ग्रामीण विकास में ई-प्रशासन पर निबंध : भारत गाँवों का देश है और देश की आत्मा गाँवों में निवास करती है। हमारे देश की अधिसंख्या जनसंख्या (72.2%) गांवों में निवास करती है। आज इस वैज्ञानिक युग में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी (I.T.) की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। 21वीं सदी में संसार में वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण (L.P.G) का दौर है और ऐसे में हम ग्रामीण विकास (आधा स्तर पर) की कार्य प्रणाली में पूराने तौर-तरीकों को अपनाएंगे तो हमारा विकास की मुख्य धारा में पिछड़ाना स्वाभाविक होगा। ग्रामीण विकास की परिवर्तित परिस्थितियों में राज्य के उभरते स्वरूप एवं आवश्यकता के अनुसार पारदर्शी, उत्तरदायी एवं जवाबदेह शासन एवं प्रशासन होना चाहिए। ई-प्रशासन अंग्रेजी के Electronic Governance का लघु रूप है, जिसको शासन की ऐसी प्रणाली से जोड़ा गया है, जिसमें तक सरकारी सेवाएं और सूचनाएं पहुंचाने में विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक विधियों और उपकरणों को काम में लाया जाता है। ई-प्रशासन की सहायता से सरकारी कामकाज में इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों का उपयोग करके शासन को सरल, पारदर्शी, संवेदनशील, उत्तरदायी, जवाबदेही और नैतिकपूर्ण बनाया जा सकता है।
ग्रामीण विकास में ई-प्रशासन पर निबंध
- सूचना प्रौद्योगिकी किन्हीं आधारभूत सुविधाओं जैसे-भोजन, पानी, आवास, स्वस्थ्य सेवाओं का विकल्प नहीं बन सकती, लेकिन विकास प्रक्रिया को तेज करने में महती भूमिका का निर्वहन कर सकती है। ई-प्रशासन के माध्यम से जनता को भूमि संबंधी दस्तावेज, प्रमाण-पत्र (मूल निवास, आय, जाति) शीघ्र, न्यूनतम लागत से उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
- जहां सूचनाएं इलेक्ट्रॉनिक विधि से उपलब्ध कराई जाती हैं, वहां बिचौलियों का महत्व कम हो जाता है और किसान एक ही स्थान पर देशभर की मंडियों के भाव जान सकता है, जिससे अपनी फसलों का सही एवं पर्याप्त मूल्य प्राप्त कर सकता है।
- ग्रामीण विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं के माध्यम से चलायी जाने वाली लोकल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है और इनमें होने वाली भ्रष्टाचार, अनियमितताओं एवं घोटालों का उजागार किया जा सकता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने सुशासन के सत्य को उजागर करते हुए राजनीतिज्ञों तथा अधिकारी वर्ग को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि ‘केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए एक रुपए में से केवल 15 पैसे ही गांवों तक पहंचते हैं। शेष राशि बीच में ही गायब हो जातीहै’ अत: ई-प्रशासन के माध्यम से सरकार द्वारा स्वीकृत राशि एवं निर्माण या क्रियान्वित कार्य के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है।
- किसी भी निर्माण कार्य जैसे-सड़क, कुएं एवं भवन निर्माण से संबंधित कार्य के लिए सभी जानकारियां एक निर्धारित आकार एवं रंग के बोर्ड में लिखकर प्रदर्शित कर दी जाती हैं, उससे भी पारदर्शिता एवं ईमानदारी का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
- आज टेलीविजन, इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से भी बड़े-बड़े घोटाले एवं अनियमितताओं का खुलासा किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता, संवेदनशीलता एवं जवाबदेयता में में वृद्धि हो रहा है।
- ई-प्रशासन के माध्यम से सभी प्रकार के आंकड़े आसानी से एवं शीघ्र प्राप्त किए जा सकते हैं। इन अंकड़ो की मदद से कई प्रश्नों एवं समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता हैं।
- विभिन्न ग्रामीण विकास योजनाओं/परियोजनाओं की जानकारी एवं उनकी प्रक्रिया से संबंधित सभी जानकारियां इंटरनेट के माध्यम से शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती हैं। इन कार्यक्रमों एवं योजनाओं की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- सभी जानकारियों एवं सूचनाओं के आसानी एवं शीघ्र उपलब्ध होने से इनका सामाजिक अंकेक्षण भी संभव है।
- ग्रामीण विकास की पारिस्थितिकी, आवश्यकता एवं जनसहभागिता का पता लगाया जा सकता है। विकास में पिछड़ी जनता में जागरुकता लायी जा सकती है और उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है।
- संपूर्ण देश में ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ लागू होने से चाही गई सूचना मांगी जा सकती है। इसके कुछ विशेष प्रावधान समयावधि एवं स्तर दिए गए हैं। प्रत्येक विभाग/संस्थान एवं कार्यकाल में इस हेतु मुख्य जनसूचना अधिकारी एवं सहायक जनसूचना अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। सूचना से संबंधित प्रार्थना पत्रों एवं उनमें मांगी गई सूचना तथा उपलब्ध कराने तक की जिम्मेदारी इन्हीं अधिकारियों की होती है।
- ग्रामीण जनता/किसानों को भू-स्वामित्व संबंधी अभिलेखों की जानकारी/दस्तावेज प्राप्त करने के लिए राजस्व विभाग क कर्मचारियों की उपेक्षा और अफसरशाही का सामना करना पड़ता था और रिश्वत भी देनी पड़ती थी। राजस्व विभाग के प्रशासन तंत्र से कोई काम निकलवाने में लालफीताशाही के कारण जो देरी होती थी, वह अब कम हो गई है। ई-प्रशासन के माध्यम से एक निश्चित शुल्क जमा करवाकर निर्धारित समय में भू-स्वामियों को जमीन के मालिकाना हक, पट्टेदारी और संबंधी प्रमाण पत्र दिए जा सकते हैं।
- ग्रामीण किसानों एवं जनता को कम्प्यूटरों के टच स्क्रीन पर छूते ही अनेक प्रकार की जानकारियां प्राप्त करायी जा सकती हैं। एटीएम से रुपया निकालना, बसों एवं रेलों में आरक्षण की स्थिति जानना एवं टिकट प्राप्त करना इसी के उदाहरण हैं। ई-प्रशासन से दूरदराज के गांवों में रहे लोग विभिन्न परीक्षाओं के लिए आनलाइन आवेदन कर सकते हैं, परीक्षा दे सकते हैं तथा परीक्षा परिणाम की जारकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। इससे जैसी भयंकर समस्याओं का समाधान हो सकेगा।
- ग्रमीण जनता/किसान देश-विदेशों में हो रही नई-नई खोजों, अनुसंधानों की जानकारी प्राप्त कर सकती है। कृषि से संबंधित नई-नई तकनीकों से कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। कई बीज एवं खाद बनाने वाली कम्पनियों के बीच का संबंध और और मजबूत हुआ है। जिससे किसानों को अच्छी किस्म के खाद, बीज उपलब्ध आसानी से सही दामों में प्राप्त हो जाते हैं।
- कोई भी व्यक्ति इंटरनेट के माध्यम से कृषि संबंधी जानकारी एवं मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकता है और इस सुचना के अनुसार सतर्क रहकर कार्यवाही की जा सकती है। ई-मेल के जरिए विभिन्न प्रकार के ऑर्डर दे सकते हैं एवं जानकारियां भी प्राप्त की जा सकती हैं।
- तकनीकी को समझने एवं उपयोग करने के लिए विशेष भाषा एवं मानसिक समझ की आवश्यकता है। इसक सरल, स्थानीय भाषा में एवं आसानी से उपलब्ध कराकर ही इसका उपयोग संभव है। आम नागरिक तक आधारभूत सुविधाओं की पहुंच (सड़क, पानी, बिजली, आवास, भोजन) के बिना यह संभव नहीं है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्युटर, इंटरनेट आदि की उपलब्धता की समस्या है। जब सड़कें, विद्युत, पानी जैसी सुविधाओं से ही ग्रामीण जनता वंचित है, तो ई-गवर्नेंस की बात करना बेमानी होगी।
- ग्रामीण जनता में चेतना एवं जन-जागरूकता का अभाव है। वे अभी भी पटवारी, ग्रामसेवक, ग्राम सचिव आदि को घूस देकर ही काम निकालने में विश्वास करते हैं। ये प्राचीन परम्पराएं एवं रूढि़वादिता ग्रामीण विकास में ई-प्रशासन की अवधारणको समझना तो दूर, सुनना भी नहीं चाहते।
- ई-प्रशासन की अवधारणा को कार्मिक तंत्र, अधिकारी वर्ग एवं जन प्रतिनिधि भी कागजों तक सीमित रखना चाहते हैं और वे न तो इसकी जानकारी जनता तक पहुंचाते हैं और न ही प्रचार-प्रसार करते हैं, बल्कि इस ओर हुए कदमों को पीछे खींचने के प्रयास किए जाते हैं।
- ग्रामीण स्तर पर पारदर्शी ढांचे का अभाव है एवं प्रक्रिया जटिल और आम ग्रामीण जन की समझ से बाहर है।
- ग्रामीण विकास के आधार स्तर पर नागरिकों एवं प्रशासन से मध्य संबंध सौहार्द्रपूर्ण नहीं है, बल्कि नकारात्मक विचारधारा एवं भ्रष्टता को बढ़ावा देने वाले हैं।
- ग्रामीण विकास के आधारभूत स्तर पर प्रशिक्षित, कार्यकुशल, ईमानदार एवं दक्ष कार्मिक तंत्र का अभाव है।
- कार्मिक तंत्र एवं अधिकारी वर्ग में जवाबदेयता की कमी है।
- सर्वप्रथम ग्रामीण जनता तक उनकी बुनियादी सुविधाएं (पानी बिजली, सड़क) की पहुंच होना चाहिए, क्योंकि इनके बिना ई-प्रशासन की कल्पना करना भी बेकार है।
- जनचेतना का विकास किया जाना चाहिए और कम्प्यूटर, इंटरनेटसे संबंधित ज्ञान जनता में कराया जाना चाहिए।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक ग्राम सेवक यह सूचना अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए जोकि ग्राम पंचायत से संबंधित सभी सूचनाओं को कम्प्यूटर से संग्रहीत करे। वह ग्रामीणों द्वारा मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध कराए, साथ ही कम्प्यूटर, इंटरनेट के प्रयोग एवं उपयोगसे संबंधित जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- ग्रामीण विकास संस्थाओं में प्रत्येक स्तर पर कम्प्यूटर, इंटरनेट का प्रयोग किया जाए एवं सभी आंकड़े, तथ्य, सूचनाएं एक-दूसरे स्तरों से जुड़ी होनी चाहिए ताकि ग्रामीण जनता के मांगने पर ग्राम पंचायत स्तर पर ही उपलब्ध कराई जा सके।
- सभी ग्रामीण विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं की जानकारी कम्प्यूटर के माध्यम से उपलब्ध कराई जानी चाहिए और उन कार्यक्रमों एवं योजनाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया, योग्यता आदि से संबंधित संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए, ताकि आम जनता तथा वास्तविक जरूरतमंद व्यक्ति इसका लाभ उठा सके।
- पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, सरल एवं शीघ्रता के लिए ई-प्रशासन एक अच्छा माध्यम है। इससे खुलापन, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा बढ़ेगी और भ्रष्टाचार, घूसखोरी, अनियमितता की अंत होगा।
- ई-प्रशासन की अवधारणा को व्यावहारिक रूप में अपनाने से सामाजिक अंकेक्षण आसान होगा और निरीक्षण एवं नियंत्रण भी बेहतर होगा। सभी तथ्य, आंकड़े एवं स्थिति का ज्ञान कार्यालय में बैठकर कम्प्यूटर के द्वारा शीघ्र हो सकेगा।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत पर ग्रामीणों/किसानों से संबंधित सुचनाएं (जैसे-खाद, बीज, खाद्यान्न आदि के भाव) इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर निर्धारित स्थान पर लगा देनी चाहिए ताकि आम आदमी उसकी जानकारी प्राप्त कर सके।
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