भारतवर्ष में ग्रामोत्थान योजनायें - निबंध : ग्रामीणों की दशा में परिवर्तन लाने के लिये सर्वप्रथम गाँधी जी के नेतृत्व में स्वावलम्बन का आदर्श उपस्थित किया गया था, जिससे ग्रामीणों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता जैसी पवित्र भावनायें उत्पन्न होने लगीं। सन् 1937 में एक ग्राम सुधार विभाग स्थापित किया गया था। और प्रत्येक जिले में दस से लेकर पन्द्रह तक ग्राम सुधार केन्द्रों की स्थापना की गई थी। किसानों की सर्वागीण उन्नति के लिये एक विकास कमिश्नर भी नियुक्त किया गया था। स्वाधीनता पाने के पश्चात से विकास कार्य बड़ी तीव्रता से प्रारम्भ हुए। इन कार्यक्रमों को दो भागों में विभाजित किया गया था। प्रथम विभागीय कार्यक्रम जो सरकार द्वारा बनाये जाते थे, दूसरे—जन कार्यक्रम जिनका निर्माण जनता द्वारा किया जाता था। ग्रामीणों के तन, मन, धन तीनों प्रकार के पूर्ण सहयोग से इन कार्यक्रमों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिये ग्राम्य सहकारिता विभाग द्वारा कुछ चुने हुए भारतीय विशेषज्ञ भी नियुक्त किये गए।
भारत के गाँव राष्ट्र की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक हैं। गाँव भारतवर्ष की आत्मा हैं और राष्ट्र उनका शरीर। सम्पूर्ण शरीर की उन्नति आत्मा की स्वस्थ स्थिति पर निर्भर है। आत्मा के स्वस्थ होने पर ही सम्पूर्ण शरीर में नवचेतना और नवजागृति उत्पन्न हो सकती है। आज भी देश की पचहत्तर प्रतिशत जनता गाँवों में ही निवास करती है। गाँधी जी कहा करते थे, "भारत का हृदय गाँवों में बसता है, गांवों की उन्नति से ही भारत की उन्नति हो सकती है। गांवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं।"
स्वतंत्रता से पूर्व भारत के ग्रामों और ग्रामीणों की दशा बड़ी शोचनीय थी। यहां पर निर्धनता, बेरोजगारी और भुखमरी का नग्न नृत्य होता था। इनमें अशिक्षा और सामाजिक वैषम्य को अग्नि अहर्निश धधकती रहती थी। विश्व के किस अंग ने क्या नई अंगड़ाई ली, उसके क्या सुपरिणाम और दुष्परिणाम हुए, इन बातों से उन बेचारों को कोई सम्बन्ध नहीं था। उनका संसार केवल गांव तक ही सीमित था। जीवनयापन की स्वस्थ प्रणाली से ग्रामवासी अपरिचित थे। उनके जीवन से संघर्ष करने के लिये दरिद्रता, अस्वस्थता और अज्ञानता ही बहुत थे। प्रतिवर्ष अनेक मनुष्यों की अकाल मृत्यु होती थी। मंहामारी से रक्षा करने के लिये छोटे-छोटे उपाय भी नहीं समझ पाते थे। न इनके मन में आगे बढ़ने की इच्छा होती थी और न कभी प्रेरणाओं का ही कोई साधन होता था। स्वच्छता और आर्थिक स्थिति के साथ-साथ ग्रामवासियों की शिक्षा की समस्या भी प्रबल थी। शोषण, अन्याय, अन्धविश्वास और अशिक्षा का पूर्ण साम्राज्य था। परन्तु आज के गाँव वे गाँव नहीं रहे । भारत सरकार के अनवरत प्रयत्नों से उनमें पर्याप्त सुधार हो गये हैं। गाँवों की 70 प्रतिशत जनता अब खुशहाल है, जिनका जीवन झोंपड़ियों में बीतता था, अब उनके सीमेंट के मकान हैं। जिनकी सात पीढ़ियाँ निरक्षर थीं, उनके बच्चे बी० ए० और एम० ए० की कक्षाओं में शिक्षा पा रहे हैं। इस प्रकार समय बदलने के साथ ही देश का भाग्य भी बदला है।
ग्रामीणों की दशा में परिवर्तन लाने के लिये सर्वप्रथम गाँधी जी के नेतृत्व में स्वावलम्बन का आदर्श उपस्थित किया गया था, जिससे ग्रामीणों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता जैसी पवित्र भावनायें उत्पन्न होने लगीं। सन् 1937 में एक ग्राम सुधार विभाग स्थापित किया गया था। और प्रत्येक जिले में दस से लेकर पन्द्रह तक ग्राम सुधार केन्द्रों की स्थापना की गई थी। किसानों की सर्वागीण उन्नति के लिये एक विकास कमिश्नर भी नियुक्त किया गया था। स्वाधीनता पाने के पश्चात से विकास कार्य बड़ी तीव्रता से प्रारम्भ हुए। इन कार्यक्रमों को दो भागों में विभाजित किया गया था। प्रथम विभागीय कार्यक्रम जो सरकार द्वारा बनाये जाते थे, दूसरे—जन कार्यक्रम जिनका निर्माण जनता द्वारा किया जाता था। ग्रामीणों के तन, मन, धन तीनों प्रकार के पूर्ण सहयोग से इन कार्यक्रमों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिये ग्राम्य सहकारिता विभाग द्वारा कुछ चुने हुए भारतीय विशेषज्ञ भी नियुक्त किये गए। सन् 1948 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने अग्रगामी विकास योजना का भी श्रीगणेश किया। इस विकास योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को स्वावलम्बी बनाने की शिक्षा देना, आधुनिक यन्त्रों से कृषि करना, आर्थिक विषमता को दूर करना, पशु पालन तथा स्वास्थ्य एवं समृद्धि के नियमों में दक्ष बनाना, प्रौढों को शिक्षित करना, आदि थे। इस नवीन एवं अद्भुत प्रोत्साहन से ग्रामीणों का संकुचित दृष्टिकोण सहसा व्यापक बना, कृषि के कार्यों में उनकी रुचि बढ़ी और भारत के उत्पादन में वृद्धि होने लगी। अमेरिका की सरकार इस योजना से प्रभावित होकर भारत सरकार को टैक्नीकल सहायता देने को उद्यत हो गई और उसने देश में पचपन सामुदायिक योजनायें प्रारम्भ करने के लिये 5 करोड़ डालर की सहायता देना सहर्ष स्वीकार कर लिया।
इन सामुदायिक योजनाओं का प्रधान लक्ष्य ग्रामीणों की रचनात्मक कार्यों की ओर रुचि उत्पन्न करना उनका आर्थिक विकास करना, उनके सामाजिक वैषम्य को समाप्त करना था। अज्ञानता, बेरोजगारी तथा अन्धविश्वास को दूर करने के लिये भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई। सामुदायिक योजनाओं के प्रमुख कार्य ये हैं- शिक्षा, समाज शिक्षा, कृषि, सिंचाई पशुपालन जनस्वास्थ्य, यातायात और कुटीर उद्योग-धन्धे, आदि। प्रथम पंचवर्षीय योजना में विशेष रूप से कृषि को प्रधानता दी गई, जिसके फलस्वरूप बहुत-सी बंजर भूमि भी उपजाऊ बन गई। विभिन्न रसायनिक खादों का प्रयोग आरम्भ हुआ, खेती के नये-नये आविष्कार हुए, किसानों ने बड़ी रुचि से इन्हें ग्रहण किया।
भारतीय कृषि वर्षा पर अवलम्बित रहती है। अत: राष्ट्रीय सरकार ने कृषकों को सिंचाई की। नई सुविधायें प्रदान की। गाँव-गाँव में ट्यूबवैल लगवाये गये। कुओं, तालाबों और नहरों के अतिरिक्त नदियों तथा झीलों का प्रयोग भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया। खेती का अधिकांश भाग पशुओं पर ही आधारित है, इसलिये पशुओं की नस्ल सुधारने के लिये पशु-चिकित्सालयों का प्रवन्ध किया गया। ग्रामीणों की संक्रामक बीमारियों से रक्षा करने के लिये गाँव-गाँव में आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक औषधालयों की स्थापना की गई। बड़े-बड़े गाँवों में प्रसूतिका गृह भी खोले गए। आजकल शिशु कल्याण और सफाई के साधनों की व्यवस्था की जा रही है। आदर्श ग्राम स्थापित किये जा रहे हैं। गाँवों के आर्थिक विकास के लिये, आर्थिक स्थिति को सम्पन्न बनाने के लिये एक गाँव का दूसरे गाँव से सम्पर्क बढ़ाने के लिये सड़कें बनायी जा रही हैं, जिससे ग्रामीणों को यातायात में सुविधा हो। ग्रामीण उद्योगों को पुनः विकसित किया जा रहा है, जिससे किसान अपने अवकाश के क्षणों का उपयोग करके अधिक द्रव्योपार्जन करके अपने जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सकें और पढ़े-लिखे ग्रामीणों की बेरोजगारी की समस्या हल हो।
इतना ही नहीं, शिक्षा के प्रसार के लिए एक-एक मील पर प्राइमरी स्कूल खोले गये हैं। मिडिल स्कूल और प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना की जा रही है, जिससे ग्रामीण समाज शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा तथा स्वच्छता, आदि के नियमों को समझ सकें। ग्रामीणों के प्रमुख व्यवसाय खेती की शिक्षा-दीक्षा के लिये विभिन्न स्थानों में कृषि विश्वविद्यालय खोले गये हैं जहाँ पर पौर्वात्य और पाश्चात्य दोनों प्रकार से कृषि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आकाशवाणी दिल्ली से ग्रामीण भाइयों के लिए नित्य नवीन प्रसारण किए जाने लगे हैं। कभी खेती की बातें समझाई जाती हैं, तो कभी ग्रामोत्थान पर विद्वानों के विचार-विमर्श प्रस्तुत किये जाते हैं। भिन्न-भिन्न राज्य सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था के अनुसार अपनी सुनिश्चित ग्रामोत्थान योजनाओं को साकार रूप देने में निरन्तर प्रयत्नशील हैं।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त ग्रामीण विकास तथा ग्रामीण जनता के कल्याण हेतु प्रारम्भ किये गये कार्यक्रमों में प्रमुख हैं-
(1) रोजगार आश्वासन योजना जिसे 2 अक्टूबर, 1993 में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारम्भ किया गया।
(2) प्रधानमंत्री रोजगार योजना जिसे 2 अक्टूबर, 1993 से लागू किया गया।
(3) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जो 15 अगस्त, 1995 से लागू किया गया।
(4) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना।
(5) समग्र आवास योजना।
(6) अन्नपूर्णा योजना।
(7) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना।
(8) प्रधानमंत्री ग्राम सडक योजना।
(9) अन्त्योदय अन्न योजना।
(10) कृषि श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना।
(11) संहिता स्वयंसिद्ध योजना।
(12) राष्ट्रीय पोषाहार मिशन योजना।
(13) सम्पूर्ण ग्रामीण योजना।
(14) प्रधानमंत्री ग्रामीण जल संवर्धन योजना।
(15) हरियाली परियोजना।
(16) काम के बदले अनाज का राष्ट्रीय कार्यक्रम।
(17) भारत निर्माण कार्य-क्रम।
(18) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (2006)।
(19) इंदिरा गाँधी आवास योजना।
(20) कुटीर ज्योति कार्य-क्रम।
(21) सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना।
(22) इंदिरा महिला योजना।
(23) स्कूली बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम।
(24) बालिका समृद्धि योजना।
(25) किशोरी शक्ति योजना।
(26) जयप्रकाश नारायण योजना गारंटी योजना।
उपरोक्त योजनाओं के कार्यान्वयन से ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धन तथा निर्बल वर्गों को पर्याप्त लाभ पहुँचा है। किन्तु इन योजनाओं पर वर्षानुवर्ष जिस मात्रा में आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराये गए हैं, उस अनुपात में लाभ प्राप्त नहीं किये जा सके हैं। ग्रामीण विकास योजनाओं की सफलता के लिये इन योजनाओं से सम्बन्धित सरकारी ढाँचे में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। भ्रष्टाचार रूपी दानव से छुटकारा पाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों के आधारभूत आर्थिक ढाँचे में आवश्यक सुधार लाने हेतु दीर्घकालीन योजना बनाकर उस पर समयबद्ध ढंग से अमल करना होगा।
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