भारतीय समाज में नारी की स्थिति। Essay on The Role of Women in Indian Society in Hindi : यह बहुधा कहा गया है कि जीवन के युद्ध में नारी की भूमिका द्वितीय पंक्ति की रहती है। किंतु आज हम पुरुष और नारी में कोई भेद नहीं करते हैं जहां तक कि उनके दर्जे की समानता का संबंध है। नारी को भी मोर्चे अर्थात प्रथम पंक्ति पर होने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुष को। जहां तक दोनों की क्षमता का प्रश्न है यह सिद्ध हो चुका है कि नारी की क्षमताओं का कुल योग पुरुष की क्षमताओं के कुल योग से कम नहीं होता किंतु हम देखते हैं कि हमारे समाज में नारी की स्थिति वह नहीं है जो होनी चाहिए।
भारतीय समाज में नारी की स्थिति। Essay on The Role of Women in Indian Society in Hindi
यह बहुधा कहा गया है कि जीवन के युद्ध में जिसको कि मनुष्य परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ता है। नारी की भूमिका द्वितीय पंक्ति की रहती है। यह बात निश्चित ही बड़ी महत्वपूर्ण है किंतु आज हम पुरुष और नारी में कोई भेद नहीं करते हैं जहां तक कि उनके दर्जे की समानता का संबंध है। नारी को भी मोर्चे अर्थात प्रथम पंक्ति पर होने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुष को। जहां तक दोनों की क्षमता का प्रश्न है यह सिद्ध हो चुका है कि नारी की क्षमताओं का कुल योग पुरुष की क्षमताओं के कुल योग से कम नहीं होता किंतु हम देखते हैं कि हमारे समाज में नारी की स्थिति वह नहीं है जो होनी चाहिए। समाज में नारी को पुरुष के साथ गौण स्थान प्राप्त है। जन्म से ही लड़का और लड़की के मध्य हमारे अधिकतर परिवारों में भेद किया जाता है। परिवार में प्राप्त पौष्टिक आहार का बड़ा भाग लड़के को चला जाता है। उसको शिक्षा एवं उन्नति के अन्य अवसरों के मामलों में अधिक ध्यान दिया जाता है। जैसे ही बच्ची बड़ी होती जाती है प्रतिबन्धों की जंजीरें उस पर बराबर कड़ी और कड़ी होती जाती हैं। समय बीतते-बीतते उसमें हीनता की ग्रन्थि विकसित होने लगती है और यह ग्रन्थि मृत्यु तक उसका साथ देती है। विवाह के बाजार में उसको केवल एक वस्तु की तरह समझा जाता है। दहेज के सौदे व्यापार के सौदों की भांति तय किए जाते हैं जो अपर्याप्त दहेज लाती है उनको भांति भांति के कष्ट सहने पड़ते हैं और कभी-कभी मृत्यु भी। नारी जोकि हम सबकी माँ है उसको इस दीन स्थिति में ढकेल दिया गया है। परिवार में बच्ची का जन्म एक निराशा का अवसर होता है जबकि लड़के का जन्म आनंद और उत्सव मनाने का। सामाजिक जीवन का रथ एक पहिए से नहीं चल सकता किंतु फिर भी ना जाने क्यों दूसरे पहिए को महत्व की पहचान कम क्यों है? बहुत से घरों में महिलाएं एक दास से अच्छा जीवन व्यतीत नहीं करतीं। उनको ‘लकड़ी चीरने वाले’ और ‘पानी खींचने वाले’ से बेहतर स्थान प्राप्त नहीं है।
क्या वह समाज जिसमें महिलाओं को ऐसा समझा जाता है उन्नति कर सकता है? महिलाएं जनसंख्या का लगभग आधा भाग होती हैं। यदि यह आधा भाग अविकसित रह जाए उसकी बढ़ोतरी बीच में ही रुक जाए और जिसको जीवन को संपूर्ण बनाने वाले अवसरों के उपभोग की कमी हो तो ऐसे समाज में यह आशा करना अव्यवहारिक है कि वह अपनी पूर्ण क्षमताओं का विकास कर सकेगा। अविकसित व्यक्तित्वों से कोई देश महान नहीं बनता और यही कारण है कि उन्नति की दौड़ में भारत पीछे रह गया है। भारत में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हम महान महिलाओं के नामों से परिचित हैं जैसे- गार्गी¸ लोपामुद्रा¸ रजिया¸ रामा बाई¸ झांसी की रानी¸ सरोजिनी नायडू¸ विजयलक्ष्मी पंडित¸ इंदिरा गांधी महिलाओं की पंक्ति में से कुछ के नाम हैं जिन्होंने विभिन्न युगों में इतिहास के पन्नों को सजाया है लेकिन यह भी महिलाएं थी जोकि उस समय के माहौल से भी अधिक महान थीं जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों को ही चीर कर रख दिया था जो उनके रास्ते में उपस्थित हुई। यदि कहीं हमने महिलाओं के विकास के रास्ते में बाधाएं न खड़ी की होती तो हमारा समाज अधिक शक्तिशाली अधिक जीवंत और अधिक विकासोन्मुख होता किंतु हमने मौका खो दिया। उपलब्धियों और विकास की ऊंचाइयों की ओर दौड़ में महिलाओं की शोचनीय स्थिति निश्चित रूप से एक रोड़ा बन गई।
अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। आइए हम नारी को वह स्थान प्रदान करें जिसकी वह अधिकारिणी है। उसे प्रतिष्ठा और समानता का दर्जा¸ आदर और पहचान प्रदान करें। आजादी के बाद से हमने निश्चय ही इस दिशा में सोचना और कार्य करना प्रारंभ कर दिया है अनेक विधिक उपायों द्वारा हमने उनको सोचनीय स्थिति के दलदल से निकालने का प्रयास किया है। दहेज निवारण अधिनियम 1961 जिसको कि 1986 में संशोधित किया गया¸ मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 जो कि 1976 में संशोधित किया गया¸ फैक्ट्री संशोधन अधिनियम 1976¸ समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976¸ शारदा एक्ट आदि कुछ उपाय हैं जिनको की हाल में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए अपनाया गया है। केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड महिलाओं के लिए कार्यक्रम क्रियान्वित करता है। महिलाओं की स्थिति पर गठित समिति के सुझावों का क्रियान्वयन चल रहा है। 1976 में महिलाओं के लिए नेशनल प्लान ऑफ एक्शन को भी लागू किया गया। इसके अतिरिक्त वीमेन्स ब्यूरो भी है जो कि महिलाओं के लिए किए जाने वाले कल्याणकारी कार्यों का समन्वय करता है। महिलाओं के लिए विशेष ध्यान सुनिश्चित करने हेतु 1985 में मानव संसाधन मंत्रालय के अधीन महिला एवं शिशु विकास का विशेष विभाग खोला गया हाल ही में महिलाओं के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई है। पंचायत राज अधिनियम ने जो कि संविधान में 73वें संशोधन स्वरूप अस्तित्व में आया¸ महिलाओं के लिए¸ अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं को सम्मिलित करते हुए पंचायत राज की विभिन्न स्तरीय संस्थाओं में 30% का आरक्षण प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त एक यह भी प्रस्ताव है कि राष्ट्रीय संघ एवं राज्यों के विधान मंडलों में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित कर दिए जाएं। क्या इन सब कदमों के द्वारा नारी की मुक्ति के युद्ध में हमने ठोस सफलता प्राप्त की है? निश्चित रुप से काफी हद तक किंतु हमें अभी काफी मंजिल तय करनी है। नारी को सशक्त करने हेतु भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा कार्यक्रम कालांतर में परिणाम प्रदर्शित करेगा। प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का नारी को सशक्त करने का नया कार्यक्रम जिसके द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि बालिका का जन्म निराशा के अवसर से हर्ष एवं प्रसन्नता के अवसर के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए केवल एक छोटा सा कदम है। वास्तविक प्राण तब आएंगे जब नारी शिक्षा सुनिश्चित कर ली जाती है। विभिन्न राज्य सरकार निश्चय ही बालिकाओं के नये विद्यालय और कॉलेज खोल रही हैं किन्तु इस प्रक्रिया को तीव्रगति प्रदान करने हेतु क्रान्तिकारी कदम शीघ्र से शीघ्र उठाया जाना अभी भी शेष है।
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