सुनीता उपन्यास के आधार पर हरिप्रसन्न का चरित्र चित्रण कीजिये: हरिप्रसन्न सुनीता उपन्यास का तीसरा प्रमुख पात्र है। वह श्रीकांत का मित्र है। श्रीकांत क
सुनीता उपन्यास के आधार पर हरिप्रसन्न का चरित्र चित्रण कीजिये
हरिप्रसन्न का चरित्र चित्रण: हरिप्रसन्न सुनीता उपन्यास का तीसरा प्रमुख पात्र है। वह श्रीकांत का मित्र है। श्रीकांत के बार-बार बुलाने पर वह उसके घर आता है व कुछ दिनों के लिये ठहरता है। हरिप्रसन्न का चेहरा कुछ नुकीला और काया स्वस्थ थी। बचपन में ही वह अपने पिता का घर छोड़कर भाग आया था और वह अपने जीवन को लेकर बहुत बेफिक्र रहता था। वह स्वभाव से कुछ सन्देहशील, चतुर, कर्मण्य कुशल, तीक्ष्ण बुद्धि व परिस्थिति से असम्पन्न था। हरिप्रसन्न की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
क्रांतिकारी: हरिप्रसन्न एक क्रांतिकारी हैं। वे क्रांतिकारियों के एक दल का नेतृत्व करते हैं। उस दल के लिए पैसे व हथियार जुटाने की व्यवस्था करता था। क्रांति की योजना बनाता था। वह देश व समाज के कल्याण के लिए समर्पित था। उनका मानना है कि व्यक्तिगत सुख से बढ़कर महत्व रखता है देश का हित। इसी कारण वह पारिवारिक जीवन में नहीं फंसना चाहता था।
विद्रोही स्वाभाव: हरिप्रसन्न विद्रोही स्वभाव का है। वह कहता है कि हमारा मार्ग अनन्त है और वह तुम्हारी राह अपनी समाप्ति पर सन्तुष्ट पारिवारिक जीवन देकर हमे भुलावे में डाल देती है। मनुष्य पति और पिता बनकर अपने को बाँधता है। मैं अकेला रहूँगा क्योंकि मैं न तो बँधना चाहता हूँ और न बाँधना चाहता हूँ। हरिप्रसन्न के शब्दों में,"जिसने मुनष्य को बाँटा है वह मेरे लिये नहीं होगा। मेरा व्यवहार किसी व्यवहार, किसी समाज और सम्प्रदाय की परिधि में न घिरा होगा। कुछ कमाओ, घर बैठो, बाल-बच्चे जनो। आज और कल के बीच में नपे हुए और दबे हुए रहो। क्या यही जीवन है नहीं यह मुझसे नहीं होगा।" हरिप्रसन्न का विद्रोही स्वभाव सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों को भी चुनौती देता है। उनका मानना है कि शास्त्रों सहित समाज के हर अंग में बदलाव की आवश्यकता है। वे महिलाओं को केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रखना चाहते। विवाह के बाद पत्नी के नाम में होने वाले बदलाव को भी वे असमानता का प्रतीक मानते हैं।
समाजसेवी: हरिप्रसन्न एक सच्चे समाजसेवी हैं। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी सहजता और मिलनसारिता उन्हें सबके बीच लोकप्रिय बनाती है। किसी का आभार वह नहीं मानता था और न चाहता था कि उसका कोई आभार माने। वह मिलनसार था और कई तरह के काम जानता था।
आधुनिक युवक: वह परम्परा का विरोधी है। वह पुरुष के पारम्परिक रूप को स्वीकार नहीं करता और न ही नारी की पारम्परिक भूमिका का समर्थक है। हरिप्रसन्न नारी का कार्यक्षेत्र घर के अलावा बाहर भी मानता है। वह ऐसी पत्नी को निरर्थक मानता है जो खाली पतिव्रता हो। विवाह के पश्चात पत्नी के नाम में पति के नाम का हस्तक्षेप उसे स्वीकार नहीं है। नारी घर में क्यों ? वह वृहत क्षेत्र में क्यों नहीं? वह भाभी ही क्यों वह ध्वज धारिणी क्यों नहीं।
स्वाभिमानी: हरिप्रसन्न किसी के आश्रित नहीं रहना चाहते। उनका स्वाभिमान उन्हें दूसरों का उपकार लेने से रोकता है। यही कारण है कि जब श्रीकांत उसे अपने यहाँ रहने का आग्रह करता है तब वह इन्कार कर देता है क्योंकि उसके पास पैसे नहीं है, अतः वह अपने मित्र पर बोझ नहीं बनना चाहता है। इसीलिए अपनी बनाई हुई पेंटिंग श्रीकांत को देकर वे अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हैं।
सच्चा प्रेमी: वह निःस्वार्थ व सच्चा प्रेमी है। वह श्रीकांत की पत्नी सुनीता के प्रति आकर्षित होता है लेकिन वह छुपाता नहीं। वह यह बात सुनीता को स्पष्ट कर देता है और यह भी कि वह उसे पाना चाहता है। सुनीता स्वयं को उसे समर्पित करने के लिये तत्पर है, पर वह स्वार्थी नहीं है वह सुनीता को ऐसा कदम उठाने से रोक देता है और बिना कुछ कहे सुने चुपचाप वहाँ से चला जाता है।
हरिप्रसन्न जैनेंद्र के उपन्यास में एक ऐसे पात्र हैं जो पाठकों को विचार करने पर मजबूर कर देते हैं। उनका क्रांतिकारी तेवर, समाज के प्रति समर्पण और निःस्वार्थ प्रेम उन्हें एक अविस्मरणीय पात्र बनाते हैं।
संबंधित लेख:
COMMENTS