राष्ट्रीय पेंशन योजना - National Pension Scheme in Hindi
जब व्यक्ति रोजगार से
मुक्त अथवा कार्य करने में अक्षम हो जाता है, वैसी स्थिति में
पेंशन उसके लिए वित्तीय प्रबंध सुनिश्चित करती है। भारत में जीवन प्रत्याशा
बढ़ाने के कारण आज पेंशन योजनाएँ अधिक लाभप्रद बन गई हैं। भारत के निजी एवं
सार्वजनिक क्षेत्र में कई पेंशन योजनाएँ प्रचलन में हैं। यद्यपि प्रत्येक पेंशन
योजना में अलग-अलग लाभों का प्रावधान देखने को मिलता है किन्तु सभी योजनाओं का
उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा ही होता है। भारत सरकार ने अपने नागरिकों की सामाजिक
सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पेंशन योजनाएँ लागूकी हैं जिनमें स्वतंत्र
सैनिक सम्मान पेंशन योजना 1980, सेवारत सरकारी कर्मचारी की मृत्यु होने पर
पारिवारिक पेंशन, आंतकवादी अथवा असामाजिक तत्वों द्वारा किए गए
हमले में मृत व्यक्ति के परिवार हेतु योजनाएँ, प्राधिकृत बैंकों के
माध्यम से सरकारी कर्मियों को पेंशन, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय
सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) आदि प्रमुख हैं।
पेंशन फंड विनियामक एवं
विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने मई 2009 में 18 से 55 वर्ष आयु वर्ग के भारतीय
नागरिकों के लिए राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की शुरुआत की थी। इस योजना के
अंतर्गत निवेशक द्वारा अपनी सेवावधि के दौरान पेंशन फंडल में निवेश की गई राशि में
से आधी राशि का एकमुश्त भुगतान और आधी राशि का वार्षिक अथवा पेंशन के रूप में
भुगतान किया जाता है।
सरकार ने पेंशन कोष और
नियामक विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) विधेयक, 2011 पर संसद की मंजूरी ले ली है। लम्बे समय
से अधर में लटका यह विधेयक पेंशन विनियामकको अधिकार देने के साथ ही पेंशन फंडों के
शेयर बाजार में निवेश का रास्ता भी खोल देगा। पीएफआरडीए विधेयक के पास हो जाने के
बाद केंद्र सरकार के सभी विभागों में फंड मैनेजरों की नियुक्ति का रास्ता साफ
हो गया है। ये फंड मैनेजर पीएफआरडीए के अधीन काम करेंगे और इनके पास कर्मचारियों
की ग्रेच्युटी, फंड और पेंशन संबंधी जानकारी उपलब्ध होंगी।
सामाजिक सुरक्षा पर जोर
अगर हम भारत की काम
काजी आबादी का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि कुल जनसंख्या के अनुपात में काम करने
की उम्र बढ़ती जा रही है। इसीलिए भारत को एक मजबूत पेंशन प्रणाली की जरूरत थी।
भारत के युवाओं का देश कहा जा रहा है लेकिन आने वाले दस से बीस वर्षों के बाद
बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी और पेंशन एवं स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का ज्यादा
हिस्सा खर्च होगा। इस समय हमारे नीति-निर्माताओं के सामने बड़ी चुनौती उच्च विकास दर
को बनाए रखने की है, ताकि आर्थिक सुरक्षा के न बिगड़ें। ऐसे हालात
में जीडीपी के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को एक बड़ी आबादी में समान और सक्षम तौर
पर बांटना होगा। बजट में इस बार स्वालम्बन योजना से बाहर जाने की उम्र घटा कर 50
वर्ष कर दी गई है जो अब तक 60 वर्ष थी। संभवत: इस योजना में मार्च 2012 तक 20 लाख
लोग और जुड़ जाएंगे।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
वृद्धावस्था पेंशन स्कीम के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बुजुर्गों के लिए
बजट मुहैया कराया जाता है। बजट में इस योजना का लाभ 65 साल की बजाय 60 साल में
देने का प्रावधान किया गया है। अस्सी साल से ज्यादा की उम्र के लोगों के लिए
केंद्र का योगदान 200 रुपए से बढ़ा कर 500 रुपए कर दिया गया है। राज्य केंद्र के
योगदान में पूरक योगदान करने के लिए स्वतंत्र है। राज्यों में पेंशन के लिए मानक
उम्र अलग-अलग है, लेकिन इस बात में गलती की आशंका बनी रहती है कि
योजना में किस शामिल किया जाए और किसे नहीं। इस गलती को सुधारा जाना जरूरी है।
इसलिए इस संबंध में समीक्षा करने की जरूरत है। साथ इस दिशा में ट्रंजेक्शन लागत
भी कम करना जरूरी हो गया है। वर्ष 2010 में पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एंड डेवलपमेंट
अथॉरिटी बिल लैप्स हो गया था। बजट में इसे दोबारा लाने की बात कही गई। एक मजबूत
पेंशन नियामक नई पेंशन स्कीम जैसी योजनाओं के प्रति विश्वसनीयता पैदाकर सकेगा और
वह आम निवेशकों को अपनी दक्षता का फायदा भी दिलाएगा। वर्ष 2010-11 के आर्थिक सर्वेक्षण
में नीतिगत मुद्दों पर काफी कुछ कहा गया है। बिहार औैर मध्य प्रदेश में सेवा का
अधिकार कानून लागू हो चुका है। यह सही दिशा में उठाया गया उचित कदम है। इसमें
सिविल सेवा और राजनीतिक प्राधिकरणों की जिम्मेदारी को स्पष्ट कर दिया गया है।
भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य बीमा निगम को इन प्रावधानों का लाभ उठाकर
उसे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार का मौका बनाना चाहिए। बहरहाल भारत के सामने इस
समय बड़ी चुनौती है; देश की अधिकतर कामकाजी आबादी के पास सामाजिक
सुरक्षा की कोई स्कीम नहीं है। संगठित क्षेत्रों में कुछ जगहों पर पेंशन योजनाएं
हैं, लेकिन बड़ी आबादी को पेंशन योजना के तहत लाने के लिए व्यापक
अभियान चलाने की जरूरत है। अब सरकार को एक मजबूत पेंशन प्रणाली बनानेके लिए अपना
ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। बगैर बेहतर गवर्नेंस, नियमन और प्रबंधन के
बगैर ऐसी योजनाओं का लाभ मिलना मुश्किल है। पेंशन सुधारों की दिशा में देश को एक
लंबा सफर तय करना है। यह ठीक है कि आने वाले सालों में सरकारी खजाने पर इसका बोझ
बढ़ेगा, लेकिन विकसित देशों की तुलना में यह बहुत कम
होगा। भारत में औसत आयु बढ़ती जा रही है। आने वाले वर्षों में एक बड़ी आबादी को
सेवानिवृत्ति के बाद भी लंबे समय तक जीवन-यापन करना होगा,
इसलिए सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं लाना सरकार की अहम प्राथमिकताओं में से एक होनी
चाहिए।
विशाल आबादी वाले हमारे
देश में पेंशन और बीमा का दायरा केवल चुनिंदा तक सीमित है और अधिकांश लोग सामाजिक सुरक्षा
योजनाओं के दायरे से बाहर हैं। मौजूदा पेंशन प्रणाली से केवल संगठित क्षेत्रों के
कर्मचारियों को फायदा मिलता है, जो देश की कार्यरत आबादी का महज 12 फिसदी है।
हमारे देश के 90 फीसदी बुजुर्ग पेंशन योजना से बाहर हैं। वहीं विकसित देशों में यह
आंकड़ा पांच फीसदी से भी कम है। सरकार ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक पेंशन योजनाओं
का लाभ पहुंचाने का अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर रही है,
निकट भविष्य में इसके अच्छे परिणाम मिलेंगे।
कर्मचारियों और सरकार
के योगदान से जमा रकम के रिटर्न से पेंशन दी जाएगी। पहले सरकार यह योगदान नहीं
देती थी और इसकी एवज में पेंशन का भुगतान किया जाता था। अब एनपीएस योजना में निजी
क्षेत्र के कर्मचारियों को भी शामिल कर लिया गया है। इस क्षेत्र के नियमन और
समुचित विकास के लिए सरकार ने पेंशन फंड रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी
पीएफआरडीए का गठन किया है। असल में यह पेंशन योना न होकरएक निवेश योना है।
कर्मचरियों की जमा रकम का 50 फीसदी धन इक्विटी निवेश में लगाया जाएगा। इस निवेश
का रिर्टन एनपीएस को नियंत्रित करने वाले एसबीआई व यूटीआई समेत छह म्युचुअल फंड
के गैर-परिसंपत्ति मूल्य यानी एनएवी के आधार पर
मिलेगा।
पेंशन योजनाओं में
भागीदारी
भारत में अपनाए गए
आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान समय में सरकार ने भारत में पेंशन योजना लागू करने के
लिए विदेशी कंपनियों और पेंशन फंडों के भागीदारी करने की अनुमति प्रदान की है। ये
विदेशी कंपनियाँ अपने भारतीय प्रतिपक्षियों के सहयोग से ही बीमा एवं पेंशन फंडों
का कारोबार करने में समर्थ होंगी। निजी क्षेत्र की वित्तीय कंपनियों ने विदेशी
साझेदारों के साथ लोकप्रिय पेंशन योजनाएं पेश की हैं। इन कंपनियों में बजाज एलायंस,
टाटा-एआईजी, बिडला सन, भारतीय एएक्सए, आईएनजीवैश्य,
फ्यूचर जनरली, एजियान रेलिगएवं आईसीआईसीआई प्रूस्डेंशियल
प्रमुख हैं, जो भारत में अपनी पेंशन योजनाएं चला रही हैं।
भारतीय जीवन बीमा निगम एवं भारतीय स्टेट बैंक जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के निगम तथा
कोटक लाइफ एवं सहारा लाइफ जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी भारतीय नागरिकों के
लिए पेंशन योजनाएं प्रदान कर रही हैं।
भारलतीय जीवन बीमा निगम
भारत में जीवन निधि, जीवन अक्षय, जीवन धारा एवं जीवन
सुरक्षा नामक चार पेंशन योजनाएँ चला रहा है। इन योजनाओं के माध्यम से पॉलिसीधारक
चुनी गई समयावधि के लिए नियमित आय की व्यवस्था कर लेता है। कामकाजी लोगों का इन
पेंशन योंजनाओं में निवेश करने का उद्देश्य अपना भविष्य सुरक्षित करने का है।
सार्वजनिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र अथवा निजी क्षेत्र के कर्मचारी
जब देखते हैं कि भविष्य में उनके पास पेंशन के अलवा आय का कोई स्त्रोत नहीं है,
तो वे अपनी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पेंशन योजनाओं को चुनते हैं।
पेंशन विनियामक का
विचार
सरकार और निजी क्षेत्र
के पेंशन फंडों हेतु अर्जित राशि का संरचनात्मक विकास अथवा इक्विटी बॉण्ड आदि
में निवेश किया जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए पेशन नियामक ने राष्ट्रीय
पेंशन योजना (एनपीएस) के अंतर्गत संरचनात्मक विकास में निवेश के किसी भी स्वरूप
पर आपत्ति जताई है। उल्लेखनीय है कि संरचनाऋण कोष तैयार किया जा रहा है और इसकी
रूपात्मकता का निर्धारण वित्त मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। जहां तक निेवेश
का संबंध है, पेंशन उत्पाद पूरी तरह बाजार जोखिम से जुड़े
हुए हैं और ये सारे जोखिम पेंशन पॉलिसी धारक को ही वहन करने होंगे। पेंशन फंडों के
नियमन के लिए नियुक्त किए जाने वाले पेंशन फंड मैनेजर अपने विवेक के अनुसार निवेश
करेंगे तथा किसी भी क्षेत्र का निर्धारण पीएफआरडीए नहीं करेगा।
पेंशन विनियम में किसी
भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं है। बीमा कंपनियों के पेंशन उत्पादों का नियमन
इरडा करेगा, जबकि पीएफआरडीए राष्ट्रीय पेंशन योजना का
प्रबंधन करेगा। इसलिए इस क्षेत्र में कोई टकराव होने की संभावना ही नहीं है। वित्तीय
विश्लेषक पहले से ही कहतेआ रहे हैं कि राष्ट्रीय पेंशन योजना के बहुआयामी स्वरूप
को देखते हुए लोगों का झुकाव बीमा कंपनियों के पेंशन उत्पादों कें बजाय राष्ट्रीय
पेंशन योजना की तरफ हो जाएगा। इसके लक्षण अभी से दिखाई भी देने लगे हैं।
पेंशन फंड एवं विनियामक
विकास प्राधिकरण का कहना है कि बीमा एवं म्युचुअल फंडों की तुलना में पेंशन उत्पाद
अच्छा रिटर्न दे रहे हैं। अगर इसके ट्रेथ रिकार्ड को देखें तो स्पष्ट होता है
कि पेंशन उत्पादों ने 12 से 14 प्रतिशत तक रिटर्न दिया है। इस समय राष्ट्रीय
पेंशन योजना के 20 लाख ग्राहक हैं जिनमें से 6 लाख गैर-सरकारी हैं। अत: यह नहीं
कहा जा सकता कि राष्ट्रीय पेंशन योजना केवल केन्द्र सरकार अथवा सार्वजनिक क्षेत्र
के उपक्रमों के कर्मियों में ही लोकप्रिय है। इस योजना में गैर-सरकारीकर्मी भी
सक्रियरूप से भागीदारी कर रहे हैं।
पेंशन योजना की
लोकप्रियता का मूल कारण
समय बदलने के साथ-साथ
सामाजिक संरचना में भी बहुत तेजी के साथ बदलाव आ रहा है। पहले एक कामकाजी व्यक्ति
पूरे परिवार का पालन-पोषण कर लेता था, उसका एक कारण संयुक्त परिवार प्रथा भी रहा है,
लेकिन आज आधुनिकतावादी सोच और कैरियर के प्रति युवाओं के मोह के कारण एकल परिवार
प्रथा ने जन्म ले लिया। युवा वर्ग आत्मनिर्भर होने के कुछ ही समय के बाद अपनी
पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहने लगता है अथवा किसी सुदूरवर्ती कंपनी में नौकरी
करने के लिए काम करने में अक्षम माता-पिता को छोड़ा जाता है। ऐसे वृद्धों के लिए
सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन योजना जैसे कई कार्यक्रम चलाए हैं। ऐसी सामाजिक
योजनाओं का असर कभी-न-कभी अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक विकास दर पड़ना स्वाभाविक
है।
इन सामाजिक उत्तरदायित्वों
को पूरा करते हुए आर्थिक विकास दर पड़ने वाले प्रभाव से बचाने के लिए सरकार द्वारा
जारी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) काफी कारगर सिद्ध हो सकती है। इस पेंशन
योजना के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड बनाने की योजना है,
जिसके लिए राशि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड में जमा करानी होगी। इसी फंड से पेंशन
योजना क्रियान्वित की जा रही है।
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