सूचना का अधिकार पर निबंध - Suchna ka Adhikar par Nibandh - Essay on RTI in Hindi
सूचना का अधिकार पर निबंध - Suchna ka Adhikar par Nibandh - Essay on RTI in Hindi : सूचना के अधिकार का अभिप्राय ‘’किसी लोक प्राधिकारी द्वारा नियंत्रित सूचनाओं तक पहुंच से है।‘’ इसके अन्तर्गत अभिलेखों, दस्तावेजों एवं कार्यों
का निरीक्षण किया जा सकता है। सामग्री का नमूना लिया जा सकता है। दस्तवेजों एवं
अभिलेखों का सत्यापित प्रतिलितियों प्राप्त की जा सकती हैं।
सूचना का अधिकार लोकतान्त्रिक और खुला समाज में
सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। क्योंकि यह भी सभी अधिकारों का आधार स्तम्भ है।
यदि सूचना का अधिकार नहीं है तो आज सभी अधिकार भी शीघ्र ही नष्ट हो जायेगें।
लोकतंत्र में सूचना के अधिकार का वही स्थान है जो शरीर में रक्त संचार होता है।
इसके कारण लोकतंत्र के सभी अवयव खुले और स्वस्थ रहते हैं सूचना का अधिकार
लोकतंत्र का स्पन्दन है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्व बढ़ता जा रहा
है। इस सम्बन्ध में एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ के मामले में न्यायमूर्ति
भगवती ने विवेचन क्रिया है, ‘’खुली
सरकार, खुला समाज की नयी लोकतान्त्रिक संस्कृति है, जिसकी तरफ प्रत्येक उदार लोकतंत्र आगे बढ़ रहा है और हमारा देश कोई
अपवाद नहीं होना चाहिए।
भारत में सूचना के अधिकार की प्राप्ति के लिए
संगठित अभियान की शुरूआत का इतिहास दो दशक ही पुराना है। यद्यपि 1952 में प्रथम
प्रेस आयोग के गठन से प्रेस की स्वतंत्रता की दिशा में प्रगति हुई किन्तु
सूचनाके अधिकार को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। 1981-86 के बीच उच्चतम न्यायालय
के विभिन्न निर्णयों में सूचना के अधिकार का समर्थन किया गया। इसी प्रकार प्रभुदत्त
बनाम भारत संघ के मामले में यह भी निर्धारित कया गया है कि प्रेस की स्वतंत्रता
में सूचनाओं तथा समाचारों को जानने का अधिकार भी शामिल है।
सूचना के अधिकार आन्दोलन में सर्वाधिक सक्रिय
भूमिका पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी एवं रैमन मैगससे पुरस्कार से सम्मानित अरूणा राय
की रही है, जो श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाले
राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद (NAC) सदस्य भी हैं, 1990 में उनके संगठन ‘’मजदूर किसान शक्ति संगठन’’ (एम.के.एस.एस) ने जन सुनावाई के दौरान व्यक्तिगत जीवन में सूचनाओं के
अधिकार के महत्व पर प्रकाश डाला। संगठन के इस प्रयास से प्रेरित होकर समाज के सम्भ्रान्त
वर्ग के नागरिक तथा लोक सेवक, अधिवक्ता एवं सामाजिक
कार्यकर्ता इस दिशा में प्रवृत्त हुए। 1990 के उत्तरार्धमें नागरिकों के सूचना
के अधिकार हेतु राष्ट्रीय आन्दोलन (NCPRI National Campaign for
Peoples Right to Information) गठन किया
गया। इस संगठन के सक्रिय प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 1995 में प्रेस काउंसिल
ऑफ इण्डिया में प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया (PCI) सूचना की स्वतंत्रता का प्रथम ब्लू प्रिन्ट तैयार किया किन्तु सरकार
द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया।
1997 में ही उपभोक्ता कार्यकर्ता भी एच.डी शौरी की अध्यक्षता में गठित
कार्यदल ने एक विधेयक का प्रारूप प्रसतुत किया। एक अन्य विधेयक न्यायमूर्ति
पी.बी. सावंत के नेतृत्व में गठित कार्यदल ने प्रस्तुत किया किन्तु परिणाम
सकारात्मक नहीं रहे। वर्ष 2000 में कुछ परिवर्तनों के साथ ‘’सूचना की स्वतंत्रता का विधेयक 2000’’ निर्मित किया गया। गहन विचार विमर्श के उपरान्त 2002 में बाजपेयी सरकार
के शासन काल में यह विधेयक स्वीकृत हुआ किन्तु इसमें अनके कमियाँ रही और यह
अधिसूचित नहीं हो पाया। संप्रग सरकार के गठन के पश्चात श्रीमती सोनिया गाँधी
सूचना के अधिकार विधेयक को संशोधित रूप में लाने के लिए विशष रूप से सक्रिय रहीं
है।
इस प्रकार विभिन्न प्रक्रियाओं तथा लम्बे अन्तराल
के बाद भारतीय संसद ने 12 मई 2005 को सूचनाका अधिकार अधिनियम, 2005 पारित किया, जिसे 15 जून, 2005 को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति दी। इस अधिनियम की धारा 4(1) 5(1), 5(2), 12, 13, 15, 16, 24 और धाना 27 तुरन्त
प्रभाव से लागू हो गये तथा अन्य प्रावधान अधिनियम के पारित होने के 120 दिन बाद
प्रभाव में आए। इस प्रकार यह अधिनियम 12 अक्टूबर,2005 से
जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर शेष भारत पर लागू हो गया। विश्व में सबसे बड़े
लोकतांत्रिक देश के नागरिकों को यह अधिकार आजादी के 58 वर्षों बाद मिला और सूचना
का कानून पारित करने वाला भारत विश्व का 61वां देश बना। शासकीय गोपनीयता
अधिनियम, 1923 और अन्य
किसी विधि के प्रावधानों के बादजूदइस अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होगें। इस
अधिनियम के मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज और प्रशासन में पारदर्शिता लाना तथा
जवाबदेही तय करना है।
इस अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्र वह राज्य
प्रशासकों के अलावा पंचायतें, स्थानीय निकायों व सरकार
से धन प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों को भी रखा गया है। इस कानून को
प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केन्द्रीय सूचना आयोग के नीचे, राज्य और जिले से लेकर ब्लाक स्तर तक सूचना आयुक्तों और सूचना
प्राधिकारियों की विस्तृत व्यवस्था की गयी है।
भारत के संविधान में सूचना के अधिकार की पृथक से
उल्लेख नहीं किया गया है। इण्डियन एक्सप्रेस न्यूज पेपर्स बनाम भारत संघ3
के बाद अनु. 19(1) (क) में जानने का अधिकार (Right
to Know) भी शामिल है। इनमें सरकार के
संचालन से सम्बन्धित सूचनाएँ जानने का अधिकार भी आता है। केवल आपवादिक मामले में
जब देश की सुरक्षा अथवा लोकहित में आवश्यक हो तभी उनका प्रकटीकरण नहीं किया जा
सकता है। लोकहित सरकार एक खुली सरकार होती है जिसके विषय में जनता को जानने के
अधिकार होते हैं। इस प्रकार इस अधिनियम का उद्देश्य प्रशासन में खुलापन, पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व को बढ़ाना है। सेक्रेटरी जनरल, उच्चतम न्यायालय बनाम् सुभाष चन्द्र अग्रवाल4 के बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि सूचना के
अधिकार का स्त्रोत सूचना का अधिकार अधिनियम से उत्पन्न नहीं होता है। जैसे कि
उच्चतम न्यायालय ने बहुत से मामलों में अभिनिर्धारित किया है। यह वह अधिकार है
जो अनु. 19(1) (क) के अधीन गारण्टी किए गए संवैधानिक अधिकार से उत्पन्न होता
है। सूचना के अधिकार को अनु. 19(1) (क) और अनु. 21 में अन्तर्निहित माना जा
सकता है।
विश्व में केवल दक्षिण अफ्रीका का संविधान ऐसा
है जिसमें सूचना के अधिकार का विशेष रूप से उल्लेखहै।
सूचना का अधिकार अधि. 2005 की धारा 8 में कुल 10
विषयों का उल्लेख किया गया है जिनपर किसी भी व्यक्ति को सूचना अधिकार की नहीं
होगी-
· सूचना, जिसके प्रकटन से भारत की प्रभुत्ता और अखण्डता,
राज्य सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या
आर्थिक हित, विदेश से सम्बन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो
या सूचना जो किसी अपराध को करने के लिए उकसाती (Incitement) हो।
· सूचना, जिसके प्रकाशन को किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से
निषिद्ध किया गया हो या जिसके प्रकटन से न्यायालय की अवमानना होती है।
· सूचना जिसके प्रकटन से संसद या
किसी राज्य के विधान मण्डल के विशेषाधिकार का हनन होता है।
· सूचना, जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार, गोपनीयता या बौद्धिक संपदा सम्मिलित है, जिसके
प्रकटन से किसी तीसरे व्यक्ति की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता है; जबतक सक्षम प्राधिकारी अस्वस्थ न हो जाए कि ऐसी सूचना के प्रकटन में
विस्तृत लोकहित निहित है।
· किसी व्यक्ति के वैश्विासिक
(Fiduciary
Relationship) में उपलब्ध सूचना जब
तक कि सक्षम प्राधिकारी आश्वस्त न हो जाए कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत
लोकहित में आवश्यक है।
· किसी सरकार से विश्वास में
प्राप्त सूचना।
· सूचना, जिसके प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा के लिए
खतरा हो या सूचना जिसके प्रकटन से कानून व्यवस्था या आन्तरिक सुरक्षा बनाए रखने
के लिए प्रस्तुत किसी स्त्रोत की पहचान होती है।
· सूचना, जिसके प्रकटन से अन्वेषण (Investigation) अपराधियों को गिरफ्तार करने या अभियोजन की क्रिया में बाधा पड़ती हो।
· मंत्रिमण्डल के कागजात, जिसमें मंत्रीपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के
विचार विमर्श के अभिलेख हो।
· सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से सम्बन्धित है, जिसका
प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से सम्बन्ध नहीं रखता है या जिससे व्यक्ति
की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा, जब तक कि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपील
प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित
में न्यायोचित है।
इस अधिनियम की धारा 6(1) के अन्तर्गत सूचना
प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति हिन्दी अथवा अंग्रेजी में लिखित रूप से आवेदन
पत्र या ई-मेल (E-mail) द्वारा
अनुरोध कर सकते हैं। अनुरोधकर्ता को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है कि उसे
सूचना क्यों चाहिए—धारा 6(2) सूचना के लिए अनुरोध करते समय अवेदन पत्र के साथ
निर्धारित शुल्क 10 रुपये देय होगा। आवेदन शुल्क दिये बगैर सूचना का अनुरोध स्वीकार
नहीं होगा। आवेदन शुल्क 10 रुपये प्रति आवेदन पत्र के अतिरिक्त सूचना प्राप्ति
के लिए निर्धारित शुल्क निम्न प्रकार है-
सूचना की— तैयार की गयी सामग्री अथवा अभिलेख की
छायाप्रति, बड़े आकार के कागज में किसी प्रतिलिपी दिये
जाने पर उसकी वास्तविक लोगत, मुद्रित प्रारूप में दी गयी
सूचना के लिए, सैम्पल/मॉडल की दशा में उसकी वास्तविक लागत।
सूचना का आवेदन पत्र प्राप्त होने पर सम्बन्धित
लोक सूचना अधिकारी शीघ्रताधीघ्र या किसी भी दशा में अनुरोध प्राप्त होने के 30
दिनों के अन्दर या तो वांछित सूचना अनुरोधकर्ता को उपलब्ध कराएगा या फिर अधिनियम
की धारा 8 और 9 में उल्लिखित कारणों से अनुरोध को अस्वीकार करेगा।
इस अधिनियम की धारा 20(1) के अनुसार किसी शिकायत
अथवा अपील पर सुनवाई के समय यदि राज्य सूचना आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि
लोक सूचना अधिकारी द्वारा किसी उचित कारण के बिना किसी व्यक्ति के सूचना के
अनुरोध को प्राप्त करने से मना किया है; के सम्बन्ध
में समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करायी है को किसी द्वेष वश अस्वीकार किया; के उत्तर में जानबूझ कर गलत सूचना दी है; से सम्बन्धित
सूचना को नष्ट किया है, या के सम्बन्ध में किसी तरह सूचना
को प्रकट करने में व्यवधान डालता है; तो ऐसी दशा में लोक
सूचना अधिकारी पर सूचना देने में विलम्ब की अवधि या जब तक इच्छित सूचना पूर्ण रूप
में नहीं दी जाती है तब तक की अवधि के लिए आयोग 250 रुपये प्रति दिन की दर से
आर्थिक दण्ड आरोपित कर सकता है। दण्ड भी अधिकतम राशि 25,000
हजार रुपये होगी। आयोग ऐसे अधिकारी के विरूद्ध सेवा नियमों के अन्तर्गत अनशासनात्मक
कार्यवाही की सिफारिश करेगा। धारा 20(2) अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत यदि
कोई व्यक्ति सद्भावना पूर्वक कोई कार्य करे तो ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं होगी। (धारा 21) अधिनियम के
प्रावधानों का अभिसूचना तथा सुरक्षा संगठनों पर लागू न होना;
(धारा 24(4) ।
हमारे प्रजातंत्र में आम आदमी की हिस्सेदारी
सबसे अहम् है। सूचना के अधिकार कानून ने आम आदमी को वह ताकत दी है, जिसका इस्तेमाल कर वह तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का खत्म कर सकता
है। वास्तव इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य ही यह है कि सरकारी तंत्र अपने कार्य
व्यवहार में गोपनीयता को न्यूनतम करते हुए अधिकतम पारदर्शिता बरते। यह अधिनियम
श्रेश्ठ नागरिक, श्रेष्ठ जनसूचना अधिकारी और श्रेष्ठ
पत्रकारिता हेतु नामांकन आंमत्रित करने का अवसर भी प्रदान किया गया है। सूचना
अधिकार अधिनियम कानून बनाने का फायदा हुआ कि उक्त अनेक मामले प्रकाश में आये। इसी
तरह सर्वाधिक महत्वपूर्ण जो मामला प्रकाश में आया वह था भोपाल गैस त्रासदी।
सूचना अधिकार के लाभ:-
· सूचना के अधिकार से देश में
लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी और आम नागरिकों के सशक्तिकरण में सहायता मिलेगी क्योंकि
सूचनायें शक्ति का स्त्रोत होती हैं।
· सूचना का अधिकार देश के
नागरिकों एवं शासन—प्रशासन के बीच एक सेतु का कार्य करेगा क्योंकि जनता शासकीय
कार्यों के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनायें प्राप्त कर सकती है।
· देश के सरकारी तंत्र में व्याप्त
भ्रष्टाचार पर नियंत्रक करना सम्भव हो सकेग क्योंकि जनता विभिन्न अभिलेखों के
सम्बन्ध में सूचनायें प्राप्त कर सकेगी।
· सूचना के अधिकार कानून से
सरकारी तंत्र की कार्यकुशलता बेहतर बनायी जा सकेगी और इससे शासकीय कार्यों में
पारदर्शिता लायी जा सकेगी।
· मीडिया को व्यापक लाभ मिलेगा
और पत्रकारों को जनता तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा।
· संसद सदस्यों को भी इस कानून
से लाभ मिलेगा और विभिन्न विषयों पर संसद में सकारात्मक विचार विमर्श को बल
मिलेगा।
· देश में एन.जी.ओ. माफिया ने भी
अपना जाल फैला रखा है जो सरकारी अनुदान का पैसा हड़प रहे हैं। इस विधेयक के
प्रावधानों के अन्तर्गत गैर सरकारी संगठनों ; छळव्ेद्ध की
कार्यप्रणाली में भी पारदर्शिता लायी जा सकेगी।
पारदर्शी समाज (Open
Society) सूचना सुलभता एक अनिर्वाय आवश्यकता
है। आर्थिक उदारीकरणक के वर्तमान दौर में पारदर्शिता से आशय है प्रत्येक व्यक्ति
को सरकार द्वारा लिए गये निर्णयों एवं उनकी तर्क संगतता की जानकारी प्राप्त करने
का अधिकार दिय जाना है। इस प्रकार की सूचनाएं किसी राष्ट्र के विकास में प्रेरक
शक्ति का कार्य करती है। इन्हीं कारणों से सूचना के अधिकार को एक महत्वपूर्ण
अधिकार माना गया है। इस प्रकार सूचना का अधिकार राष्ट्र के लोकतांत्रिक, अर्थिक विकास एवं मानवाधिकार के स्तरोन्नयन में महत्वपूर्ण मायने रखता
है। इसी मायने को अर्थवत्ता प्रदान करने की दिशा में यह विधेयक भारतीय लोकतंत्र
के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।
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