माता-पिता और बच्चों के बीच संस्कारों को लेकर संवाद: पिता: आदर्श, मुझे लगता है कि तुम गलत संगति में पड़ रहे हो। माता: हाँ, बेटा। हमने देखा है कि तुम कु
माता-पिता और बच्चों के बीच संस्कारों को लेकर संवाद लेखन
पिता: आदर्श, मुझे लगता है कि तुम गलत संगति में पड़ रहे हो।
माता: हाँ, बेटा। हमने देखा है कि तुम कुछ ऐसे बच्चों के साथ घूम रहे हो जो अच्छे नहीं हैं।
पुत्र: लेकिन वे हमारे दोस्त हैं।
पिता: दोस्ती अच्छी बात है, लेकिन गलत दोस्ती तुम्हें गलत रास्ते पर ले जा सकती है।
माता: हमेशा याद रखना, अच्छे संस्कार ही तुम्हें जीवन में सफलता और खुशी देंगे।
पुत्र: लेकिन कभी-कभी उन्हें देखकर लगता है कि वे बहुत मज़े कर रहे हैं।
पिता: मज़ा पल भर का होता है, बेटा। असली खुशी ईमानदारी और अच्छे कर्मों से मिलती है।
माता: ये ही संस्कार तुम्हें मज़बूत बनाते हैं और सही रास्ते पर चलने में मदद करते हैं। याद रखो, गलत रास्ता आसान लग सकता है, लेकिन वो तुम्हें कहीं नहीं पहुँचाएगा।
पिता: अच्छा! देखो, हमने तुम्हें हमेशा सच बोलना, ईमानदार रहना और दूसरों का सम्मान करना सिखाया है। ये संस्कार ही तुम्हारी असली पहचान हैं।
पुत्र: मैं आपकी बात समझ गया, माँ, पापा। हम वैसे ही रहेंगे जैसे आपने हमें सिखाया है।
माता: हमें तुम पर पूरा भरोसा है। और हाँ, अगर कभी भी किसी भी तरह की उलझन हो, तो सीधे हमसे बात करना।
माता-पिता द्वारा बच्चों को संस्कारों का महत्व बताते हुए एक संवाद लिखिए
पिता: (चिंता भरे स्वर में) बेटा, पिछले कुछ दिनों से स्कूल की तरफ से तुम्हारे बारे में कुछ खबरें आ रही हैं। थोड़ा बताओ तो क्या बात है?
पुत्र: (कुछ देर चुप रहने के बाद) कुछ नहीं माँ, बस स्कूल में मन नहीं लगता है।
पिता: (आदर्श की बात को काटते हुए) तुम कक्षा में अध्यापकों से गलत व्यवहार करते हो और कभी-कभी बिना बताए स्कूल भी नहीं जाते?
पुत्र: (कुछ घबराते हुए) वो... कभी-कभी कुछ दोस्त ऐसा करने के लिए कहते हैं।
माता: (आदर्श और रिया का हाथ थामते हुए) देखो, हम जानते हैं कि दोस्त बनाना और उनके साथ घूमना अच्छा लगता है। लेकिन ये भी ज़रूरी है कि तुम सही और गलत में फर्क समझो।
पिता: याद करो, बचपन में हमने तुम्हें सत्य बोलना, मेहनत करना, गुरुजनों का आदर करना और समय का पाबंद होना सिखाया था। ये वही संस्कार हैं जो तुम्हें जिंदगी में सफल बनाएंगे।
पुत्र: (कुछ शर्मिंदा होकर) हाँ, माँ आप सही कह रही हैं।
माता: तुम्हें याद है, बचपन में दादी माँ ने सत्य हरिश्चंद्र की कहानी सुनाई थी? उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलकर अपना सब कुछ त्याग दिया था, लेकिन सत्य का साथ नहीं छोड़ा। वही असली ताकत है।
पुत्र: (थोड़े दृढ़ स्वर में) शायद हमें उन गलत संगत करने वाले दोस्तों से दूरी बना लेनी चाहिए।
पिता: (गर्व से सिर हिलाते हुए) बिल्कुल आदर्श, यही तो सही फैसला है। अच्छे संस्कार और सच्चे दोस्त ही तुम्हें ज़िंदगी में आगे बढ़ाते हैं।
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