भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध। Essay on Judicial Jctivism in India in hindi

भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध : न्‍यायिक सक्रियता’ लोकहित, विधि के शासन एवं संविधान की मूल भावना के संरक्षण का एक असामान्‍य, अपरम्‍परागत किंतु प्रभावी सकारात्‍मक यंत्र है। इस प्रकार, यह विधि के साथ न्‍याय करने हेतु आबद्ध न्‍यायपालिका द्वारा अपनी परंपरागत विधिक सीमाओं का ऐसा सतत् अतिलंघन है जो लोकहित के संरक्षण के प्रति निर्दिष्‍ट होने मात्र के आधार पर ही मान्‍य एवं औचित्‍यपूर्ण हो सकता है। न्‍यायिक सक्रियता के तहत संविधान में दिए (बाध्‍यकारी) प्रावधानों एवं विधायिका द्वारा बनाए गए विधियों के अर्थ के आधार पर निर्णय दिया जाता है। अर्थात् न्‍यायिक सक्रियता ‘विधि की सम्‍यक प्रक्रिया’ से शक्‍ति प्राप्‍त करती है। दूसरी ओर न्‍यायिक समीक्षा के तहत् न्‍यायालय द्वारा कार्यपालिका तथा व्‍यवस्‍थापिका के कार्यों की वैधता की जाँच की जाती है अर्थात न्‍यायालय द्वारा कानूनों एवं प्रशासनिक आदेशों, नीतियों को असंवैधानिक घोषित करना जो संविधान के किसी अनुच्‍छेद का अतिक्रमण करती हो। अत: न्‍यायिक समीक्षा ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ सिद्धांत से शक्‍ति प्राप्‍त करती है।

भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध। Essay on Judicial Jctivism in India in hindi

न्‍यायिक सक्रियता लोकहित, विधि के शासन एवं संविधान की मूल भावना के संरक्षण का एक असामान्‍य, अपरम्‍परागत किंतु प्रभावी सकारात्‍मक यंत्र है। इस प्रकार, यह विधि के साथ न्‍याय करने हेतु आबद्ध न्‍यायपालिका द्वारा अपनी परंपरागत विधिक सीमाओं का ऐसा सतत् अतिलंघन है जो लोकहित के संरक्षण के प्रति निर्दिष्‍ट होने मात्र के आधार पर ही मान्‍य एवं औचित्‍यपूर्ण हो सकता है।

न्‍यायिक सक्रियता के तहत संविधान में दिए (बाध्‍यकारी) प्रावधानों एवं विधायिका द्वारा बनाए गए विधियों के अर्थ के आधार पर निर्णय दिया जाता है। अर्थात् न्‍यायिक सक्रियता विधि की सम्‍यक प्रक्रिया से शक्‍ति प्राप्‍त करती है। दूसरी ओर न्‍यायिक समीक्षा के तहत् न्‍यायालय द्वारा कार्यपालिका तथा व्‍यवस्‍थापिका के कार्यों की वैधता की जाँच की जाती है अर्थात न्‍यायालय द्वारा कानूनों एवं प्रशासनिक आदेशों, नीतियों को असंवैधानिक घोषित करना जो संविधान के किसी अनुच्‍छेद का अतिक्रमण करती हो। अत: न्‍यायिक समीक्षा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया सिद्धांत से शक्‍ति प्राप्‍त करती है।

इससे स्‍पष्‍टहै कि न्‍यायिक सक्रियता के तहत न्‍यायपालिका संविधान में वर्णित प्रावधान से परे जाकर भी निर्देश देने में स्‍वयं को समर्थ कर लेती है। जैसे-अनु. 21 के तहत व्‍यक्‍ति को जीवन जीने का अधिकार है और इसकेतहत यह कहा गया है कि कानूनी प्रावधानों के अनुसार ही किसी न्‍यायालय ने इस अनुच्‍छेद का विस्‍तार कर यह व्‍यवस्‍था कर दी कि शुद्ध पेय जल, शुद्ध वायु, गोपनीयता आदि की सुरक्षा भी इसके तहत ही आती है। न्‍यायिक सक्रियता के तहत न्‍यायपालिका की यही न्‍यायिका सकारात्‍मक है।

सैद्धान्तिक पक्ष
मांटेस्‍कयू ने ‘The spirit of Law’ के अंतर्गत प्रतिपादित शक्‍तिके पृथक्‍करण की अवधारणा के आधार पर भारतीय शासन पद्धति में सत्‍ता को विधायिका, कार्यपालिका तथा न्‍यायपालिका के रूप में विभक्‍त किया गया है। हालांकि भारतीय प्राणाली में इसे कठोरता से लागू नहीं किया गया।

इसी आधार पर भारतीय संविधान में अवरोध एवं संतुलन के सिद्धांत को सैद्धांतिक रूप से अपनाया गया है। कार्यपालिका पर न्‍यायिक तथा संसदीय नियंत्रण स्‍थापित किया गया है, विधायिका पर न्‍यायपालिका तथा न्‍यायपालिका पर न्‍यायिक तथा संसदीय नियंत्रण स्‍थापित किया गया है, विधायिका पर न्‍यायपालिका तथा न्‍यायपालिका पर विधायिका का नियंत्रण भी उसी क्रम में है। जब सरकार के अंगो में कार्यपालिका एवं विधायिका अपने दायित्‍वों तथा कर्तव्यों से विमुख होने लगे तो संविधान सम्‍मत् न्‍यायिक पुनर्विलोकन के आधार पर न्‍यायालय विभिन्‍न प्रकार के आदेश प्रेषित करते हैं, यही न्‍यायिक सक्रियता है। न्‍यायिक सक्रियता शब्‍द संविधान में नहीं है किंतु भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश पी.एन. भगवती के अनुसार-जिन व्‍यवस्‍थओं में न्‍यायालयों को पुनर्विलोकन का अधिकार है वहीं न्‍यायिक सक्रियता होती है। न्‍यायिक सक्रियता का स्‍वरूप तकनीकी एवं सामाजिक होता है।

ऐतिहासिक पहलू
न्‍यायिक सक्रियता का विकास अचानक न होकर क्रमिक रहा है। सर्वप्रथम न्‍यायालय ने न्‍यायिक समीक्षा के तहत संविधानिक ढांचे में रहते हुए अपने निर्णय दिए। बाद में संविधान एवं विधि के मानवीय पक्ष को ध्‍यान में रखते हुए न्‍यायालय ने निर्णय देने शुरू किए।

ऐसा माना जाता है कि न्‍यायिक समीक्षा की शुरूआत अमेरिका में हुई। 1830 में मारबटी बनाम मेडीसन के मुकदमे में तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायाधीश जॉन मार्शल ने न्‍यायिक समीक्षा की व्‍याख्‍या करते हुए कहा कि – यह निश्चित रूप से न्‍याय विभाग का कार्य एवं क्षेत्र है कि वह बताएं कि कानून क्‍या हैं? उन्‍होंने कहा कि संविधान सर्वोच्‍च है और सभी व्‍यवस्‍थापिका का अंतिम स्‍त्रोत संविधान है और संविधान की व्‍याख्‍या न्‍यायालय के कार्यक्षेत्र के अधीन है। वास्‍वतविकत: न्‍यायालय का कार्य कर्तव्‍य का निर्वहन तथा कानून का सम्‍मान करते हुए कार्यपालिका एवं व्‍यवस्‍थापिकाके कार्यों का समीक्षात्‍मक नियंत्रण है।

भारत के परिप्रेक्ष्‍य में
भारत में विधा‍यिका द्वारा बनाए गए विधानों की समीक्षागत शुरूआत 1951 के रमेश थापर बनाम मद्रास राज्‍य वाद से मानी जाती है। तात्‍कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू को उनकी व्‍यक्‍तिगत आभा, राष्‍ट्रीय आंदोलन के आदर्शों एवं कांग्रेस की भूमिका का सकारात्‍मक नैतिक समर्थन प्राप्‍त था। दूसरी ओर, आजादी के बाद भारतीय सामाजिक-आर्थिकपरिस्‍थितियां सकरार को समर्थनदेती नजर आ रहा थीं। स्‍वायत्‍त लोकतांत्रिक संस्‍था न्‍याय‍पालिका भी लगभग इसी कतार में खड़ी थी।

जैसे – 1951 के रमेश थापर बनाम मद्रास राज्‍य, 1952 के शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ एवं 1965 के सज्‍जन सिंह बनाम राजस्‍थान के बाद में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने मूल अधिकारों में संशोधन से संबंधित नहीं किया जा सकता। मूल अधिकार एवं स्‍वयं अनु. 368 भी इसमें शामिल है। संशोधन के लिए केवल निश्चित प्रक्रिया आवश्‍यक है।

इस संबंध में न्‍यायालय ने कहा कि संविधान निर्माता इस तथ्‍य के ज्ञाता होंगे कि सामाजिक आर्थिक समस्‍याओं के संदर्भ में विधायिका को मौलिक अधिकारों को संशोधित करना पड़ सकता है। इसलिए उन्‍होंने संविधान में मौलिक अधिकारों में संशोधन करने पर कोई रोक नहीं लगाई। इस निर्णय का अर्थ यह था कि विधायिका के कानून बनाने तथा संविधान की शक्‍तियां अलग-अलग हैं। कानून बनाने की शक्‍ति पर अनु. 13(2) द्वारा सीमा आरोपित है- चूंकि विपक्ष अब पक्ष में था अत: कलांतर में विपक्ष की भूमिका महत्‍वपूर्ण होने वाली थी। परिणामस्‍वरूप न्‍यायालय निरंतर सशक्‍तिकृत हो गया और जनता की आवश्‍यकताएं तथा मागें उनके निर्णय के केंद्र में क्रमश: आती गयीं। 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत संघ का वाद आया। इसके निर्माण में न्‍यायालय ने गोपालन के बाद में दिए निर्णय को बदलते हुए प्राण एवं दैहिक स्‍वतंत्रता के अधिकार के संबंध में कहा कि न्‍यायालय को न्‍यायिक अर्थान्‍वयन की प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों के अर्थ तथा संदर्भ को क्षीण करने के बजाय उनके प्रभावक्षेत्र तथा परिक्षेत्र का विस्‍तार करना चाहिए। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अनु. 21 की व्‍याख्‍या करते हुए कहा कि जीने का अधिकार केवल शारिरीक अस्तित्‍व तक ही सीमि‍त नहीं है बल्कि मानवीय गरिमा के साथ जीवित रहने का अधिकार भी उसके परिक्षेत्र में आता है।

गोपालन वाद से लेकर मेनका वाद तक के सफर को न्‍यायपलिका की उत्‍तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की यात्रा माना जाता है। इसके द्वारा ही न्‍यायालय ने न्‍यायिक समीक्षा के अधिकार को सक्रियता के रूप में परिवर्तित करते हुए अवधि की सम्‍यक प्रक्रिया को स्‍थापित करने का प्रयास किया। एक तरह से इस वाद ने न्‍यायिका सक्रियता का आधार तैयार किया।

श्री पी.एन. भगवती ने कई न्‍यायाधीश को भेजे पत्र को भी जनहितवाद के रूप में स्‍वीकार करना शुरू किया। इस आधार पर, न्‍यायपलिका ने समय एवं परिस्‍थितियों में परिवर्तन के साथ Lous Standi के प्रावधान को उदार बनाया जिसमें पीडि़त व्‍यक्‍ति द्वारा याचिका दायर करने की बाध्‍यता को समाप्‍त कर दिया और कालांतर में Suo-moto को स्‍वीकार करता चला गया अर्थात न्‍यायालय अब समाचार पत्र या न्‍यूज के आधार पर स्‍वत: संज्ञान लेने की परिपाटी विकसित कर भारत के सामाजिक एवं मानवीय पहलू को उभारने लगे।

इनका संयुक्‍त परिणाम यह हुआ कि संविधान के अंतर्गत अनु. 32 के क्षेत्र को विस्‍तृत करते हुए पीपुल्‍स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राईट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1980 के बाद में सर्वोंच्‍च न्‍यायालय ने यह निर्धारित किया कि यह आवश्‍यक नहीं कि न्‍याय पाने के लिए पीडि़त या शोषित व्‍यक्‍ति ही याचिका दायर करे। पीडि़त व्‍यक्‍ति की ओर से किसी अन्‍य व्‍यक्‍ति या संस्‍था द्वारा भी याचिका दायर की जा सकती है। परिणामत: जनहित याचिका में वृद्धि हुई और न्‍यायिक सक्रियता अपने लक्ष्‍य पर पहुंची।

44वें संशोधन के दो वर्ष बाद ही 1980 में मिनर्वा मिल्‍स बनाम भारत संघ का वाद आया। इसमें निर्णय दिया गया कि – न्‍यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार संविधान का मूल ढाँचा है अत: इसमें संसद की संशोधनकी अधिकारिता को अस्‍वीकार करते हुए 44वें संविधान को मान्‍यता दी गई।

1994 के बोम्‍मई वाद में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपने निर्णय द्वारा न्‍यायिक समीक्षा के अधिकार को ओर अधिक व्‍यापक बना दिया। धारा 356(1) के तहत जारी राष्‍ट्रपति शासन लागू करने की घोषणा, जो अभी तक न्‍यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं थी, के विषय में कहा कि यह न्‍यायिक समीक्षा के तहत आती है चाहे इसको किन्‍हीं कारणों के आधार पर जारी किया गया है। न्‍यायपालिका इस बात की समीक्षा कर सकती है कि जिन कारणों से राष्‍ट्रपति शासन लागू किया गया है वह प्रासंगिक थे या फिर इस घोषण को सत्‍ता के दुरूपयोग के लिए घोषित किया था। इसी के तहत बिहार के राज्‍यपाल बूटा सिंह द्वारा राष्‍ट्रपति शासन के लिए सिफारिश किए जाने के आधार को सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपर्याप्‍त माना और राष्‍ट्रपति शासन को असंवैधानिक घोषित कर दिया।

कॉमन कॉज के मामले (2007) में भी सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने सर्वसम्‍मति से यह निर्णय दिया कि नवीं अनुसूचीमें 24 अप्रैल 1973 के बाद शामिल किए गये विषयों की न्‍यायिक समीक्षा संभव है अर्थात नवीं अनुसूची में इस विधि के बाद शामिल सभी विषयों को न्‍यायिक समीक्षा के तहत ला दिया गया है ताकि संविधान के मूल ढांचे का अतिक्रमण न होने पाए। इस आधारपर सवोच्‍च न्‍यायालय का मानना है कि संविधान को केवल शब्‍द कोष की सहायता से पढ़ना मात्र नहीं है अपितु इसको स्‍वर प्रदान करना एवं व्‍याव‍हारिक बनाना भी है। न्‍यायालय द्वारा अपने कार्य एवं अधिकार क्षेत्र का विस्‍तार करते जाने से सक्रियता का आधार स्‍वत: निर्मित हो गया। दूसरी और जनहित याचिका की स्‍वीकार्यता के कारण न्‍यायालय विभिन्‍न विषयों पर निर्णय देते हुए स्‍वयं को सक्रिय बनाते गया जिसकी समय-समय पर अलोचना भी होती रही।

भारतीय राजनीतिक परि‍स्‍थितियाँ भी तेजी से बदल रही है। 1980 के निर्वाचन में पुन: इंदिरा गांधी ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई लेकिन 1984 में उनकी हत्‍या के कारण उत्‍पन्‍न राजनीतिक शून्‍यता को भरने के लिए प्रधानमंत्री पद के लिए राजीव गाँधी को नियुक्‍त किया गया। 1984 के निर्वाचन में राजीव गांधी के नेतृत्‍व में कांग्रेस को अभूतपूर्व बहुमत मिला। 1989 के चुनाव में किसी भी दल को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिला। वी.पी. सिंह के नेतृत्‍व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी, फिर 1990 में कांग्रेस की सहायता से चंद्रशेखर ने सरकार बनायी । इस दशक में कई नई घटनाएँ हुईं:
Ø भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ जिसने संस्‍कृतिक आधार पर देश की जनता को गोलबंद करना शुरू किया।
Ø इंदिरा गाँधी की हत्‍या किया।
Ø राजीव गाँधी के रूप में देश को नया युवा नेतृत्‍व मिला।
Ø कम्‍प्‍यूटर तथा तकनीकी ज्ञान की महत्‍ता को स्‍वीकार किया गया।
Ø किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पाया और गठबंधन की सरकार बननी शुरू हुई।
1991 में लिट्टे द्वारा राजीव गाँधी की हत्‍या कर दी गई और इस सकरार बननी शुरू हुई। स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिल पाया। श्री नरसिम्‍हा राव के नेतृत्‍व में अल्‍पमत की सरकार बनी और अपना कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान भारतीय राजनीतिक, सामाजिक तथा अर्थिक समाज को परिर्तित करने वाली कुछ घटनाएँ भी घटी:
Ø पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया गया।
Ø 73वां संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती राज को संवैधानिकता प्रदान की गई।
Ø बारगेनिंग की राजनीति शूरू हुई जिससे भारतीय राजनीतिक संस्‍कृतिक का पतन होना शुरू हुआ।
Ø नई आर्थिक नीति को लागू किया जिससे भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था वैश्‍विक अर्थव्‍यवस्‍था के साथ जुड़ गई।
Ø वैश्‍विक स्‍तर पर पूर्व सोवियत संघ का विघटन हो गया और अमेरिका महाशक्‍ति के रूप में स्‍थापित हो गया।
आरक्षण से पिछड़े वर्गों का आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक रूप में सशक्‍तिकरण हुआ जिससे मतदाता व्‍यवहार बदलने लगे। पंचायती राज को सांविधानिकता मिलने से बुनियादी स्‍तर तक लोकतंत्र के विस्‍तार के माध्‍यम से राजनीतिक समाजीकरण हुआ। उदारीकरण, निजीकरण तथा‍ वैश्‍वीकरण की नीति के राज्‍य की भूमिका को कम करते हुए व्‍यक्‍तिगत स्‍वतंत्रता को केंद्र में ला दिया।

इनका मिला जुला असर यह हुआ कि क्षेत्रीय दल की उत्‍पत्ति एवं विकास होना शुरू हुआ, जिससे केंद्र में गठबंधन के आधार पर सरकार बनने लगी। अर्थात केंद्रीय नीतिगत फैसले में क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका बढ़ती गई। इसका प्रभाव सभी स्‍वायत्‍त लोकतांत्रिक संस्‍थाओं में नियुक्‍ति पर भी पड़ने लगा। फलत: ऐसे संस्‍थानों के निर्णय राजनीति से प्रेरित होने लगे।

गठबंधन की राजनीति का असर यह हुआ कि केंद्र सरकार कमजोर होने लगी, सौदेबाजी की राजनीति शुरू हुई और संसदीय उत्तरदायित्व में ह्यास दिखने लगा। इसका ही मिला-जुला परिणाम यह हुआ कि न्‍यायपालिका मजबूत होती गई और धीरे-धीरे कार्यपालिका आदेश भी दिए जाने लगे। 1994 के बोम्‍मई वाद में राष्‍ट्रपति शासन के लिए सिफारिशी आधार भी न्‍यायिक समीक्षा के तहत ला दिए गए जो अब तक नहीं लाए गए थे।

1996 से लेकर अब तक हुए निर्वाचनों स्‍पष्‍ट हो चुका है कि  भारतीय राजनीतिक व्‍यवस्‍था में गठबंधन की राजनीति एवं एरकार नियति बन चुके हैं। प्रधानमंत्री पद अपेक्षाकृत कमजोर होता जा रहा है, मंत्रीपरिषद के गठन में प्रधानमंत्री की नहीं बल्कि समर्थन दे रही क्षेत्रीय दलों के साथ कई अन्‍य समीकरण काम करने लगे। इसका संयुक्‍त परिणाम यह हुआ कि सभी स्‍वयत्त लोकतांत्रिक संस्‍था में अधिक स्‍वयत्ता का उपभोग करते हुए अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर निर्णय देने लगे। इस कड़ी में न्‍यायपालिका भी शामिल है।

2007 के वाद में न्‍यायपलिका ने सर्वसम्मति में 9वीं अनुसूची में 24 अप्रैल 1973 के बाद शामिल सभी विषयों का न्‍यायिक समीक्षा के तहत लाकर अपने कार्यक्षेत्र को अभूतपूर्व बढ़ा लिया।
वहीं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आरक्षण के विषय पर तो निर्वाचन आयोग में होने वाले वर्तमान घमासन, इसी कड़ी का महत्‍वपूर्ण उदाहरण हैं।
इस विश्‍लेषण के बाद स्‍वाभाविक रूप से न्‍यायालय की सक्रियता के कुछ कारण दृष्टिगोचर होते हैं:
सामाजिक स्‍तर पर
Ø शिक्षा का प्रसार हुआ।
Ø लोगों में अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी।
Ø लोग विभिन्‍न विषयों को लेकर न्‍यायालय जाने लगे।
Ø आरक्षण का लाभ पिछड़े वर्गों को मिला, अत: इसने मतदान व्‍यवहार को प्रभावित किया और क्षेत्रीय दलों की मजबूती और भूमिका बढ़ने लगी।
आर्थिक स्‍तर पर
Ø हरित क्रांति ने किसानों की आय में वृद्धि की फलत: उन्‍होंने बच्‍चों पर शैक्षणिक निवेश करना शुरू कर दिया।
Ø नई आर्थिक नीति ने लोगों के बीच शिक्षा के महत्‍व को बढ़ावा दिया और नए रोजगार के अवसर सृजित किये। विखंडित जनादेश मिलने में इनकी भी भूमिका महत्‍वपूर्ण है।
राजनीतिक स्‍तर पर
Ø राजनीति का अपराधीकरण तथा अपराधों का राजनतिककरण शुरू हो चुका था।
Ø इसने संसदीय संरचना में परिवर्तन ला दिया जिससे संसदीय उत्तरदायित्‍व की भावना तेजी से ह्यास हुआ।
Ø किसी भी कीमत पर सरकार बनाने की परिपाटी की शुरूआत ने कार्यपालिका की प्राथमिकताएं बदलनी शुरू कर दी। फलत: न्‍यायपालिका कार्यपालिका भूमिका में नजर आने लगी।
Ø पंचायती राज के संचालन से राजनीतिक समाजीकरण तेजी से हुआ। इसने न्‍यायिक जागरूकता को भी बढ़ाने का कार्य किया।
Ø गठबंधन की सरकार द्वारा निर्णय लेने में की जाने वाली देरी ने न्‍यायालय की भूमिका को बढ़ाया।
न्‍यायिक स्‍तर पर
पंचायती राज के माध्‍यम से न्‍यायिक जागरूकता तो बढ़ी ही, साथ ही न्‍यायपालिका द्वारा भी स्‍वयं की शक्‍ति बढ़ाने की इच्‍छा ने सक्रियता को बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।
Ø जनहित याचिका की संकल्‍पनाने इसमें मात्रात्‍मक वृद्धि कर दी।
पर्यावरणीय स्‍तर पर
Ø उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्‍वीकरण की नीति ने कुछ वैश्‍विक समस्‍याओं को जन्‍म दिया जैसे-वश्‍विक तापन, पार्यवरणीय प्रदूषण आदि।
Ø इससे संबंधित निर्णय भी न्‍यायालय द्वारा दिए जाने लगे। अनु. 21 के तहत इन विषयों को शामिल कर दिया गया।
इन कारणों का मिला-जुला परिणाम यह रहा कि विवेकशीलता के आधार पर मतदान व्‍यवहार करने लगे। आरक्षण तथा नई आर्थिक नीति के आर्थिक स्‍वतंत्रता को बढ़ाया जिसने अप्रत्‍यक्ष रूप से ही सही, विखंडित जनादेश के निर्माण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। गठबंधन की राजनीति ने बारगेनिंग संघवाद को जन्‍म दिया और संसदीय उत्तरदायित्‍व में ह्यास होते जाने से न्‍यायपालिका उभरकर सामने आयी।

न्‍यायिक सक्रियता के प्रभाव

न्‍यायिक सक्रियता केवल सकारात्‍मक प्रभाव लेकर नहीं आयी। अति सक्रियता की स्थिति में तथा कार्यपालिकीय कार्यों पर स्‍वयं के अतिक्रमण से उपजी परिस्थ्‍िातियों में न्‍यायपालिका के इस कदम की विभिन्‍न रूपों में आलोचन भी की गई।

सकारात्‍मक प्रभाव
श्रीमति हिंगोरानी के प्रयास से भागलपुर में सैंकड़ों कैदियों को न्‍याय मिला, भागलपुर आँख फोड़ना कांड, एशियाई श्रमिक केस, 1982, बंधुवा मुक्‍त‍ि मोर्चा बनाम संघ, रूदल शह बनाम बिहार रज्‍य, चर्मकारों के शोषण से संबंधित मामले, दुर्बल वर्गों के हितों से संबंधित मामले (शाहबानो केस), आगरा में चर्मकार उद्योग पर प्रतिबंध, सुनील बत्रा बनाम दिल्‍ली प्रशासन, औद्योगिक प्रदूषण से संबंधित मामले आदि को शामिल किया जा सकता है। इसमें न्‍यायालय द्वारा न्‍याय मिल पाया था। इसके साथ ही, प्रियदर्शिनी मट्टू एवं जेशिका लाल केस में न्‍यायिक सक्रियता का ही परिणाम था, कि इन्‍हें न्‍याय मिल पाया। इसी तरह PUCL के जनहित याचिका पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निर्वाचन आयोग के लिए दिशा निर्देश जारी कियाकिनामांकन के समय प्रत्‍येकउम्‍मीदवार को अपनी अपराधिक पृष्‍ठभूमि एवं संपत्ति का ब्‍यौरा देना होगा।

न्‍यायिक सक्रियता का ही परिणाम था कि हवाला कांड सामने आया जिसमें सीबीआई को न्‍यायालय की काफी फटकार सुनना पड़ी थी। 10 फरवरी 2009 को सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने मुलायम मामले में सीबीआई को काफी फटकार लगाई। बोर्ड ने कहा कि आप केंद्र सरकार औैर विधि मंत्रलय के निर्देश पर काम रहे हैं, अपने मन से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इससे संबंधित जनहित याचिका दायर करने वाले को सुरक्षा देने का आदेश भी दिया। प्रतिभूत घोटाला, दूरसंचार घोटला आदि मामले सामने आ पाए। न्‍यायालय की पर्यावरणीय सक्रियता के तहत ही ताजमहल को बचाने का आदेश दिया गया। इसके साथ है, बेस्‍ट बेकरी कांड में अल्‍पसंख्‍यकों के हितों का प्रश्‍न, पेट्रोल पंप आवंटन आदि में भ्रष्‍टाचार उजागर हो पाया। इस सकारात्‍मक को निम्‍न बिन्‍दुओं में दिखाया जा सकता है- इसके कारण FR का क्षेत्र व्‍यापक हुआ है। इससे संविधान की प्रगतिशील व्‍याख्‍या हो पायी तथा समसामयिक समस्‍याओं का भी समाधान संभव हो पाया।
Ø पर्यावरणीय रक्षा की दिशा में महत्‍वपूर्ण कार्य किया गया।
Ø समर्थकों के अनुसार यह लोकतंत्र के अनुकूल है क्‍योंकि इसे सामान्‍यत: जनता की स्‍वीकृति प्राप्‍त है।

नकारात्‍मक प्रभाव
दिल्‍ली में सीएनजी मामले में दिल्‍ली सरकार द्वारा सर्वोंच्‍च न्‍यायालय के आदेशों को विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया गया क्‍योंकि इससे यातायात संबंधी समस्‍यायें आनी थी, यातायात व्‍यवस्‍था ठप हो जाती और जनता क्रोधित होकर आंदोलन कर सकती थी। कावेरी जल विवाद के मामले में भी कर्नाटक के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री श्री एस.एम. कृष्‍ण ने न्‍यायालय के आदेशां को विनम्रतापूर्ण अस्‍वीकार कर दिया।
यमुना मैली मामले में बिना कोई वैकल्‍पिक व्‍यवस्‍था सुझाएं झुग्‍गी-झोपड़ी गिराने का आदेश दिया जाना, एक मामले में न्‍यायालय द्वारा एक वकील के कार्यलय को ही प्रदुषित घोषित कर दिया जाना, न्‍यायालय की अतिसक्रियता को दिखाती है। दिल्‍ली में अतिक्रमण के मामले में भी तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायमूर्ति श्री सब्‍बरवाल की भूमिका की भी काफी आलोचना हुई।

संसद में वोट के बदले रुपये के मामले में न्‍यायपालिका तथा विधायिका के बीच होने वाले संघर्ष का भी हम लोगों ने देखा जिसमें लोकसभा अध्‍यक्ष श्री चटर्जी न्‍यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। न्‍यायालय को गंभीर आलेचना का शिकार तब होना पड़ा जब करूणानिधी सरकार को हड़ताल न करने के आदेश नहीं माने जाने पर बर्खास्‍त की बात कह दी जो न्‍यायालय के कार्यक्षेत्र में बिल्‍कुल भी नहीं आती। अत: स्‍पष्‍ट है कि न्‍यायालय द्वारा कई ऐसे निर्णय पूर्व में भी दिए गए और अब भी दिए जाते रहे हैं जिससे उन्‍हें आलोचना का शिकार होना पड़ता है। न्‍यायापालिका एवं वि‍धायिका/कार्यपालिका आमने-सामने आ जाती है।

न्‍यायापालिका को Judicial Populism (न्‍यायिक लोकप्रियतावाद) बनने से बचना चाहिए। उपरोक्‍त वर्णित विश्‍लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि न्‍यायिक सक्रियता के तहत प्रारंभिक चरण में नागरिकों के मूल अधिकार, मानवाधिकार, शक्‍तिहीनों की सुरक्षा आदि पर ध्‍यान दिया जाता था। पुलिस द्वारा टॉर्चर किया जाना, कस्‍टडी में मृत्‍यु, बलात्‍कार जैसे विषय मुख्‍य होते थे।

1980 के उत्तरार्द्ध तथा 1990 के शुरूआती वर्ष में, न्‍यायालय ने अपना दायरा बढ़ाया और जनकल्‍याण पर ध्‍यान दिया, जैसे शुद्ध हवा की प्राप्ति , शुद्ध पेयजल और जरूरतमंद को शुद्ध खून की उपलब्‍धता हो, ऐसे प्रयास किए जाने लगे। 1990 के मध्‍य में, प्रशासनिक भ्रष्‍टाचार जैसे विषय आने लगे। ऐसी परिस्थिति में सीबीआई की स्‍वायत्तता पर ध्‍यान दिया जाने लगा, फलस्‍वरूप हवाला, बोफोर्स जैसे भ्रष्‍टाचार उजागर हुए। न्‍यायमूर्ति जे.एस. वर्मा के अनुसार सीबीआई की नियुक्‍ति, पदोनत्ति तथा पदच्‍यूति में प्रधानमंत्री की बढ़ती भूमिका को रोका जाना चाहिए।

निष्‍कर्ष एवं सुझाव
इन विश्‍लेषणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि न्‍याय‍पालिका चाहे कितनी भी सदगुणी क्‍यों न हो, उसे प्रशासन करने से बचना चाहिए। न्‍यायपालिका कार्यपालिका का विकल्‍प न तो हो सकती है और न ही होना चाहिए। न्‍यायिक सक्रियता वहींतक औचित्‍यपूर्ण है जहां तक यह जनता को कार्यपालिकीय निरंकुशता तथा अकर्मण्‍यता के विरुद्ध सं‍रक्षित करती है।

इसी संदर्भ में 1803 में एक अमरीकी न्‍यायाधीश ने कहा था कि न्‍यायालय अपना शक्‍ति प्रदर्शन अवश्‍य करे लेकिन साथ ही अपनी शक्‍ति की मर्यादाओं को भी भली-भांति पहचाने। अत: उसे न्‍यायिक संक्रियता के प्रलोभन से बचना चाहिए। भारतीय राजनीतिक व्‍यवस्‍था में कठोरता से शक्‍ति को पृथक्‍करणीय तो नहीं बनाया गया किन्‍तु संविधान में व्‍यवस्‍था के तीनों अंगों के लिए स्‍पष्‍ट एवं निर्धारित अधिकार एवं कर्तव्‍य दिए गए हैं। यदि प्रत्‍येक अंग अपने दिए अधिकार के दायरे में रहकर कर्तव्‍यन्ष्ठिता के साथ कार्य करे तो यह समृद्ध लोकतंत्र के लिए लाभदायक होगा। प्‍लेटो ने अपनी महत्‍वपूर्ण कृति Republic में भी कहा है कि न्‍याय आधारित आदर्श राज्‍य की प्राप्ति तभी होगी जब दार्शनिक राजा, सैनिक तथा उत्‍पादक वर्ग तीनों अपने-अपने निर्धारित कार्यों को कर्त्तव्‍यनिष्‍ठता के साथ करे, कोई किसी का अतिक्रमण न करे। प्‍लेटोका यह संदर्भित सुझाव आज के समय में भी प्रासंगिक एवं व्‍यावहारिक है।

आवश्‍यकता इस बात की भी है कि न्‍यायपालिका के समक्ष लंबित पड़े 2 करोड़ से अधिक मामलों को निपटाया जाए। क्‍योंकि न्‍याय मिलने में विलंब भी अन्‍याय की श्रेणी में आता है। इसी विलंब का परिणाम है कि सामाजिक आर्थिक समस्‍याएं जैसे कि नक्‍सलवाद निरंतर बढ़ती जा रही हैं, राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण तीव्र गति से हो रहा है।

व्‍यक्‍तिगत स्‍तर पर सुझाव यह हो सकता है कि लोग केवल अपने अधिकार के प्रति ही नहीं बल्कि अपने कर्तव्‍यों के प्रति भी उतनी ही जागरूकता दिखाएं। क्‍योंकि कर्तव्‍यशील समाज समस्‍याओं को अवश्‍य ही न्‍यून करेग। आज गठबंधन की सरकार भले ही संसदीय उत्तरदायित्‍व की संकल्‍पना में ह्यास लाया है, परंतु यह गठबंधन की राजनीति समृद्ध, स्‍वस्‍थ लोकतंत्र तथा भारतीय समाज का दर्पण है। आवश्‍यकता है उत्तरदायित्‍वपूर्ण सिद्धांत एवं व्‍यवहार को मजबूत करने की।

आदर्श स्‍थिति यह है कि तीनों अंग सामंजस्‍यता के साथ अपना अपना कार्य करें, कोई किसी के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण न करे। ऐसी स्‍थिति के व्‍यवहार में फलीभूत नहीं होने तथा कार्यपालिकीय अक्षमता तथा अनुदरदायीपूर्ण व्‍यवहार की समाप्‍ति के लिए व्‍यवस्‍था के किसी सर्वमान्‍य अंग को आगे आना ही होग, ताकि अराजकता की स्थिति उत्‍पन्‍न न हो पाए।  

COMMENTS

BLOGGER: 1

Name

10 line essay,281,10 Lines in Gujarati,1,Aapka Bunty,3,Aarti Sangrah,3,Aayog,3,Agyeya,4,Akbar Birbal,1,Antar,170,anuched lekhan,52,article,17,asprishyata,1,Bahu ki Vida,1,Bengali Essays,135,Bengali Letters,20,bengali stories,12,best hindi poem,13,Bhagat ki Gat,2,Bhagwati Charan Varma,3,Bhishma Shahni,6,Bhor ka Tara,1,Biography,141,Biology,88,Boodhi Kaki,1,Buddhapath,2,Chandradhar Sharma Guleri,2,charitra chitran,205,chemistry,1,chhand,1,Chief ki Daawat,3,Chini Feriwala,3,chitralekha,6,Chota jadugar,3,Civics,32,Claim Kahani,2,Countries,10,Dairy Lekhan,1,Daroga Amichand,2,Demography,10,deshbhkati poem,3,Dharmaveer Bharti,10,Dharmveer Bharti,1,Diary Lekhan,7,Do Bailon ki Katha,1,Dushyant Kumar,1,Economics,29,education,1,Eidgah Kahani,5,essay,737,Essay on Animals,3,festival poems,4,French Essays,1,funny hindi poem,1,funny hindi story,3,Gaban,12,Geography,44,German essays,1,Godan,8,grammar,19,gujarati,30,Gujarati Nibandh,214,gujarati patra,20,Guliki Banno,3,Gulli Danda Kahani,1,Haar ki Jeet,2,Harishankar Parsai,2,harm,1,hindi grammar,14,hindi motivational story,2,hindi poem for kids,3,hindi poems,54,hindi rhyms,3,hindi short poems,8,hindi stories with moral,15,History,42,Information,890,Jagdish Chandra Mathur,1,Jahirat Lekhan,1,jainendra Kumar,2,jatak story,1,Jayshankar Prasad,6,Jeep par Sawar Illian,3,jivan parichay,147,Kafan,8,Kahani,25,Kamleshwar,8,kannada,98,Kashinath Singh,2,Kathavastu,33,kavita in hindi,41,Kedarnath Agrawal,1,Khoyi Hui Dishayen,3,kriya,1,Kya Pooja Kya Archan Re Kavita,1,long essay,426,Madhur madhur mere deepak jal,1,Mahadevi Varma,7,Mahanagar Ki Maithili,1,Mahashudra,1,Main Haar Gayi,2,Maithilisharan Gupt,1,Majboori Kahani,3,malayalam,139,malayalam essay,112,malayalam letter,10,malayalam speech,36,malayalam words,1,Management,1,Mannu Bhandari,7,Marathi Kathapurti Lekhan,3,Marathi Nibandh,261,Marathi Patra,25,Marathi Samvad,13,marathi vritant lekhan,3,Mohan Rakesh,2,Mohandas Naimishrai,1,Monuments,1,MOTHERS DAY POEM,22,Muhavare,138,Nagarjuna,1,Names,2,Narendra Sharma,1,Nasha Kahani,6,NCERT,27,Neeli Jheel,2,nibandh,742,nursery rhymes,10,odia essay,60,odia letters,86,Panch Parmeshwar,10,panchtantra,26,Parinde Kahani,1,Paryayvachi Shabd,229,patra,235,Physics,2,Poos ki Raat,9,Portuguese Essays,1,pratyay,186,Premchand,65,Punjab,28,Punjabi Essays,72,Punjabi Letters,13,Punjabi Poems,9,Raja Nirbansiya,4,Rajendra yadav,3,Rakh Kahani,2,Ramesh Bakshi,1,Ramvriksh Benipuri,1,Rani Ma ka Chabutra,1,ras,1,Report,5,Roj Kahani,2,Russian Essays,1,Sadgati Kahani,1,samvad lekhan,194,Samvad yojna,1,Samvidhanvad,1,Sandesh Lekhan,3,sangya,1,Sanjeev,2,sanskrit biography,4,Sanskrit Dialogue Writing,5,sanskrit essay,269,sanskrit grammar,157,sanskrit patra,30,Sanskrit Poem,3,sanskrit story,2,Sanskrit words,26,Sara Akash Upanyas,7,Saransh,61,sarvnam,1,Savitri Number 2,2,Shankar Puntambekar,1,Sharad Joshi,3,Sharandata,1,Shatranj Ke Khiladi,1,short essay,66,slogan,3,sociology,8,Solutions,3,spanish essays,1,speech,6,Striling-Pulling,25,Subhadra Kumari Chauhan,1,Subhan Khan,1,Suchana Lekhan,12,Sudarshan,2,Sudha Arora,1,Sukh Kahani,2,suktiparak nibandh,20,Suryakant Tripathi Nirala,1,Swarg aur Prithvi,3,tamil,16,Tasveer Kahani,1,telugu,66,Telugu Stories,65,uddeshya,14,upsarg,67,UPSC Essays,100,Usne Kaha Tha,2,Vinod Rastogi,1,Vipathga,2,visheshan,2,Wahi ki Wahi Baat,1,Wangchoo,2,words,44,Yahi Sach Hai kahani,2,Yashpal,5,Yoddha Kahani,2,Zaheer Qureshi,1,कहानी लेखन,17,कहानी सारांश,56,तेनालीराम,4,नाटक,51,मेरी माँ,7,लोककथा,15,शिकायती पत्र,1,सूचना लेखन,1,हजारी प्रसाद द्विवेदी जी,9,हिंदी कहानी,110,
ltr
item
HindiVyakran: भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध। Essay on Judicial Jctivism in India in hindi
भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध। Essay on Judicial Jctivism in India in hindi
भारत में न्‍यायिक सक्रियता के लाभ तथा दोष पर निबंध : न्‍यायिक सक्रियता’ लोकहित, विधि के शासन एवं संविधान की मूल भावना के संरक्षण का एक असामान्‍य, अपरम्‍परागत किंतु प्रभावी सकारात्‍मक यंत्र है। इस प्रकार, यह विधि के साथ न्‍याय करने हेतु आबद्ध न्‍यायपालिका द्वारा अपनी परंपरागत विधिक सीमाओं का ऐसा सतत् अतिलंघन है जो लोकहित के संरक्षण के प्रति निर्दिष्‍ट होने मात्र के आधार पर ही मान्‍य एवं औचित्‍यपूर्ण हो सकता है। न्‍यायिक सक्रियता के तहत संविधान में दिए (बाध्‍यकारी) प्रावधानों एवं विधायिका द्वारा बनाए गए विधियों के अर्थ के आधार पर निर्णय दिया जाता है। अर्थात् न्‍यायिक सक्रियता ‘विधि की सम्‍यक प्रक्रिया’ से शक्‍ति प्राप्‍त करती है। दूसरी ओर न्‍यायिक समीक्षा के तहत् न्‍यायालय द्वारा कार्यपालिका तथा व्‍यवस्‍थापिका के कार्यों की वैधता की जाँच की जाती है अर्थात न्‍यायालय द्वारा कानूनों एवं प्रशासनिक आदेशों, नीतियों को असंवैधानिक घोषित करना जो संविधान के किसी अनुच्‍छेद का अतिक्रमण करती हो। अत: न्‍यायिक समीक्षा ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ सिद्धांत से शक्‍ति प्राप्‍त करती है।
HindiVyakran
https://www.hindivyakran.com/2018/11/nyayik-sakriyta-par-nibandh.html
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/2018/11/nyayik-sakriyta-par-nibandh.html
true
736603553334411621
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content