भारत में गैर-परम्परागत/वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास : विद्युत किसी भी देश की प्रमुख जरूरत है। इसके बिना बुनियादी सुविधाओं पर अतिरिक्त जोर पड़ता है जिसके कारण विकास के रास्ते में बाधाएं आती हैं। इस परिदृश्य में भारत सरकार ने गैर-परम्परागत स्त्रोतों के जरिये ऊर्जा उत्पादन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। इसमें पन-बिजली, ताप, परमाणु और गैर-परम्परागत स्त्रोत और पवन ऊर्जा शामिल हैं। इन प्रयासों के कारण ऊर्जा के नवीनकरणीय स्त्रोतों से उत्पादन तिगुना होकर 2005 में 5GW से बढ़कर 15GW हो गया है। वर्ष 2022 तक यह बढ़कर 40 जीडब्ल्यू हो जायेगा। एक अनुमान के अनुसार देश में ऊर्जा के नवीनकरणीय स्त्रोतों से बिजली उत्पादन की संभावना 150 जीडब्यू है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
भारत में गैर-परम्परागत/वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास
विद्युत किसी भी देश की
प्रमुख जरूरत है। इसके बिना बुनियादी सुविधाओं पर अतिरिक्त जोर पड़ता है जिसके
कारण विकास के रास्ते में बाधाएं आती हैं। उद्योग, कृषि,
सेवाओं और देखा जाये तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए विद्युत
की जरूरत होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत विभिन्न स्त्रोतों से
अधिक बिजली उत्पादन के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। इसमें पन-बिजली,
ताप, परमाणु और गैर-परम्परागत स्त्रोत और पवन ऊर्जा शामिल हैं।
देश को बिजली की जबरदस्त
कमी का सामना करना पड़ रहा है और वह प्रति व्यक्ति सबसे कम उपभोग करने वालों में
से एक है। 75 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले और प्राकृतिक गैस को जलाने से किया
जाता है, अगर कोयले के भंडारों पर हमारी निर्भरता इसी
प्रकार से जारी रही तो अगले 40 वर्षों में यह समाप्त हो जाएगा। कायेले को जलाने
से पर्यावरण संबंधी मुद्दे भी खड़े हो रहे हैं, जिनसे जहां तक हो सके
हमे बचना चाहिए। बिजली और स्वच्छ पर्यावरण की दोहरी चुनौती से साथ-साथ निपटा
जाना चाहिए।
इस परिदृश्य में भारत
सरकार ने गैर-परम्परागत स्त्रोतों के जरिये ऊर्जा उत्पादन को सर्वोच्च
प्राथमिकता दी है। एक पृथक अक्षय ऊर्जा मंत्रालय का गठन इस बात का प्रमाण है। इन
प्रयासों के कारण ऊर्जा के नवीनकरणीय स्त्रोतों से उत्पादन तिगुना होकर 2005 में
5GW से बढ़कर 15GW हो गया है। वर्ष 2022 तक यह बढ़कर 40 जीडब्ल्यू
हो जायेगा। एक अनुमान के अनुसार देश में ऊर्जा के नवीनकरणीय स्त्रोतों से बिजली
उत्पादन की संभावना 150 जीडब्यू है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी
है।
इस समय ऊर्जा के नवीनीकरणीय
स्त्रोतों से केवल 3.5 प्रतिशत बिजली उत्पादन होता है जिसके 2022 तक बढ़कर10
प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री
डाक्टर मनमोहन सिंह ने 11 जनवरी, 2010 को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन
की शुरूआत की जो ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने
की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। मिशन ने 2022 तक सौर ऊर्जा से जुड़े 20,000
मेगावाट के ग्रिउ लगाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। इसका उद्देश्य
दीर्घकालीक नीति बड़े पैमाने पर परिनियोजन लक्ष्यों अत्यधिक महत्वकांक्षी
अनुसंधान और विकास तथा महत्वपूर्ण कच्चे समान, उपकरणों और उत्पदों
का घरेलू उत्पादन करने के जरिये देश में सौर बिजली उत्पादन की लागत को कम करना
है। इस मिशन से इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए नीतिगत रूपरेखा तैयार करने और
भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनाने में मदद मिलेगी।
11वीं पंचवर्षीय योजना
में अनुसंधान और विकास तथा नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में परिनियोजना में कारगर
प्रगति देखने को मिली। अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने सौर ऊर्जा,
जैव-ऊर्जा और हाईड्रो कार्बन तथा ईंधन प्रकोष्ठों में करीब 525 करोड़ रूपये के
कुल परिव्यय के साथ 169 अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को प्रायोजित किया। 11वीं
पंचवर्षीय योजना के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा ने करीब 14,660
मेगावट बिजली का योगदान दिया और यह भविष्य के लिए अधिक महत्वपूर्ण बन गई है।
मंत्रालय सोलर फोटोवोल्ट
के सिस्टिम्स (एसपीवी) की संदर्भ आधार लागतका 30 प्रतिशत सब्सिडी दे रहा है। वह
नाबार्ड, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और अन्य व्यावसायिक
बैंकों के जरिये और लालटेन, घरों में रोशनी और छोटी क्षमता वाले पीवी
संयत्र लगाने के लिए भी सब्सिडी प्रदान कर रहा है। लाभान्वितों को शेष लागत की
भरपाई के लिए बैंक सामान्य व्यावसायिक दरों पर ऋण की सुविधा भी देता है। 31
मार्च, 2012 तक देश में नौ लाख पांच हजार से ज्यादा
सौर लालटेन, घरों में आठ लाख बासठ हजार सौर बत्तियां और
पानी निकालने की करीब आठ हजार सौर प्रणालियां लगाई जा चुकी थीं। वर्ष 2011-12 के
दौरान मंत्रालय ने 4115 स्कूलों और 9 परीक्षा केन्द्रों में 8740 किलोवाट पीक
क्षमता वाले एसपीवी बिजली संयंत्र लगाने के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी। वर्तमान
वित्त वर्ष के दौरान बिहार के 6 जिलों में 560 एसपीवी पानी निकालने की प्रणालियां
लगाने के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी गई है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश
में नवीकरणीय ऊर्जा के विभिन्नण स्त्रोतों के अधिक दोहन के लिए एक योजना तैयार
की गई है।
12वीं पंचवर्षीय योना
में देश में विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों और 7 लाख बायोगैस संयंत्रों,
35 लाख खाना पकाने के स्टोवों, 8.5 लाख सौर कुकरोंऔर 80.5 लाख और ताप ऊर्जा
प्रणालियों से 29,800 मेगावाट ग्रिड-इंटरेक्टिव और 3267 मेगावाट
आफ-ग्रिड अतिरिक्त विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार किया
गया है। वर्ष 2022 तक दो करोड़ सौर प्रकाश प्रणालियों और दो करोड़ वर्ग सौर ताप
एकत्रित करने वाले क्षेत्र की संभावना का पता लगाया गया है।
निजी क्षेत्र के निवेश
के जरिये पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए उत्पादकनकर्ताओं
को पवन बिजली उत्पादन के कुछ उपकरणों पर आयात शुल्क तथा उत्पाद शुल्क में छूट
जैसे वित्तीय और अन्य प्रोत्साहन दिये जायेंगे। पवन बिजली परियोजनाओं से होने
वाले आय पर 10 वर्ष का कर अवकाश (टैक्स हालीडे) भी उपलब्ध है। इसके अलावा पवन
चक्की लगाने के लिए भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) और अन्य
वित्तीय संस्थानों कर्ज के लिए व्यवस्था है। चेन्नई स्थित सेंटर फार विंड
एनर्जी टेक्नालाजी (सी-डब्यूईटी) द्वारा तकनीकी सहायता भी दी जाती है। सरकार ने
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (जीबीआई) की भी घेषणा
की है। जीबीआई योजना में भी जारी रखने के प्रयास किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय शुल्क नीति
में भी संशोधन किया गया है। इसमें यह अनिवार्य कर दिया गया कि राज्य वितरण कंपनियों
के पास 2013 तक 0.25 प्रतिशत और 2022 तक 3 प्रतिशत सौर आपीओ होगा।होगा। सरकार 1000
मेगावाट सौर बिजली खरीदने के लिए एक योजना पहले ही लागू कर चुकी है और इसे समान
क्षमता की ताप बिजली के साथ इकट्ठा करने के बाद राज्य वितरण कंपनियों को आपूर्ति
की जायेगी।
यहां तक कि कुड़ा-करकट
और ठोस अपशिष्ट से बिजली उत्पादन पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। नई
दिल्ली के ओखला में 16 मेगावाट की एक परियोजना लगाई गई है जो देश में इस तरह की
एकमात्र परियोजना है। इससे तब तक करीब 2 करोड़ 40 लाख यूनिट बिजलीका उत्पादन किया
जा चुका है। निगम के ठोस अपशिष्ट से ऊर्जा की परियोजना सार्वजनिक निजी भागीदारी
से नगर-निगमों द्वारा हाथ में ली गई है। जिसमें कुछ चुनी हुई निजी कंपनियों के साथ
समझौता किया गया है।
देश की ऊर्जा जरूरतों
को पूरा करने और ग्रीन हाउस गैसों से पर्यावरण को बचाने के लिए नवीन और नवीकरणीय
ऊर्जा स्त्रोतों को पैदा करने की जरूरत है। सौभग्य वर्ष देश के अधिकांश भागों
में सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। उदाहरण के लिए लद्दाख में वर्ष में
300 दिन अच्छी धूप खिलती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि सौर ऊर्जा के दोहन के
लिए मंत्रालय इस पर विशेष ध्यान दे रहा है। फर्क सिर्फ यह है कि वह इसे विद्युत
उत्पादन के लिए इस्तेमाल करता है या अन्य उपयोगी उद्देश्यों के लिए। सस्ती दर
पर इसे उपलब्ध कराने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे और उपयुक्त नीतियां
बनानी होगी। पिछले दो वर्षो के दौरान में देश में कुल करीब 1000 मेगावाट की क्षमता
के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये गये हैं और यह प्रवृत्ति जारी है। देश 2022 तक
20000 मेगावाट के लक्ष्य को हासिल कर लेगा, साथ ही इसका इस्तेमाल करने वालों के बीच विश्वास
पैदा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और सेवा प्रदान करने की तरफ पर्याप्त ध्यान
देने की जरूरत है।
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