सरोगेसी (किराए की कोख) और भारतीय समाज पर निबंध - Essay on Surrogacy in Hindi
प्रजनन विज्ञान की
प्रगति ने उन दंपत्तियों तथा अन्यों के लिए प्रकृतिक रूप से संतानसुख को संभव
बना दिया है, जिनकी अपनी संतान किन्हीं कारणों से नहीं हो
सकती। इसने सरोगेट माँ की अवधारणा को जन्म दिया है। सरोगेसी सहायक प्रजनन की एक
प्रणाली है। आईवीएफ/गर्भवधि सरोगेसी इसका अधिक सामान्य रूप है जिसमें सरोगेट
संतान पूर्ण रूप से सामाजिक अभिभावकों से संबंधित होती है।
सरोगेसी के लिए भारत
एक अनुकूल गंतव्य के रूप में उभरा है और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) उद्योग 25
अरब रुपएके सालाना कारोबार के रूप में विकसित हुआ है, जिसे विधि आयोग ने “स्वर्ण कलश” की संज्ञा दी है।
भारत में सरोगेसी के अभूतपूर्व रूप में बढ़ने का मुख्य कारण इसका सस्ता और
सामाजिक रूप से मान्य होना है। इसके अलावा गोद लेने की जटिल प्रक्रिया के कारण भी
सरोगेसी एक पंसदीदा विकल्प के रूप में उभरी है।
अनवासी भारतीयों
सहित विदेशी नागरिकों द्वारा विभिन्न चिकित्सीय और व्यक्तिगत कारणों से
सरोगेसी को अपनाए जाने ने भी भारतीय सरोगेसी उद्योग के उदय में योगदान दिया है।
मुख्यत: इस कारण से क्योंकि उनके संबंधित देशों के मुकाबले यहां पर यह प्रक्रिया
कम-से-कम दस गुना सस्ती है। भारत में संतान के लिए आने वाली विदेशी दंपत्तियों
का कोई आंकड़ा मौजूदा नहीं है लेकिन एआरटी क्लिनिकों का कहना है कि यह संख्या
उत्साहजनक रूप से बढ़ रही है।
भारत में 23 जून
1994 में प्रथम सरोगेस शिशु के साथ सरोगेसी की शुरूआत हुई, लेकिन विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित करने में
और आठ वर्ष लग गए। जब 2004 में एक महिला
ने अपनी ब्रिटेन में रहने वाली बेटी के लिए सरोगेट शिशु को जन्म दिया। एक चिकित्सीय
प्रक्रिया के रूप में सरोगेसी पद्धति में
वर्षों के अंतराल में परिपक्वता आई है। धीरे-धीरे भारत प्रजनन बाजार का एक मुख्य
केन्द्र बन गया है और आज देश भर में कृत्रिम गर्भाधान, आईवीएफ और सरोगेसी मुहैया कराने वाले अनुमानत:
200,000 क्लिनिक हैं। वे इसे सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) कहते हैं।
भारत में सरोगेसी को
नियंत्रित करने के लिए फिलहाल कोई कानून नहीं है और किराए पर कोख देने (व्यावसायिक
सरोगेसी) को तर्कसंगत माना जाता है। किसी की अनुपस्थिति में भारतीय आयुर्विज्ञान
अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) ने भारत में क्लिनिकों के प्रमाणन, निरीक्षण और नियंत्रण के लिए 2005 में
दिशानिर्देशों को जारी किया। लेकिन आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के उल्लंघन और कथित
तौर बड़े पैमानेपर सरोगेट माताओं के शोषण और जबरन वसूली के मामलों के कारण इसकेलिए
कानून की जरूरत महसूस की जा रही है।
सरोगेसी को कानूनी
बनाने के लिए भारत सरकार के कहने पर एक विशेषज्ञ समिति ने सहायक प्रजनन तकनीक
(निंयत्रण) कानून, 2010 का मसौदा तैयार किया। इससे पहले 2008 में
परिकल्पित प्रस्तावित कानून में व्यापरिक सरोगेसी को भी कानून मान्यता देने पर
विचार किया गया था। यह एक ‘जोड़े’ को उन दो व्यक्तियों के रूप में
परिभाषित करता है, जो एक साथ रहते हैं और
जिनके बीच यौन संबंध हैं। समलैंगिगता पर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद
यह अकेले के अलावा समलैंगिकों को सरोगेट शिशुओं का कनूनी हक देता है। यह सरोगेट
माताओं की आयु सीमा 21-35 वर्ष के बीच निर्धारित करता है और उसके अपने बच्चों सहित
उसके लिए कुल पांच प्रसवों को सीमित करता है। प्रस्तवित विधान के अनुसार सरोगेट
माताओं को कानूनी रूप से लागू किए जाने के योग्य सरोगेसी के समझौते पर अमल करना होगा।
अनिवासी
भारतीयों सहित विदेशी नागरिकों जो सरोगेसी की चाह में भारत आएंगे, उन्हें प्रस्तवित कानून के अंतर्गत
इस आशय का प्रमाणपत्र देना होगा कि उनके देश में सरोगेसी को कानून मान्यता प्राप्त
है और यह भी कि जन्म के बाद शिशु को उनके देश की नागरिकता दी जाएगी। “सहायक प्रजनन तकनीक क्लिनिकों को और
सरोगेसी से जुड़े विभिन्न पक्षों के अधिकरों और दायित्वों के नियमन के लिए कानून
की जरूरत” पर
अपनी 228वीं रिपोर्ट में भारत के विधि आयोग ने भारत में सरोगेसी का मोटे तौर पर
समर्थन किया है,
लेकिन यह व्यापारिक सरोगेसी के पक्ष में नहीं है। आयोग ने कहा कि “ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में किराए
पर कोख उपलब्ध है, जिससे विदेशियों को शिशु और इसके बदले में भारतीय सरोगेट माताओं की
प्राप्ति होती है।”
लेकिन
मुंबई के एक बांझपन विशेषज्ञ के अनुसार आयोग द्वारा केवल परोपकार के तौर पर सरोगेसी
का समर्थन करना ही कोई एकमात्र समाधान नहीं है। विशषज्ञ का कहना है कि, “परोपकार के रूप में सरोगेट को तलाशना
काफी मुश्किल हो जाएगा और इससे रिश्तेदारों पर सेरोगेट बनने का दबाव बढ़ेगा।” गरीबी, अशिक्षा और भारत में महिलाओं के जीवन
में शक्ति की कमी के परिदृश्य में यह एक वास्तविकता हो सकती है।
लेकिन
अनेक कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बिल का मसौदा सही दिशा में है और यह मौजूदा
अव्यवस्था को समाप्त करने और आईवीएफ केन्द्रों के कामकाज को नियमित करने में
मददगार तथा एआरटी क्लिनिकों की गुणवत्ता और उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने में
मददगार होगा। यह सरोगेट माताओं और शिशुओं दोनों के हितों को सुरक्षा और संतान की
चाह रखने वाले अभिभावकों के लिए उनकी अपनी संगत के सपने को बगैर किसी मुश्किल के
साकार करने में मददगार होगा।
चिंता
के कुछ कारण भी हैं जैसे कि व्यावसायिकरण के संदर्भ में समाज पर इसका क्या
प्रभाव होगा। गरीब अशिक्षित महिलाओं को पैसों का लालच देकर सरोगेसी के लिए बार-बार
मजबूर किया जा सकता है, जिससे उनकी जिंदगी को खतरा हो जाएगा। सरोगेट माँ के अधिकारों के
प्रश्न के अलावा इसमें नैतिक और मानवीय गरिमा का मुद्दा भी शामिल है। सरोगेसी के
इस मसौदा विधेयक को कानून बनाने से पूर्व
सामाजिक,
कानूनी और राजनैतिक सीभ क्षेत्रों में इस पर व्यापक बहस की जरूरत है।
0 comments: