गरुड़ध्वज नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्र चित्रण कीजिये: लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित "गरुड़ध्वज" नाटक में महान कवि कालिदास एक ऐसे पात्र के रूप म
गरुड़ध्वज नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्र चित्रण कीजिये
लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित "गरुड़ध्वज" नाटक में महान कवि कालिदास एक ऐसे पात्र के रूप में जीवंत हो उठते हैं जो इतिहास और कल्पना के संगम पर खड़ा है। ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी की पृष्ठभूमि में रचा गया यह नाटक हमें कालिदास के उस रूप से परिचित कराता है जिसके बारे में इतिहास मौन है।
कवि हृदय, शिवभक्त आत्मा:
नाटक में कालिदास सर्वप्रथम उसी रूप में सामने आते हैं जिस रूप में उन्हें हम जानते हैं - एक अद्वितीय कवि। उनकी वाणी में शब्द मानो स्वर लिपटे हुए हों, उनकी कविताएं प्रकृति का ऐसा चित्र खींचती हैं जिसे पढ़कर मन मोहित हो जाता है। कुमारसंभव और मेघदूत उनकी रचनात्मक प्रतिभा के ज्वलंत प्रमाण हैं। किंतु कालिदास केवल शब्दों के जादूगर ही नहीं हैं, बल्कि उनकी आत्मा शिवभक्ति से भी ओतप्रोत है। नाटक में महाकाल मन्दिर का पुजारी उनकी इस भक्ति का साक्षी बनता है।
वीरता का अप्रत्याशित पहलू:
"गरुड़ध्वज" हमें कालिदास के एक अनदेखे पहलू से भी परिचित कराता है - वीर सेनापति का रूप। नाटक में राजा विक्रमादित्य उन्हें देवभूति को पकड़ने के लिए काशी भेजते हैं। यह हमें बताता है कि कालिदास केवल कोमल कविताएं लिखने वाले व्यक्ति ही नहीं थे, बल्कि युद्ध कौशल में भी निपुण थे। वे तलवार चलाने में उतने ही कुशल थे जितने कलम चलाने में।
मानवतावाद का ध्वजवाहक:
कालिदास व्यक्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि मनुष्यों को देवता बनाकर पूजना उचित नहीं है। नाटक में वे बौद्ध विहारों में हो रही व्यक्तिपूजा का विरोध करते हैं। उनका विश्वास मानवता में था। वे कहते हैं, "मैं तो अब देवता को मनुष्य बना रहा हूं। मनुष्य से बढ़कर देवता होता भी नहीं।" यह कथन उनके मानवतावादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
प्रेम की मधुर धारा:
नाटक में कालिदास के प्रेमपूर्ण पक्ष को भी दर्शाया गया है। वासन्ती उनकी प्रेमिका है। वे वासन्ती से बात करते हुए कहते हैं कि कल्पनाओं में खोया रहने वाला कवि अपनी प्रेमिका को कैसे संतुष्ट रख सकता है। जब वासन्ती एक मयूर को अपनी गोद में उठाकर उसे अपने गले से लिपटाए हुए है तब वे उसे सम्बोधित कर कहते हैं— "मनुष्य क्या देवता भी कहीं हो तो इस सुख के लिए तरसने लगे जो आप इस मयूर को दे रही हैं।" उनके इस कथन में प्रेम की गहराई और अपनी प्रेयसी के प्रति संवेदनशीलता झलकती है।
निष्कर्ष:
"गरुड़ध्वज" का कालिदास एक बहुआयामी व्यक्तित्व है। वे कवि, शिवभक्त, वीर सेनापति, मानवतावादी और प्रेमी हैं। उनकी यह बहुआयामिकता ही उन्हें नाटक का एक अविस्मरणीय पात्र बनाती है। यह नाटक हमें कालिदास के उस संभावित व्यक्तित्व की झलक देता है जिसके बारे में इतिहास मौन है।
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