श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण: 'श्रवण कुमार ' डा. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य है जो बाल्मीकि रामायण के श्रवण कुमार प्रसंग पर आधारित है। इस खण्ड
श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण - Shravan Kumar ka Charitra Chitran
श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण: 'श्रवण कुमार ' डा. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य है जो बाल्मीकि रामायण के श्रवण कुमार प्रसंग पर आधारित है। इस खण्डकाव्य की कथा 9 सर्गों में विभक्त है। श्रवण कुमार इस खण्डकाव्य का नायक है और माता-पिता के प्रति उसका भक्ति भाव एवं सेवाभाव अनुकरणीय है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. मातृ-पितृ भक्त: श्रवण के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मातृ-पितृ भक्ति है। वह प्रात:काल उठते ही श्रद्धा-भक्तिपूर्वक माता-पिता को प्रणाम कर उनकी सेवा में जुट जाता है। एक बार जब उसके वृद्ध माता-पिता ने तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा व्यक्त की तो श्रवण अपने माता-पिता को काँवर में बैठाकर तीर्थयात्रा कराकर उनकी इच्छा पूर्ति करता है । कवि के अनुसार-
देवगृहों, तीर्थों को जाता, सदा कराने शुभ दर्शन ॥
दशरथ के बाण से घायल होने पर भी श्रवण को अपने प्राणों की चिन्ता नहीं है। उसे तो अपने प्यासे माता-पिता की ही चिन्ता सता रही है-
2. क्षमाशील एवं सरल स्वभाव वाला: श्रवण कुमार सरल स्वभाव वाला तथा क्षमाशील युवक है। उसके हृदय में द्वेष भाव तथा ईर्ष्या रंचमात्र भी नहीं है । दशरथ के बाण से घायल होने पर भी वह दशरथ का सम्मान करता है और दशरथ को क्षमा कर देता है।
3. निश्छल एवं सत्यवादी: श्रवण के पिता वैश्य तथा माता शूद्र वर्ण की थीं । श्रवण स्पष्टवादी है। वह किसी से कुछ छिपाता नहीं है। दशरथ द्वारा ब्रह्म हत्या की सम्भावना प्रकट करने पर वह उन्हें स्पष्ट बताता है कि वह ब्रह्म कुमार नहीं है—
संस्कार के सत् प्रभाव से, मेरा जीवन पूत हुआ ॥
वह मानता है कि जन्म से नहीं अपितु संस्कारों से मानव को सम्मान प्राप्त होता है।
4. भाग्यवादी: श्रवण एक भाग्यवादी व्यक्ति है। वह मानता है कि जो भाग्य में लिखा होता है, उसे कोई मिटा नहीं सकता-
जो भवितव्य वही होता है, उसे सका कब कोई टाल ।
दशरथ के बाण से अपनी मृत्यु को भी वह अपना भवितव्य मानता है अतः दशरथ को क्षमा करके अपनी महानता का परिचय देता है।
5. भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी: श्रवण कुमार भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। चार वेद और छह दर्शन ही भारतीय संस्कृति का आधार हैं। धर्म के दस लक्षणों को वह अपने जीवन में धारण किए हुए है-
6. आत्म-सन्तोषी: श्रवण कुमार स्वभाव से सन्तोषी है। उसे भोग ऐश्वर्य की कामना नहीं है। उसका कथन है-
ऋषि हूँ, नहीं किसी को पीड़ा पहुँचाने की उर में चाह ॥
मेरा जीवन निर्वाह बड़ी सरलता से इस वन से प्राप्त होने वाली वस्तुओं से ही हो जाता है। अधिक सुख भोग की कामना नहीं तथा मेरा हृदय किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाना चाहता ।
7. अहिंसक: अहिंसा भाव भी श्रवण के चरित्र की एक विशेषता है।
8. संस्कार को महत्व देने वाला: श्रवण कुमार कर्म, शील एवं संस्कारों को महत्व देता है। उसके जीवन में पवित्रता संस्कारों के प्रभाव के कारण ही है ।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार इस खण्डकाव्य का सर्वाधिक प्रमुख पात्र (नायक) है और उसका चरित्र वर्तमान पीढ़ी के नवयुवकों के लिए प्रेरणादायक है।
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