको प्रमाणित करना।
- वाटरशेड विकास परियोजना की संस्थाओं के लिए विभिन्न परियोजनाओं/योजनाओं के एकीकरण को सुविधाजनक बनाना।
- वाटरशेड विकास परियोजनाओं के अंतर्गत परिसम्पत्ति रजिस्टरों का इन्हें वाटरशेड विकास परियोजना के पूरा होने के बाद भी रखने के उद्देश्य से रख-रखाव करना।
- वाटरशेड समिति को कार्यालय हेतु स्थान मुहैया कराना तथा अन्य आवश्यकताएं पूरी करना।
- पात्र प्रयोक्ता समूहों/स्व-सहायता समूहों को सृजित की गई परिसम्पत्तियों के संबंध में भोगाधिकार प्रदान करना।
परियोजना कार्यान्वयन
एजेंसी का चयन तथा अनुमोदन राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एसएलएनए) द्वारा किया जाता
है। इन परियोजना कार्यान्वयन एजेंट में राज्य सरकार के अंतर्गत संगत समनुरूप
विभागों, स्वायत्त संगठनों,
सरकारी संस्थानों/अनुसंधान निकायों, मध्यवर्ती पंचायतों,
स्वयंसेवी संगठनों (वी.ओ.) को शामिल किया जा सकता है:
इन परियोजना कार्यान्वयन
एजेंट को:
- अधिमानत : वाटरशेड संबंधित पहलुओं या वाटरशेड विकास परियोजनाओं के प्रबंधन में पूर्व अनुभव होना चाहिए।
- इन्हें समर्पित वाटरशेड विकास दलों के गठन के लिए तैयार रहना चाहिए।
आईडब्ल्यूएमपी के
अंतर्गत वाटरशेड परियोजना क्षेत्र में रहने वाले लोगों को परियोजना क्षेत्र में
किए जाने वाले परियोजना कार्यकलापों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ
प्राप्त होता है। इन कार्यकलापों में परियोजना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले
सार्वजनिक सम्पत्ति संसाधनों जैसे गांव के तलाब, गांव के कुंए,
परिस्रवन टैंक के निर्माण तथा मरम्मत के कार्यकलाप, चरागाह भूमि,
पौधे तथा सार्वजनिक भूमि पर लगाए गए बगीचे शामिल हैं। सम्पत्तिहीन लोगों के लिए
जीविका संबंधी कार्यकलाप आरंभ किए जाते हैं जबकि भू-स्वामियों के लिए परियोजना
क्षेत्र में कृषि उत्पादन तथा लघु-उद्यम जैसे कार्यकलापों को आरंभ किया जा सकता
है। आम आदमी भी स्व-सहायता समूह के सदस्य के रूप में आय सृजक कार्यकलापों के
संबंध में प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है और अपनी क्षमता निर्माण कर सकता है।
वाटरशेड परियोजना में रोक बांधों और जल एकत्रण संरचनाओं के निर्माण,
मृदा तथा नमी सरंक्षण उपायों, जैसे खेतों में मेड़ बनाना,
समोच्च बाँधबनाना, वनीकरण तथा बागवानी विकास,
चारे, ईंधन, इमारती लकड़ी और बागवानी की प्रजातियों के लिए
नर्सरी तैयार करना, चरागाह विकास, मधुमक्खी पालन,
कुक्कुट पालन, बकरी पालन, मत्स्य पालन आदि
जैसे कार्यों में रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।
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