सरोगेसी पर निबंध : सेरोगेसी का अर्थ किराये की कोख से है। अतः सेरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कोई महिला किसी अन्य महिला के बच्चे को जन्म देने के
सरोगेसी (किराए की कोख) और भारतीय समाज पर निबंध - Essay on Surrogacy in Hindi
सरोगेसी पर निबंध
सेरोगेसी का अर्थ किराये की कोख से है। अतः सेरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कोई महिला किसी अन्य महिला के बच्चे को जन्म देने के लिए सहमत होती है। इसी प्रकार जो महिला किसी महिला के बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी कोख किराए पर देती है, उसे सरोगेट मदर कहा जाता है। प्रायः सरोगेसी जैसे विकल्प वे दंपत्ति अपनाते हैं जो किसी कारणवश स्वयं बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होते है।
सरोगेसी की प्रक्रिया के अंतर्गत सबसे पहले माँ-बाप के अंडाणु और शुक्राणु को निषेचित करा लिया जाता है तत्पश्चात उसे सरोगेट मदर की कोख में स्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार सरोगेसी से जो बच्चा जन्म लेता है, उसका डी.एन.ए तथा सभी अनुवांशिक लक्षण मूल-माँ-बाप से मिलते है। सेरोगेट माँ के डी.एन.ए का उसमें अंश भी नहीं होता।
सरोगेसी के प्रकार
- पारम्परिक सरोगेसी: इस प्रकिया के अंतर्गत माँ-बाप में से केवल पिता के शुक्राणु लिए जाते हैं। इसे एक स्वस्थ महिला के अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से निषेचित करा दिया जाता है। इस प्रकार की सरोगेसी से जो बच्चा जन्म लेता है, उसमें केवल पिता के साथ बच्चे का जेनेटिक सम्बन्ध होता है। इसकी सबसे बड़ी खामी यह यह की इसमें सरोगेट माँ का डी.एन.ए भी बच्चे में आ जाता है।
- गेस्टेशनल सरोगेसी: इस प्रक्रिया में माता-पिता के अंडाणु तथा शुक्राणुओं को परखनली विधि से निषेचित करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर अर्थ किराए की कोख में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.इसमें बच्चे का जेनेटिक संबंध मां और पिता दोनों से होता है, यही इस प्रक्रिया की खासियत है.इस पद्धति में सरोगेट मदर को ऐसी दवाये दे जाती हैं जिससे उसका अंडाणु चक्र रुक जाता है, जिससे बच्चे के डी.एन.ए में सरोगेट माँ का अंश नहीं आ पाता है।
सरोगेसी की आवश्यकता
वास्तव में सरोगेसी पद्धिति उन दंपत्तियों के लिए वरदान है, जो किसी कारणवश बच्चे को जन्म देने में असक्षम होते हैं। ज्यादातर सरोगेसी की आवश्यकता उन महिलाओं को पड़ती है, जिनमें बांझपन की समस्या होती है। बांझपन के कारण महिलाएं भी अपने पति का इस कृत्य कदम में साथ देने को तैयार हो जाती हैं। एक आंकड़े के अनुसार लगभग 5% से 10 % महिलाएं बांझपन से ग्रस्त होती हैं। इस कारण सरोगेसी आज के समाज में प्रासंगिक है।
कौन बनती है सेरोगेट मदर
सेरोगेट मदर ज्यादातर वे महिलायें बनती है, जिनकी उम्र 18 साल से 35 साल के बीच होती है। सेरोगेट मदर बन्ने के लिए महिला का शारीरिक रूप से स्वस्थ होना भी आवश्यक होता है। ज्यादातर महिलायें जो सरोगेट माँ बनती हैं वे गरीब होती हैं। इस काम के उन्हें संभवतः ४ से 5 लाख लाक मिल जाये हैं जो उनके लिए एक बड़ी राशि होती है। भारत में जैसे उड़ीसा, भोपाल, केरल, तमिलनाडु, मुंबई आदि क्षेत्रों में सरोगेसी का व्यापार तेजी से फैलता जा रहा है। भारत में किराए की कोख सस्ती होने के कारण विदेशी सरोगेसी के लिए अब भारत का रुख करने लगे हैं।
नया सरोगेसी क़ानून / बिल
भारतीय संसद द्वारा पारित नए सरोगेसी बिल के अंतर्गत अब भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है। यानि जो भी महिला किसी दूसरे के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो वो यह काम को कमाई का जरिया मानकर नहीं केवल परोपकार की दृष्टि से करेगी। इसके लिए महिला की उम्र 23-50 और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष के बीच होनी चाहिए। कोई भी महिला सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकेगी।
इसके अतिरिक्त अब कोई भी विदेशी, नॉन रेजिडेंट इंडियन(N.R.I), पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन, ओवरसीज सिटीजंस ऑफ इंडिया कोई भी भारत में सरोगेसी के लिए पात्र नहीं माना जाएगा। यदि नियमों का उलंघन किया जाता है तो 10 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
निष्कर्ष :
आज सरोगेसी एक विवादास्पद मुद्दा बनता जा रहा है क्योंकि यह सिर्क एक व्यावसायिक मुद्दा नहीं है बल्कि इसका एक भावनात्मक पहलू भी है। क्या हो यदि कोई सरोगेट माँ माम्तावश बच्चे को देने से मना कर दे ?अथवा क्या हो यदि दंपत्ति लड़का चाहता हो परन्तु लड़की हो जाए ? क्या ऐसी स्थिति में भी वे बच्चे को अपनाएंगे या उसे लेने से इनकार कर देंगे ? यह कुछ ऐसे सवाल है जो हमें आज भी सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या सरोगेसी वास्तव में उतनी ही प्रासंगिक है जितना कि बताया जा रहा है।
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