शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए: वर्तमान में शारीरिक शिक्षा जैसे विषय की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं और अच्
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए
वर्तमान में शारीरिक शिक्षा जैसे विषय की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं और अच्छा नागरिक बनना चाहते हैं तो हमें शारीरिक शिक्षा का महत्व समझना ही पड़ेगा। इस सन्दर्भ में डॉ. राधाकृष्णन ने उचित ही कहा है, "प्रकृति में मनुष्य मनोभौतिक हैं, वे शरीर रखते हैं जो वृद्धि के निश्चित नियमों का पालन करते हैं। उनको अच्छे स्वास्थ्य तथा शारीरिक सुयोग्यता में ही रखा जाना चाहिए ....मजबूत शारीरिक नींव के बिना कोई राष्ट्र महान नहीं बन सकता।" यूनेस्को की एक रिपोर्ट में भी इस बात पर बल दिया गया है कि प्रत्येक मनुष्य को शारीरिक शिक्षा तथा खेलों तक पहुँच का मौलिक अधिकार होना चाहिए, जो उसके व्यक्तित्व के विकास के लिये आवश्यक है। स्वामी विवेकानन्द द्वारा शिक्षा के विषय में कहे गये ये शब्द आज भी अत्यधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं, "आज भारत को भगवद्गीता की नहीं बल्कि फुटबाल के मैदानों की आवश्यकता है।' वास्तव में "स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।"
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं इसके महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
(1 ) शैक्षिक दृष्टि से: शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का ही एक अंग है। इसी कारण इसके शैक्षिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। जिस तरह शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार तथा उसके आचार-विचार में परिवर्तन लाया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक शिक्षा के माध्यम से बालकों में इसी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य सामान्य शिक्षा के माध्यम से बच्चे का सर्वांगीण विकास के लक्ष्य में सहयोग देना ही है। बालकों में खेलों के माध्यम से ईमानदारी, बहादुरी, अनुशासन जैसे स्वाभाविक गुणों का विकास करना शारीरिक शिक्षा के शैक्षिक महत्व का द्योतक है।
(2) व्यक्ति के विकास की दृष्टि से: व्यक्ति के विकास की दृष्टि से भी शारीरिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण विषय का कार्य करती है। शारीरिक शिक्षा का महत्व व्यक्ति के विकास की दृष्टि से निम्नलिखित है -
- मस्तिष्क की सजगता की वृद्धि में सहायक,
- स्वास्थ्य तथा बीमारी के बारे में जानकारी,
- व्यक्ति के संवेगात्मक विकास में सहायक,
- अनुशासन बनाने में सहायक,
- सहन-शक्ति बढ़ाने में सहायक,
- व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक,
- चरित्र निर्माण में सहायक,
- स्थूलता पर नियन्त्रण में सहायक ।
(3) सामाजिक दृष्टि से: व्यक्ति समाज की महत्वपूर्ण इकाई है। समाज का अस्तित्व बिना व्यक्तियों के सम्भव नहीं है। शारीरिक शिक्षा द्वारा समाज की अनेक आवश्कयताओं की पूर्ति होती है। शारीरिक शिक्षा समाज को स्वस्थ एवं अनुशासित बनाती है जिसके कारण समाज में रहने वाले लोग निर्धारित कार्यों को सरलता से करने में सक्षम होते हैं। शारीरिक शिक्षा द्वारा सामाजिक गुणों, जैसे सहयोग, सहानुभूति भ्रातृत्व, वफादारी, खिलाड़ी-भावना, दयालुता, नेतृत्व-क्षमता आदि का विकास होता है। यह समाज को स्वस्थ एवं अनुशासित नागरिक प्रदान करने के साथ-साथ नेतृत्व के गुणों का विकास भी करती है और नियमों के अन्तर्गत रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना सिखाती है।
(4) मनोरंजन की दृष्टि से: शारीरिक शिक्षा में खेलकूद को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इससे न केवल मनोरंजन ही होता है, बल्कि फालतू समय का सदुपयोग भी सम्भव हो जाता है। खेलकूद व अन्य शारीरिक क्रियाओं में भाग लेने से मानसिक तनाव कम होता है तथा बालक में स्फूर्ति बनी रहती है। मनोरंजन एवं सुन्दरता में भी घनिष्ठ सम्बन्ध है । शारीरिक शिक्षा द्वारा मानव शरीर को सुडौल बनाया जा सकता है। एक सुन्दर शरीर बनाने का यह अच्छा स्रोत है। एक अमेरिकी विश्व सुन्दरी के माता-पिता ने उसकी सुन्दरता का रहस्य उसके द्वारा घुड़सवारी, तैराकी, तेज चलने व शारीरिक व्यायाम को माना है।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय महत्व: शारीरिक शिक्षा को अन्तर्राष्ट्रीय जगत में मानवीय सम्बन्धों को बढाने का प्रमुख साधन माना जाता है। विभिन्न देशों को एकता के सूत्र में बाँधने में खेलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सभी देश इस बात से सहमत हैं कि खेलों को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए, क्योंकि खेलों के माध्यम से विभिन्न देशों के लोगों को एक-दूसरे को समझने तथा सहयोग करने का अवसर मिलता है। भारत एवं पाकिस्तान में होने वाली खेल प्रतियोगिताओं ने पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के नागरिकों को नजदीक लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इस दृष्टि से शारीरिक शिक्षा के बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को आँका जा सकता है। अतः निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में शारीरिक शिक्षा की विशेष रूप से आवश्यकता है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक विकास में सहायक है क्योंकि शारीरिक क्रियाओं में नाड़ी संस्थान, माँसपेशियों, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों एवं शारीरिक संरचना का विकास होता है। इसके द्वारा ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
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