भारतीय शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा का महत्व - Prathmik Shiksha Essay in Hindi : 19वीं शताब्दी में भारतीय शिक्षा नीति पर सर्वप्रथम डंक्कन और जेम्स प्रिंसेप ने दृष्टिपात किया और वैदिक शिक्षा को ही तीनों स्तरों के लिए उचित माना। इसी समय लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले शिक्षा पद्धति को पहली बार व्याख्यारित किया। उन्होंने हिंदी में, समसामायिक, आधुनिक शिक्षा देने का निवेदन किया। तत्पश्चात Wood Campaign में प्राथमिक शिक्षा के लिए पृथक-पृथक शिक्षाएं और नियम बनाये। 20वीं शताब्दी में कृष्ण गोखले ने सबसे पहली बार प्राथमिक शिक्षा को ही वायसराय की बैठक में उठाया। 1911 में मांग की गयी कि भारतीय उत्पादन के लाभ का 2.5% भारतीय शिक्षा प्रबंधन पर निवेश किया जाना चाहिए। तब परिषद के एक सदस्य अल्गीन ने इसका विरोध किया था ऐसी स्थिति में गांधी ने each one & teach one का नारा वस्तुत: प्राथमिक शिक्षा हेतु ही दिया था। अंतत: 1925 में भारतीयों के एक विशेष वर्ग ने इसका विरोध किया था।
वस्तुत: अनौपचारिक
शिक्षा घर व समाज तथा आस-पास के पर्यावरण से प्राप्त होती है जबकि औपचारिक शिक्षा
संस्थाओं के माध्यम से कई स्तरों में प्राप्त की जा सकती है। भारतीय मनीषीयों
व बुद्धिजीवियों ने इन दोनों ही विशुद्ध शिक्षा शैलियों को सामान्य रूप से
प्राथमिकता दी। इसी के कारण भारतीय शिक्षा नीति एक सुदृढ़ और सशक्त व्यक्तित्व
आधार का निर्माण बनी। अत: भारतीय शिक्षा नीति जो प्रारंभ में मौखिक थी जिसका आधार
भाषाओं के माध्यम से कुशल उच्चरण के द्वारा अभिव्यक्तियों को साकार बनाना था
तथा कालांतर में जब लिपि प्राप्त हुई अथवा लिपि का अन्वेषण हुआ तब भारतीय शिक्षा
नीति अपनी परिपक्व अवस्था में पहुंच गई। किंतु प्रारंभ से ही विचारकों का मानना
था कि शिक्षा नीति के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा वैज्ञानिक हो, उसका आधार स्तम्भ मनोवैज्ञानिक हो जिससे मनुष्य के व्यक्तित्व का
विकास हो और ऐसे समृद्ध समाज से संस्कृतिवाद व राष्ट्र का विकास हुआ। अत: भारतीय
शिक्षा नीति शिक्षा को व्यक्तित्व के निर्माण का आधार मानती है।
वैदिक शिक्षा पद्धति वस्तुत: उच्चारण, पठन-पाठन ध्यान व पराभौतिकीय संस्कारों से प्रेरित थी किंतु धीरे-धीरे
जब गुरूकुल पद्धति का विकास हुआ, तब अलग-अलग विषय-वस्तुओं
को प्राथमिकता दी गयी तथा प्राथमिक शिक्षा को भी सरल और सहज बनाकर मनोवैज्ञानिक
रूप से समाज का आवश्यक अंग बनाया गया। इसके लिए विचारंभ संस्कार प्रारंभ हुआ
कालांतर में लिपि ज्ञान के साथ इसे और अधिक विकसित किया गया। कल्हण की “राजतंरगिणी” में प्राथमिक विद्यालयों का उल्लेख
मिलता है। इसके पूर्व ही मनु तथा याज्ञवलक्य प्राथमिक शिक्षा की आयु निर्धारित
करते हैं। भारत में इस्लाम के आगमन के उपरांत मदरसों द्वारा भी शैक्षणिक पद्धति
को प्राथमिक स्तर पर विभाजित किया गया। किंतु इस काल तक भारतीय शिक्षा नीति व
प्राथमिक शिक्षा का आधार बिंदु सामाजिक और धार्मिक अधिक था न कि इसे आधुनिक काल
में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर स्तर पर विभाजित किया गया।
19वीं शताब्दी में भारतीय शिक्षा नीति पर सर्वप्रथम डंक्कन और जेम्स
प्रिंसेप ने दृष्टिपात किया और वैदिक शिक्षा को ही तीनों स्तरों के लिए उचित
माना। इसी समय लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले शिक्षा पद्धति को पहली बार व्याख्यारित
किया। उन्होंने हिंदी में, समसामायिक,
आधुनिक शिक्षा देने का निवेदन किया। तत्पश्चात Wood Campaign में प्राथमिक शिक्षा के लिए पृथक-पृथक शिक्षाएं और नियम बनाये। 20वीं
शताब्दी में कृष्ण गोखले ने सबसे पहली बार प्राथमिक शिक्षा को ही वायसराय की बैठक
में उठाया। 1911 में मांग की गयी कि भारतीय उत्पादन के लाभ का 2.5% भारतीय शिक्षा प्रबंधन पर निवेश किया जाना चाहिए। तब परिषद के एक सदस्य अल्गीन ने इसका
विरोध किया था ऐसी स्थिति में गांधी ने each one & teach one
का नारा वस्तुत: प्राथमिक शिक्षा हेतु ही दिया था। अंतत: 1925 में
भारतीयों के एक विशेष वर्ग ने इसका विरोध किया था।
वर्धा योजना के समय गाँधी जी ने प्राथमिक शिक्षा को व्यक्तित्व निर्माण
का आधार माना और स्पष्ट किया कि विश्व की कोई भी अवस्था हो अथवा विश्व व राष्ट्र
किसी भी अवधारणा से संचलित हो किंतु उसका प्राथमिक शिक्षा का स्तर आध्यात्मिक और
मनोवैज्ञानिक होना चाहिए। जिसमें संस्कार, विचार, अनुशासन तथा समर्पण के लिए विचारधाराएं समाहित हैं।
भारतीय स्वतंत्रता के उपरांत भारतीय शिक्षा
नीति में प्राथमिक शिक्षा को सुनियोजित करने अथवा उसे योजनाबद्ध रूप में लागू करने
का दायित्व मौलाना अबुल कलाम आजाद को दिया गया। जिन्होंने वर्धा योजना में ही
संशोधन करके प्राथमिक शिक्षा नीति बनायी जिसके अंतर्गत सरकारी संगठन, गैर-सरकारी संगठन, निजी संस्थान, सार्वजनिक संस्थान व्यक्तिगत रूप से अथवा न्याय के द्वारा भारतीय
शिक्षा नीति विशेषकर प्राथमिक शिक्षा को उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित हुआ।
कालांतर में राधाकृष्णन् जो ऑक्सफोर्ड पद्धति पर आधारित भारत में प्राथमिक
शिक्षा लाने के पक्षधर थे उन्होंने भी गाँधी की वर्धा योजना को अन्तत: स्वीकार
लिया।
कोठरी आयोग ने भी भारतीय सम्पूर्ण उत्पादन
का तत्कालिक पाँच प्रतिशत प्राथमिक शिक्षा पर निवेश करने का प्रावधन किया।
ज्ञातव्य हो भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व में भी राज्य से यह अपेक्षा की
गयी है कि वह प्राथमिक शिक्षा पर निवेश तथा योजनाबद्ध शोध व नवीन प्रारूप लागू
करेगा। इसी के चलते कालांतर में 1974 से ही प्राइमरी Education Research Centre का निर्माण किया गया। जिसका उद्देश्य बालक व
बलिकाओं को उनके व्यक्तित्व के विकासके लिए छ: वर्ष का आयु से दी जाने वाली
मुख्य शिक्षा पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के शोध निष्कर्ष 1978 में आया जो पूरे
दक्षिण-पूर्व ऐशियाकेदेशों से सम्बंधित था। जिसके अनुसार प्राथमिक शिक्षा के
अंतर्गत केंद्र,राज्य,गैर-सरकारी
संगठन और विश्व स्तर (संयुक्त राष्ट्र संघ) के समग्र प्रयास से दक्षिण-पूर्व
देशों को विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप में पड़ने वाले भारतीय राज्यों की शिक्षा की
नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन किये गये।
20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारतीय
शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा के उत्थान को विश्वयापी शोध का विषय बनाया गया।
अत: यह स्वीकारा गया कि प्राथमिक शिक्षा के लाभार्थी बालक व बालिकाएं राष्ट्र की
निधि हैं अत: उनके व्यक्तिगत परिवेश से ऊपर उठते हुए सरकार को उनका दायित्व ले
लेना चाहिए। अत: इसी समय कई पृथक योजनाएं प्राथमिक शिक्षा को दी गयी जैसे समाज कल्याण
विकास के भीतर ही बाल विकास योजना के अंतर्गत बालक व बालिकाओं को पुस्तकें आहार, विहार, भ्रमण की सुविधा,
समय-समय पर उनके अभिभावकों से मिलकर उनकी व्यक्तिगत समस्याओं के साथ नीति को
सुनियोजित करना इत्यादि प्रारंभ हुआ। कुछ पृथक योजनाओं के अंतर्गत क्षेत्रीय
जनसंख्या के आधार पर प्राथमिक विद्यालयोंका निर्माण बालक तथा बालिकाओं को उनके स्थान
से विद्यालय तक लाना तत्तपश्चात उन्हे वापस भिजवाने आदि का दायित्व भी संस्थाएं
लेंगी। निजी संस्थानों को भी आवश्यक रूप से आदेश नहींदिया गया किंतु उन्हें कई
ऐसे सरकारी लाभ दिये गये कि यदि वे प्रा. शिक्षा के विकास में धन का निवेश करते
हैं तो उन्हें कई सुविधाएं प्राप्त होंगी।
वास्तव में भारत सरकार व यूनेस्को के
माध्यम से चल रही कई शैक्षणिक नीतियां प्राथमिक शिक्षा को विकसित करने के लिए निजी
संस्थाओं को अप्रत्यक्ष लाभ देकर उद्देश्य को प्राप्त करने के पक्ष में हैं।
वस्तुत: 21वीं शताब्दी में भी उदारवाद, अतिउदारवाद, वैश्विकरण,
भूमंडलीयकरण तथा नीजीकरण जो पूंजीवाद का विकल्प है तथा व्यक्तिवाद को विकसित
करने वाला है ऐसे में कहीं प्राथमिक शिक्षा बाजारवाद अथवा निजी संस्थाओं की व्यक्तिगत
लाभ की बलिवेदी पर न चढ़ जाए। दूसरे शब्दों में भौतिकवाद की चरम सीमा कहीं आने
वाली पीढ़ी की आवश्यकता को सीमित न कर दें इसलिए सरकार ने शिक्षा को मौलिक अधिकार
का स्थान दिलाकर इसे संवैधानिक संरक्षण अधिकार प्रदान कर दिया है। जिससे यह
अपेक्षा की जाती है कि आने वाले लगभग दो दशक में भारतीय शिक्षा नीति के प्राथमिक
शिक्षा जिसका उद्देश्य सर्वस्व व समग्र विकास है वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति
कर लेगी।
अत: गांधी का वह विचार जो राष्ट्र के
निर्माण से प्राथमिक शिक्षा को जोड़ता है वह अपने अंतिम उद्देश्य को प्राप्त कर
लेगा।
Admin


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