अनेकता में एकता भारत की विशेषता पर निबंध : कदाचित समूचे विश्व में भारत एकमात्र राष्ट्र है जहाँ विभिन्न धर्मों के अनुयायी भिन्न मतावलम्बी, असंख्य प्रजातियाँ, अनेक भाषा-भाषी, विभिन्न संस्कृति, विभिन्न प्रकार के रहन-सहन एवं खान-पान वाले, विभिन्न प्रकार के वस्त्राभूषण धारक मिल-जुल कर एक झंडे के नीचे रहते हैं। तथा एक भाव से एकमत होकर अपने आपको एक ही माता-“भारत माता” की संतान मानने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं। भारतीय संस्कृति की कुछ विशेषताएँ हैं जो देश को एक सूत्र में बाँधे रखती हैं। इसमें से कुछ इस प्रकार हैं-(1) भारतीय आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास रखते हैं भौतिक मूल्यों में नहीं। (2) धर्म का स्थान सर्वोपरि है और प्रत्येक धर्म की मान्यता है कि कर्तव्य पालन ही धर्म है। सभी धर्मावलंबी कर्म और संस्कार में विश्वास रखते हैं। (3) धार्मिक सहिष्णुता हमारी अनोखी और अद्भुत विशेषता है। (4) हिन्दू धर्म के अनुयायी जो अधिसंख्य है उनमें आत्मसात् करने की आलौकिक प्रवृत्ति पाई जाती है। अतः संघर्ष की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
अनेकता में एकता भारत की विशेषता पर निबंध
कदाचित समूचे
विश्व में भारत एकमात्र राष्ट्र है जहाँ विभिन्न धर्मों के अनुयायी भिन्न
मतावलम्बी, असंख्य प्रजातियाँ, अनेक भाषा-भाषी, विभिन्न संस्कृति, विभिन्न प्रकार के रहन-सहन एवं खान-पान वाले, विभिन्न प्रकार के
वस्त्राभूषण धारक तथा अनेक देवी-देवताओं के उपासक 100 करोड़ से अधिक संख्या में
मिल-जुल कर एक झंडे के नीचे रहते हैं। तथा एक भाव से एकमत होकर अपने आपको एक ही
माता-“भारत माता” की संतान मानने
में गौरवान्वित अनुभव करते हैं। इतनी विविधताओं के होते हुये 33 राज्यों में
विभक्त होते हुए भी एक गणराज्य है, एक राष्ट्र है जिसका एक राष्ट्रपति है, एक प्रधानमन्त्री
है, एक सर्वोच्च न्यायालय तथा प्रधान सेनापति तथा सब धर्मों के
ऊपर एक धर्म है राष्ट्रवाद।
भौगोलिक दृष्टि
से भारत एक विशाल देश है, इतना विशाल कि इसका एक राज्य यूरोप कई देशों से
बड़ा है। पूरे देश की सीमायें प्रकृति ने अनूठे ढंग से रेखांकित की हैं। उत्तर में
हिमालय पर्वत श्रृंखला, तो दक्षिण में हिन्द महासागर बंगाल की खाड़ी
तथा अरब सागर है।
भारत में प्रमुख
धर्मों में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, मुसलमान,
ईसाई तथा पारसी के
अतिरिक्त अनेक जनजातियाँ हैं। किन्तु हिन्दू बहुसंख्यक हैं। सभी धर्मावलम्बी धर्म, कर्म में विश्वास रखते हैं,
पुनर्जन्म, आत्मा की निष्ठा, मोक्ष, स्वर्ग तथा नर्क आदि में
किसी-न-किसी रूप में सभी विश्वास रखते हैं। सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर तथा मठों को समान
रूप से आदर करते हैं। होली, दीपावली, दशहरा, क्रिसमस, ईद, बुद्ध जयन्ती अथवा महावीर
जयन्ती, अम्बेडकर जयन्ती सभी मिलकर मनाते हैं।
भारतवर्ष की
उपरोक्त विविधताओं का विदेशी आक्रमणकारियों ने खूब लाभ उठाया और देशवासियों में
फूट डालकर शताब्दियों तक भारत में राज्य किया। उनकी कूटनीति का परिणाम ही था देश
का विभाजन। यद्यपि एक अंग पाकिस्तान ने इस्लाम को राष्ट्र धर्म माना किन्तु भारत
के राष्ट्र निर्माताओं ने धर्म-निरपेक्षता को राष्ट्र का आदर्श माना। इस मान्यता
के अनुपालन में जो कठिनाइयाँ आ सकती थीं उनका पूर्वाभास हमारे राष्ट्र निर्माता, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू को था। अपनी अवधारणा, सूझ-बूझ से उन कठिनाइयों और चुनौतियों का जो धर्म-निरपेक्षता के मार्ग में आ
सकती थीं उन्होंने पहले ही अनुमान लगा लिया था। देश के उत्थान भलाई और एकता के
प्रति पं. नेहरू इतने समर्पित थे कि वे इससे एकाकार हो गए प्रतीत होते थे।
उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष,
समाजवादी, कल्याणकारी, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में विकसित और
जनसाधारण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाने की योजना बनाई ताकि राष्ट्रीय एकता में
बाधक बनने वाली प्रकृति पर रोक लगाई जा सके।
राष्ट्र
निर्माताओं का विश्वास था कि भारतीय समाज में विदेशी शासकों द्वारा उत्पन्न किया
गया वैमनस्य, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, धार्मिक कट्टरता तथा जाति-प्रथा द्वारा जनित बुराइयों को आधुनिक दृष्टिकोण
विकसित करके ही समाप्त किया जा सकता है। एकता बनाए रखना ही हमारा प्रधान लक्ष्य
है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान का मूल आधार
घर्मनिरपेक्षता ही है। बिना किसी भेदभाव के किसी धर्म का अनुयायी, किसी भी जाति में उत्पन्न हुआ व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर अपनी योग्यता के
आधार पर आसीन हो सकता है। इतिहास साक्षी है कि संवैधानिक सर्वोच्च पद
"राष्ट्रपति” पर आसीन हिन्दू, मुसलमान तथा सिख सभी घरों
के यह रहे हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में भी बिना किसी धार्मिक भेदभाव के भारत मां
के सपूतों ने संघर्ष किया और बलिदानी हुए।
भारतीय संस्कृति
की कुछ विशेषताएँ हैं जो देश को एक सूत्र में बाँधे रखती हैं। इसमें से कुछ इस
प्रकार हैं-
(1) भारतीय
आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास रखते हैं भौतिक मूल्यों में नहीं।
(2) धर्म का स्थान सर्वोपरि है और प्रत्येक धर्म
की मान्यता है कि कर्तव्य पालन ही धर्म है। सभी धर्मावलंबी कर्म और संस्कार में
विश्वास रखते हैं।
(3) धार्मिक
सहिष्णुता हमारी अनोखी और अद्भुत विशेषता है।
(4) हिन्दू धर्म
के अनुयायी जो अधिसंख्य है उनमें आत्मसात् करने की आलौकिक प्रवृत्ति पाई जाती है।
अतः संघर्ष की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
(5) भारतीयों का
दृष्टिकोण संकुचित न होकर बहुत विशाल पाया जाता है। हम धार्मिक भावनाओं के साथ
कर्म क्षेत्र का पूरा ध्यान रखते हैं। हम कर्मयोगी श्रीकृष्ण की उपासना करते है।
(6) हम विचारों और अभिव्यक्ति
की स्वतन्त्रता में विश्वास रखते हैं। हमारी मान्यताओं में गुरु और माँ का स्थान
सर्वोपरि है और भारत भूमि को हम अपनी माँ मानते हैं।
जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपिगरीयसी अर्थात माँ का स्थान अथवा जन्म भूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर
है। अलगाववादी शक्तियाँ यदा-कदा सक्रिय हो जाती हैं विशेषकर हमारी अलगाववादी
प्रवृत्ति वाले पडौसी की गतिविधियों के परिपेक्ष्य में। अतः राष्ट्रीय एकता को कायम
रखना आज हमारी प्राथमिकता है अतः हमें विचार-विमर्श के माध्यम से ही देशवासियों के
मन में एकात्मकता तथा सदभाव जगाने,
विविधता में एकता के
परम्परागत पहलुओं को उजागर करने वाले परम्परागत मूल्यों को श्रेष्ठ तत्त्वों को
सुदृढ़ बनाने, देश के सौन्दर्य, समृद्धि और विविधता के
समान आधार पर लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने, उन्हें एक-दूसरे के
सुख-दु:ख में भागीदार बनाने की प्रेरणा देने तथा एक सुदृढ़, धर्म-निरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में
आगे बढ़ना है।
राष्ट्रीय एकता
को बनाए रखने के लिए हमें सर्वप्रथम आने वाली पीढ़ी को समयोचित्त शिक्षा की
व्यवस्था करनी है। प्रत्येक विषय का पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तकें राष्ट्रीय एकता
की संदेशवाहक होनी चाहिये। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये कि कहीं कोई ऐसा
प्रसंग न आए जिससे किसी भी धर्म के अनुयायी को आघात पहुँचे। पंडित नेहरू ने तर्क
बुद्धि के विकास पर विशेष बल दिया था। उसी दिशा में हमें अग्रसर होना चाहिये।
शिक्षाविदों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिये। शिक्षा का उद्देश्य केवल तकनीकी
क्षमता अथवा आर्थिक प्रगति के अवसर जुटाना ही नहीं है अपितु यह वह प्रक्रिया है
जिससे स्वतन्त्र बुद्धि वाले नेता तथा नागरिक तैयार होते हैं। ऐसी शिक्षा ही
सामाजिक एकता की वाहक हो सकती है।
विचारणीय विषय यह
है हमारे जीवन में धर्म का क्या स्थान है। भारत अनेक धर्मों, भाषाओं और वर्गों का देश है,
धार्मिक बहुलता भारतीय
जीवन और समाज की सच्चाई है। धार्मिक असहिष्णुता तथा कट्टरपन की चुनौती का सामना
करने के उद्देश्य से हमारे दूरदर्शी पूर्वजों ने धर्म-निरपेक्षता का सम्बन्ध लौकिक
विषयों से किया है। इसका क्षेत्र सांसारिक है, पवित्र अथवा धर्म स्थान
विषयक हैं। धर्म-निरपेक्षता का अभिप्राय यह है कि विभिन्न धर्मों को मानने वाले
नागरिक सहिष्णुता तथा सह-अस्तित्व की नीति अपनायें और सरकार की नीति सभी धर्मों के
प्रति समानता और निरपेक्षता की हो। इसी आदर्श का प्रतिपादन अकबर जैसे सम्राट ने
किया था। क्षेत्रीय असंतुलन दूर करना तथा जनसाधारण के हितों की रक्षा करना भी एकता
बनाए रखने की दिशा में महत्त्वपूर्ण है। निष्पक्ष स्थितियों का निर्माण राष्ट्रीय
भावना को सुदृढ़ बनाने के लिए परम आवश्यक है। आर्थिक विषमताओं को दूर करना भी
आवश्यक है क्योंकि ये विषमतायें मानव समाज को दुर्बल बनाती हैं।
Admin


100+ Social Counters
WEEK TRENDING
Loading...
YEAR POPULAR
गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें गम् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। गम् धातु का अर्थ होता है जा...
Riddles in Malayalam Language : In this article, you will get കടങ്കഥകൾ മലയാളം . kadamkathakal malayalam with answer are provided below. T...
अस् धातु के रूप संस्कृत में – As Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें अस् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। अस् धातु का अर्थ होता...
पूस की रात कहानी का सारांश - Poos ki Raat Kahani ka Saransh पूस की रात कहानी का सारांश - 'पूस की रात' कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित ...
COMMENTS