व्यक्तिगत स्वच्छता / स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं ? शरीर के विभिन्न अंगों की स्वच्छता के बारे में बताइए ।

व्यक्तिगत स्वच्छता / स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं ? शरीर के विभिन्न अंगों की स्वच्छता के बारे में बताइए। हमारे जीवन में व्यक्तिगत स्वच्छता का अत्यन्

व्यक्तिगत स्वच्छता / स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं ? शरीर के विभिन्न अंगों की स्वच्छता के बारे में बताइए ।

हमारे जीवन में व्यक्तिगत स्वच्छता का अत्यन्त महत्व है। शरीर को स्वच्छ रखना तथा स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। व्यक्तिगत स्वच्छता का सम्बन्ध शरीर की स्वच्छता, वस्त्र, भोजन, व्यायाम, मलत्याग का नियत समय, निंद्रा, व्यक्तिगत आदत और स्वभाव पर निर्भर है।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Personal Hygiene) 

"व्यक्तिगत स्वास्थ्य वह विज्ञान है जो व्यक्तियों को स्वास्थ्य के नियमों से परिचित कराता है।"

"व्यक्तिगत स्वास्थ्य उन कार्यों से सम्बन्धित है जो कि व्यक्तियों के स्वास्थ्य के रखरखाव और वृद्धि में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से सहायता पहुँचाते हैं ।

मनुष्य को अपने स्वास्थ्य के लिए सम्पूर्ण शरीर की स्वच्छता की ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। शरीर की सम्पूर्ण स्वच्छता को मुख्यतः त्वचा, मुँह, आँख नाक, कान, बाल तथा पेट की स्वच्छता से जोड़ा जा सकता है। शरीर के उपर्युक्त विभिन्न अंगों की स्वच्छता को निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है। 

1. त्वचा की स्वच्छता एवं स्नान (Cleanliness and Bathing of Skin) - शरीर के योग्य पोषण और आरोग्य रक्षण के लिए स्वच्छता की आवश्यकता होती है। त्वचा शरीर का रक्षात्मक आवरण है जो सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों के द्वारा विटामिन डी का निर्माण करता है। त्वचा एक महत्वपूर्ण संवेदी और उत्सर्जी अंग है। त्वचा की सतह से अवशिष्ट पदार्थ पसीने के रूप में शरीर से बाहर निकलते हैं। यदि इसे साफ न रखा गया तो उसके ऊपर पसीने व बाहर धूल के कणों की परत जम जाती है तथा हमारे शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है। त्वचा पर जमने वाले मैले स्तर से स्वेद नलिका का मुँह बन्द हो जाता है तथा इससे स्वेदोत्पादन में बाधा पड़ती है। त्वचा की गन्दगी से फोड़े-फुन्सियाँ, दाद, खुजली आदि विकार हो जाते हैं। इसलिए त्वचा को नियमित रूप से स्वच्छ रखना चाहिए ।

त्वचा को साफ रखने के लिए प्रतिदिन कम से कम एक बार स्नान अवश्य करना चाहिए। गर्म पानी के स्नान से थकावट दूर होती है। शीतल जल से स्नान करने से शरीर में रुधिर संचार होता है और माँसपेशियों को शक्ति प्राप्त होती है। सुबह स्नान करने से शरीर शीतल और मन प्रफुल्लित रहता है। गर्मी में शाम को भी स्नान करने से नींद अच्छी आती है। स्नान करते वक्त अच्छे प्रकार के साबुन का उपयोग करना चाहिए। उस साबुन में सोडे की मात्रा कम होनी चाहिए।

अपने स्वास्थ्य और ऋतु को देखकर गर्म अथवा ठण्डे पानी का प्रयोग करना चाहिए । स्नान करते समय शरीर के उन अंगों को जिनमें विशेष रूप से पसीना निकलता है, जैसे - आँख, जाँघ और पैरों को अच्छी तरह से धोना और साफ करना चाहिए । स्नान के वक्त गुप्तेन्द्रियों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् शरीर को तौलिये से अच्छी तरह रगड़कर पोंछ लेना चाहिए । भोजन और व्यायाम के तुरन्त बाद स्नान नहीं करना चाहिए। अस्वस्थता की दशा में स्नान करना सम्भव न हो तब गर्म जल में तौलिया भिगोकर शरीर को पोंछ लेना चाहिए । 

2. मुँह की स्वच्छता (Cleanliness of Mouth) - हम जो खाते हैं वह मुँह द्वारा हमारे शरीर में प्रविष्ट होता है इसलिए मुँह की नियमित सफाई करनी चाहिए। यदि मुँह साफ न होगा तो भोजन के साथ-साथ मुँह के कीटाणु भी पेट में चले जायेंगे, जो पेट में रोग उत्पन्न करते हैं । अतः व्यक्ति को जल में नमक डालकर रात में एक बार कुल्ला अवश्य करना चाहिए, जिससे मुँह साफ हो जाता है तथा मुँह से दुर्गन्ध आनी बन्द हो जाती हैं। 

हमें प्रतिदिन प्रातः मुँह धोकर दाँतों को स्वच्छ रखना चाहिए । यदि हम दाँत साफ न करें तो भोजन के समय जो अन्न कण दाँतों की सन्धि में जमा हो जाते हैं, उनके वहीं सड़ने के कारण दाँतों में कीड़े लग जाते हैं और मुँह में दुर्गन्ध आने लगती है । मसूड़ों के सूजने से उनसे खून और पीव आने लगता है। 

3. दाँतों की स्वच्छता (Cleanliness of Teeth) - दाँतों की स्वच्छता हेतु हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए -

  1. खाना खाने के बाद कुल्ला करके दाँतों को अंगुली और ब्रुश से साफ करना चाहिए ।
  2. सुबह उठते ही और रात को सोने से पहले ब्रुश अथवा उपयुक्त मंजन से दाँतों को साफ करना चाहिए। 
  3. दाँतों की सफाई करने के लिए महीन मंजन या पेस्ट का उपयोग करना चाहिए। 
  4. प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन 'C' तथा 'D' दाँतों के निर्माण और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। अतः हमें अपने भोजन में इन तत्वों से युक्त पदार्थों को विशेष स्थान प्रदान करना चाहिए ।
  5. बहुत बड़े और बहुत ही कोमल बालों वाले ब्रुश का उपयोग नहीं करना चाहिए । ब्रुश को दाँत साफ करने के बाद अच्छी तरह साफ करके रखना चाहिए।
  6. दाँतों पर पीला पदार्थ जमने पर साफ कर लेना चाहिए । (vii) दाँतों को उचित प्रकार से साफ करना चाहिए। सबसे पहले दाढ़ों के उस भाग पर ब्रुश फेरना चाहिए जो भोजन पीसते हैं और फिर ऊपर व नीचे के दाँतों को बाहर और भीतर की ओर से साफ करना चाहिए। दाँतों में मंजन करते समय जीभी से जीभ को भी साफ करना चाहिए।

4. नाखूनों की स्वच्छता (Cleanliness of Nails) - हाथ-पाँव के नाखूनों को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। बढ़े हुए नाखूनों को समय पर कटवाते रहना चाहिए। हाथ के नाखूनों के नीचे मैल जम जाता है और वह खाने के साथ मुँह में चला जाता है तथा पेट में प्रवेश करके हैजा, पेचिश आदि रोग उत्पन्न करता है इसलिए बढ़े हुए नाखून सप्ताह में एक बार अवश्य काटने चाहिए।

5. वालों की स्वच्छता (Cleanliness of Hairs) - बालों को प्रतिदिन पानी से धोना चाहिए तथा सुखाने के बाद कंघी से साफ कर देना चाहिए । स्त्रियों के बाल ज्यादा लम्बे होने के कारण प्रतिदिन धोना सम्भव नहीं है इसलिए उन्हें सप्ताह में एक या दो बार अपने बालों को अवश्य धोना चाहिए। बालों को साबुन, शैम्पू या रीठे तथा उष्ण जल से भली-भाँति धोना चाहिए । बालों के अच्छी तरह सूखने पर उनमें तिल या खोपरे का तेल लगाकर कंघी करनी चाहिए, जिससे सिर में रक्त संचार में सुधार होता है। बालों की सफाई न होने पर सिर में खुजली होने लगती है और जूँ पड़ जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। जुओं को समाप्त करने के लिए डी. डी. टी. या डेटाल को रात में बालों में अच्छी तरह लगाना चाहिए। सुबह गर्म जल और साबुन से बालों को भली प्रकार धोकर सुखा लेना चाहिए। बालों को पोंछकर बारीक कंघी से साफ करना चाहिए। 

6. कानों की स्वच्छता (Cleanliness of Ears ) - कान शरीर का बहुमूल्य अंग है। इसलिए हमें कान की सफाई और सुरक्षा की ओर भी पूर्ण रूप से ध्यान देना आवश्यक है। कान की नली की दीवार से एक तरह का मैल निकलता रहता है। यदि यह मैल अधिक जमा हो जाता है तो दर्द और खुजलाहट होती है। इस मैल से कान के अंतःभाग में रोगाणुओं का आक्रमण भी हो सकता है। अगर मैल को साफ न किया जाये तो व्यक्ति को सुनने में कठिनाई आती है। इस मैल को कान से निकालने के लिए नारियल, जैतून या मूँगफली का गुनगुना तेल या गिल्सरीन की एक बूँद गर्म करके कान में डालनी चाहिए। कुछ समय बाद मैल मुलायम हो जाने पर उसे रुई या मलमल के एक मरोड़े हुए टुकड़े से निकालना चाहिए। नुकीली वस्तु जैसे- पिन, तिनका आदि से कान साफ नहीं करना चाहिए अन्यथा कान का पर्दा फटने का भय रहता है। 

7. नाक की स्वच्छता (Cleanliness of Nose) - सांस लेने का अधिकतर कार्य नाक द्वारा ही किया जाता है। नाक श्वसन क्रिया में फिल्टर का काम करती है। अगर नाक की सफाई उचित रूप से न की जाये तो वायु द्वारा रोगाणु श्वांस नली में चले जाते हैं और कई तरह के रोग पैदा हो जाते हैं, जैसे- जुकाम, टाँसिल का बढ़ना आदि. इसलिए नाक की सफाई करना बहुत आवश्यक होता है। रुमाल या साफ कपड़े के टुकड़े से नाक की सफाई करनी चाहिए। जब नाक से खून निकले तो उसे बराबर पोंछना चाहिए। नाक की सफाई करने के लिए अंगुलियों का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

8. आँखों की स्वच्छता (Cleanliness of Eyes) - आँखें मनुष्य की आत्मा का दर्पण हैं अर्थात् वह दृष्टि की इन्द्रियाँ हैं । इसलिए इनकी सुरक्षा हमें सावधानी से करनी चाहिए । आँखों में विकार होने से निम्न में से कोई भी लक्षण प्रकट हो सकते हैं, जैसे - आँखों व सिर में दर्द, धुँधली दृष्टि, पलकों और आँखों में खुजली, आँखों से पानी का बहना, आँखों का लाल होना चिपकना आदि। और आँखों की विशेष रूप से देखभाल करनी चाहिए । निकट तथा सूक्ष्म पढ़ने-लिखने अथवा कार्य करने हेतु पर्याप्त प्रकाश की आवश्यकता होती है। मंद प्रकाश में पढ़ना-लिखना नहीं चाहिए तथा पढ़ते या लिखते समय प्रकाश पीछे तथा बायीं ओर से आना चाहिए । पढ़ते समय पुस्तकों को आँखों के बिल्कुल पास नहीं रखना चाहिए । बिना पलक मारे लगातार नहीं पढ़ना चाहिए । शुद्ध जल से आँखों को प्रतिदिन दो-तीन बार अवश्य धोना चाहिए । भोजन में विटामिन A और B की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए । गन्दे हाथों से आँखों को कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए । 

नेत्र दोष होने पर शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श करके चश्मा लगाना चाहिए। आँखों में कष्ट होने पर डाक्टर की अनुमति के बिना कोई दवा आँखों में नहीं डालनी चाहिए। आँखों को धूल और धूप से बचाने के लिए चश्मे का उपयोग करना चाहिए। दूसरे व्यक्ति द्वारा प्रयोग किया गया रुमाल, तौलिया इत्यादि से अपनी आँख कभी नहीं पोंछना चाहिए। 

9. वस्त्रों की स्वच्छता (Cleanliness of Cloths) - स्वास्थ्य की दृष्टि से शरीर की स्वच्छता का जितना महत्व है उतना ही वस्त्रों की स्वच्छता का भी है। शरीर के सम्पर्क में आने वाले वस्त्र जैसे - बनियान, जांघिया आदि को प्रतिदिन साबुन से धोना चाहिए। कुछ व्यक्ति अन्दर गन्दे कपड़े पहनते हैं जिससे चर्म रोग हो जाता है इसलिए हमें सदैव साफ कपड़े पहनने चाहिए । अधिक कसे हुए कपड़े पहनने से शरीर में थकावट महसूस होती है, इसलिए थोड़े ढीले कपड़े पहनने चाहिए। रोगी के वस्त्रों की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सुरक्षा की दृष्टि से वस्त्रों को सन्दूक या अलमारी में रखना चाहिए।

10. हाथ-पैरों की सफाई (Cleanliness of Hand-Foot) - शरीर के अन्य भागों की अपेक्षा हाथ-पैर की सफाई रखना अधिक आवश्यक है। खाने-पीने के पूर्व हाथों को अच्छी तरह से धोकर साफ तौलिये से पोंछ लेना चाहिए । शौच क्रिया के पश्चात् हाथों को साबुन से धोना चाहिए। पैरों की सफाई पर भी ध्यान देना आवश्यक है। पैरों में लगी धूल के साथ बहुत से हानिकारक रोगाणु भी घर में प्रवेश पा लेते हैं। स्नान करते समय तथा घर में प्रवेश करने के पश्चात् हाथ-पैरों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। यदि पैरों की एड़ियों में बिवाई फटी हो तो रात्रि को पैरों को गर्म जल व साबुन से धोकर वैसलीन लगाना चाहिए। 

11. आँतों की सफाई (Cleanliness of Intestines) - स्वास्थ्य की दृष्टि से नियमित शौच क्रिया द्वारा आँतों की सफाई होना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए प्रतिदिन एक ही समय पर शौच जाने की आदत डालना चाहिए। सुबह उठने पर एक गिलास पानी पीने से मल त्याग की इच्छा उत्पन्न हो जाती है।

भोजन करने के समयों या शौच जाने के समयों में अनियमितता से प्रायः कब्ज की शिकायत हो जाती है। जब शरीर से प्रतिदिन मल का पूर्ण निष्कासन नहीं होता या विलम्ब से होता है, तो वह बड़ी आँत में सड़ने लगता है और इससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं, जैसे- सिरदर्द, आलस्य, पेट में दर्द, शक्तिहीनता आदि । ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पौष्टिक आहार या शीघ्र पचने वाला भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन में रेशेदार सब्जियों, फलों व अनाजों को शामिल करना चाहिए, जिससे व्यक्ति को कब्ज की शिकायत नहीं रहती है। 

12. गुर्दे की स्वच्छता (Cleanliness of Kidney) गुर्दे हमारे शरीर के प्रमुख उत्सर्जी अंग हैं। ये प्रतिदिन तीन से चार लीटर जल उत्सर्जित करके शरीर से यूरिया, यूरिक अम्ल आदि हानिकारक और अनुपयोगी पदार्थों का निष्कासन करते रहते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम प्रतिदिन 6-7 गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए, जिससे इन पदार्थों का निष्कासन करने में सहायता मिलती है।

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