ग्रामीण नगरीय निरंतरता को वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखिए।
ग्रामीण नगरीय निरंतरता (Rural-Urban Continuum) : ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय को अलग-अलग समुदाय मानते हुए इन दोनों में कई प्रकार से अंतर किया जाता है। औद्योगिक क्रांति से पूर्व ग्रामीण समुदाय नगरीय समुदाय से पूर्णतःभिन्न नहीं थे। किन्तु औद्योगीकरण और नगरीकरण के फलस्वरूप ग्रामीण और नगरीय समुदायों में पारस्परिक सम्पक म वृद्धि होती गयी तथा दोनों में पाए जाने वाले अन्तर भी कम होते चले गए।
ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में बढ़ती हयी अन्तक्रियाओं तथा इनमें किए जाने वाले अन्तर की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण समाज में एक नवीन अवधारणा का विकास हुआ जिसे ग्रामीणनगरीय सांतव्य या निरन्तरता के नाम से जाना गया। यह अवधारणा ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में पाया जाने वाली निरन्तरता से सम्बन्धित है। जब 20वीं शताब्दी में परिवर्तन की विभिन्न प्रक्रियाओं के फलस्वरूप ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में पाए जाने वाले अन्तर केवल सापेक्ष हो गए तो कुछ लोगों ने विचार किया कि दोनों ही प्रकार के समुदाय आज आपस में जड़े हैं तथा इनमें सांतव्य पाया जाता है न कि पृथकता। यह अवधारणा इसी वास्तविकता को व्यक्त करने के प्रयासों का परिणाम है। भारतीय समाज के सन्दर्भ में यह अवधारणा आज पूर्ण रूप से लागू होती है।