संतुलित आहार की परिभाषा महत्व तथा संतुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ? संतुलित आहार का अर्थ उस आहार से है जो शरीर की आ
संतुलित आहार की परिभाषा महत्व तथा संतुलित आहार के आयोजन में ध्यान रखने योग्य बातें लिखिए।
- संतुलित आहार क्या है ?
- 2संतुलित आहार का आयोजन करते समय आप किन बातों का ध्यान रखेंगे ?
- 'संतुलित आहार' की परिभाषा दीजिए व उसके आयोजन में ध्यान रखने योग्य बातें लिखिए।
- संतुलित आहार के किन्हीं चार लाभों को लिखिए।
- संतुलित आहार के लाभ लिखिए।
- संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारकों को स्पष्ट कीजिए।
संतुलित आहार की परिभाषा (Balanced Diet inHindi)
संतुलित आहार का अर्थ उस आहार से है जो शरीर की आवश्यकतानुसार सभी पोषक तत्वों को प्रदान करता है। शरीर को आहार की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है -
- ऊर्जा के लिए,
- शरीर के निर्माण के लिए,
- शरीर की क्रियाओं को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा सुरक्षा के लिए।
संतुलित आहार प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान नहीं होता है। एक व्यक्ति का संतुलित आहार हो सकता है, दूसरे के लिए अपर्याप्त हो तथा तीसरे के लिए आवश्यकता से अधिक हो।
संतुलित आहार का महत्व / लाभ (Importance/Benefits of Balanced Diet)
1. संतुलित आहार शरीर की ऊर्जा की आवश्यकता, शरीर की निर्माणक तत्वों की आवश्यकता तथा नियामक व सुरक्षात्मक तत्वों की आवश्यकता को पूरी करता है।
2. व्यक्ति जो भी आहार लेता है, वह पूर्ण तृप्ति की भावना देने के बाद भी आवश्यक नहीं है कि संतुलित हो ! यदि आहार में ऊर्जा के लिए आवश्यक सभी तत्व उचित मात्रा में हैं पर निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्वों को अभाव है तो वह आहार संतुलित नहीं कहलायेगा। इस प्रकार का आहार शरीर को क्रियाशील रखने में तो सहायक होगा जिसके कारण व्यक्ति कमजोरी व थकावट का अनुभव नहीं करेगा, पर निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्वों का अभाव होने के कारण व्यक्ति का शरीर हृष्ट-पुष्ट नहीं रहेगा, वृद्धि की गति कम हो जायेगी तथा शरीर रोगों का शिकार हो जायेगा। इसी प्रकार यदि भोजन में ऊर्जा उत्पन्न करने वाले भोज्य तत्वों का अभाव है तो व्यक्ति पूर्ण रूप से क्रियाशील नहीं रह पायेगा। वह उदासी, कमजोरी व थकावट महसूस करेगा तथा क्रियाशील रहने पर शरीर में उपस्थित ऊर्जा उत्पन्न करने वाले तत्वों के संग्रह में कमी हो जायेगी जिससे व्यक्ति का भार प्रभावित होता है।
3. दीर्घ जीवन अवधि व अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार विशेष महत्वपूर्ण होता है। पाश्चात्य देशवासियों को पोषण ज्ञान अधिक होने के कारण उनकी जीवन अवधि या स्वास्थ्य का स्तर अधिक अच्छा है। हमारे देश में भी पोषण के ज्ञान व स्वास्थ्य के स्तर में निरन्तर सुधार हो रहा है। शिक्षा के पाठ्यक्रम व अन्य माध्यमों से पोषण के ज्ञान में उन्नति हो रही है तथा विभिन्न पोषक युक्त भोज्य पदार्थों के महत्व का प्रचार किया जा रहा है तथा अधिक पोषक पदार्थों की उपज बढ़ायी जा रही है। शाकाहारी परिवारों को आहार में दूध व दूध से बने भोज्य पदार्थ, दालें, सेम, मटर, मूँगफली तथा सोयाबीन आदि पदार्थों को लेने के लिए अधिक उत्साहित किया जा रहा है। इन पदार्थों की उपज बढ़ाकर अधिक सस्ते दामों पर देने के प्रयास किये जा रहे हैं जिससे परिवार इनका उपयोग कर सके। मूँगफली व सोयाबीन का दूध तैयार किया जाता है जिससे अपने बच्चों को जानवर का दूध न दे पाने वाले परिवार उनके स्थान पर इस प्रकार के दूध का उपयोग कर सकें। माँसाहारी व्यक्तियों को आहार में विभिन्न शाकभाजी व फल का महत्व बताया जा रहा है। सामान्य रूप से हमारे देश में माँसाहारी व्यक्तियों का स्वास्थ्य अधिक अच्छा रहता है, क्योंकि उनकी अधिकतर पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी होती रहती है।
4. संतुलित आहार वह आहार है जो शरीर के सभी तत्वों की आवश्यकता पूर्ण करता है। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति की पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है अतः प्रत्येक का संतुलित आहार भिन्न-भिन्न होता है।
संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक
संतुलित आहार विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। यह कारक निम्नलिखित हैं-1. उम्र (Age) 2. लिंग (Sex) 3. स्वास्थ्य (Health) तथा 4. क्रियाशीलता (Activeness)
1. उम्र (Age) - उम्र से संन्तुलित आहार प्रभावित होता है। बच्चों को उनके शरीर के भार की तुलना में प्रौढ़ व्यक्तियों से अधिक भोज्य तत्वों की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व, निर्माणक तत्व व सुरक्षात्मक तत्वों की आवश्यक मात्रा सम्मिलित होती है।
2. लिंग (Sex) - स्त्रियों व पुरुषों के संतुलित आहार में अन्तर होता है। पुरुषों को पोषक तत्वों की आवश्यकता स्त्रियों से अधिक होती है। इसका कारण पुरुषों का आकार, भार, क्रियाशीलता का अधिक होना है।
3. स्वास्थ्य (Health) - व्यक्ति का स्वास्थ्य भी पोषक तत्वों की आवश्यकता को प्रभावित करता है। अस्वस्थता की स्थिति में क्रियाशीलता कम होने के कारण एक स्वस्थ्य व्यक्ति की अपेक्षा अस्वस्थ्य व्यक्ति को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, पर यदि दोनों व्यक्तियों की क्रियाशीलता समान हो तो अस्वस्थ व्यक्ति की B. M. R. अधिक होने के कारण उसे अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
4. क्रियाशीलता (Activeness) - अधिक शारीरिक क्रियाशील व्यक्ति को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। शारीरिक क्रियाशीलता के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति जितना अधिक क्रियाशील होगा, उसको ऊर्जा की उतनी अधिक आवश्यकता होगी।
यदि आहार व्यक्ति के लिए पर्याप्त नहीं होता है तो व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और व्यक्ति के शरीर में संग्रह के लिए पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इस आहार में अनाज से प्राप्त कैलोरी की मात्रा अधिक होतीं है तथा निर्माणक तत्वों जैसे प्रोटीन व खनिज तत्वों की कमी रहती है। अतः एक पुरुष के लिए निम्नलिखित भोज्य पदार्थों की मात्रा पोषण विशेषज्ञों ICMR द्वारा प्रस्तावित की गई है। इन भोज्य पदार्थों से प्राप्त तत्वों की मात्रा व्यक्ति के लिए पर्याप्त होती है।
संतुलित आहार का आयोजन करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए
1. प्रतिदिन की आहार तालिका बनाने के लिए पूरे दिन को को एक इकाई के रूप में लेना चाहिए, जैसे सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन तथा रात्रि का भोजन। सभी की आहार तालिका एक साथ बनानी चाहिए। प्रत्येक भोजन के समय में सभी पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित रहना चाहिए।
2. भोजन तालिका बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक समय के भोजन में पाँच भोज्य वर्गों में दिए गए प्रत्येक वर्ग का समावेश हो।
3. आहार में ऐसे भोज्य पदार्थों का उपयोग होना चाहिए जो कि तृप्तिदायक हों। यदि आहार में इच्छानुसार तृप्तिदायक भोज्य पदार्थ नहीं है तो व्यक्ति को भोजन रुचिकर नहीं लगेगा।
4. भोजन में कुछ ऐसे भोज्य पदार्थ जो कि छिलके या रेशे से युक्त हों अवश्य ही रखने चाहिए- सुबह के नाश्ते में दलिया, दोपहर के खाने में साबुत चना या लोबिया, रात्रि में मेथी की सब्जी।
5. प्रतिदिन आहार में एक या दो बार कच्चे फल, सब्जियाँ आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए।
6. आहार तालिका बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि व्यंजन तैयार करते समय कम से कम पौष्टिक तत्व नष्ट हों।
COMMENTS