आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर मातुल का चरित्र चित्रण कीजिए: : मातुल का शाब्दिक अर्थ है मामा। नाटककार मोहन राकेश ने मातुल को कवि कालिदास के मामा के
आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर मातुल का चरित्र चित्रण कीजिए।
- आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर मातुल का चरित्रांकन कीजिए।
- आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर मातुलकी चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
मातुल का चरित्र चित्रण: मातुल का शाब्दिक अर्थ है मामा। नाटककार मोहन राकेश ने मातुल को कवि कालिदास के मामा के रूप में कल्पित किया है। इसीलिए उसका कोई अपना नाम न होकर मातुल के नाम से ही पूरे नाटक में चर्चित हुआ है। मातुल के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं-
(1) व्यवहार कुशल: मातुल एक व्यवहार कुशल व्यक्ति है। वह चाहता है कि कालिदास कुछ कमाने योग्य बन जाए। इसीलिए जब उज्जयिनी से आचार्य वररुचि आते हैं तो कालिदास को राजकवि बनाने का प्रस्ताव रखते हैं तो मातुल कालिदास द्वारा किये जाने वाले व्यवहार से दुःखी हो उठता है। कालिदास तर्क देता है कि उसे राज- मुद्राओं से खरीदा जाना उचित नहीं है । तब मातल अंबिका से अपना रोष व्यक्त करते हुए कालिदास की सोच की निंदा करता है । वह कहता है - " मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें क्रय-विक्रय की क्या बात है ? सम्मान मिलता है तो ग्रहण करो। नहीं तो कविता का मूल्य ही क्या ? "
(2) कालिदास का मामा: नाटककार ने मातुल को कवि कालिदास के मामा के रूप में चित्रित किया है। मातुल गाँव का एक साधारण व्यक्ति है। उसका व्यवसाय पशुपालन का है। उसे काव्य रचना की कोई समझ नहीं है। वह कवि और कविता के महत्त्व को नहीं जानता। इसीलिए वह कालिदास को अकर्मण्य समझता है और कालिदास को पशु चराने के लिए विवश करता है। मातुल ने ही कालिदास का पालन-पोषण किया है और उसे यहाँ तक पहुँचाया है।
(3) चाटुकार: मातुल एक चाटुकार स्वभाव वाला व्यक्ति है। वह अपने स्वार्थ व कल्याण के लिए किसी की भी चाटुकारिता कर सकता है। इसीलिए वह प्रियंगुमंजरी और मल्लिका की प्रशंसा और चापलूसी के साथ-साथ अपनी स्तुति से भी पीछे नहीं हटता । वह आत्म प्रशंसा के स्वर में कहता भी है - "मातुल का शरीर लोहे का बना है, लोहे का। आत्मश्लाघा नहीं करता, किन्तु हमारे वंश में केवल प्रतिभा ही नहीं शारीरिक शक्ति भी बहुत है। मैं पशुओं के पीछे एक दिन में दस-दस योजन घूमता हूँ।"
मातुल प्रियंगुमंजरी के समक्ष भी अपने व्यवसाय की प्रशंसा करने से भी नहीं चूकता। वह शेखी बघारता हुआ कहता है कि- "मैं कहता हूँ संसार में सबसे कठिन काम है, तो वह पशुपालन का।"
(4) यश की इच्छा: मातुल भले ही एक साधारण, गँवार, अनपढ़ और सरल ग्रामीण हो परंतु उसमें मान-सम्मान की इच्छा उच्च स्तर की है। वह मन ही मन कालिदास के मूल्य को आँकना चाहता था। जब उज्जयिनी से आचार्य वररुचि कालिदास को राजसम्मान देने का समाचार लेकर आते हैं तो वह गौरव का अनुभव करता है। वह फूला नहीं समाता इस समाचार को वह मल्लिका के समक्ष प्रस्तुत करते हुए राजसी ठाट-बाट का चित्रण करता हुआ कहता है—“दो रथ, रथवाह और चार अश्वारोही उनके साथ हैं। मैं तुमसे नहीं कहता था अंबिका, कि हमारे प्रपितामह के एक दौहित्र का पुत्र गुप्त राज्य की ओर से शकों से युद्ध कर चुका है।"
(5) राजाश्रय का कटु अनुभव: मातुल कालिदास के साथ कश्मीर चला जाता है। जब वह वहाँ से लौटता है तो दो बैसाखियों के सहारे चलता हुआ दिखाई देता है। राजमहल में फिसलकर गिरने से उसकी टांग टूट जाती है। वह मल्लिका से अपना अनुभव इस प्रकार व्यक्त करता है- "मुझसे कोई पूछे तो मैं कहूँगा कि राज प्रसाद में रहने से अधिक कष्टकर स्थिति संसार में हो ही नहीं सकती। आप आगे देखते हैं तो प्रतिहारी जा रहे हैं, पीछे देखते हैं तो प्रतिहारी जा रहे हैं। सच कहता हूँ, मुझे कभी पता नहीं चला कि प्रतिहारी मेरे पीछे चल रहे हैं या मैं प्रतिहारियों के पीछे चल रहा हूँ.....।"
मातुल एक सीधा साधा सरल ग्रामीण व्यक्ति है और उसे राजसी शान-शौकत और तामझाम सहज नहीं लगता। वह नहीं चाहता कि कोई उसके सामने नतमस्तक होकर खड़ा रहे उसके शब्दों में–“मेरे सामने ..... बताओ, मातुल में ऐसा क्या है जिसके आगे कोई सिर झुकाएगा ? मातुल न देवी है। न देवता, न पण्डित है, न राजा है तो फिर क्यों कोई सिर झुकाकर मातुल की वन्दना करे ? परंतु नहीं ! लोग मातुल की क्या, मातुल के शरीर से उतरे वस्त्रों तक की वंदना करने को प्रस्तुत थे।"
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