संवेदना का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और प्रकार बताइए: ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभवों को संवेदना कहते हैं। संवेदना एक ज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रि
संवेदना का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और प्रकार बताइए
संवेदना का अर्थ: संवेदना एक ज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है इसके द्वारा किसी उपस्थित उद्दीपन का सरलतम ज्ञान होता है। व्यक्ति जब किसी उद्दीपन को देखता है, तो उसकी आँखें उत्तेजित हो जाती हैं, स्नायु-प्रवाह उत्पन्न होकर कोर्टेक्स के दृष्टि-खण्ड में जाता है और तब वो क्षेत्र उत्तेजित हो जाता है। फलतः उस व्यक्ति को उस उद्दीपन का अर्थहीन ज्ञान होता है। इसे ही संवेदना कहते हैं।
संवेदना मस्तिष्क की एक सामान्य तथा सरलतम प्रतिक्रिया है। बालक जब जन्म लेता है तो वह अपने वाह्य जगत के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानता है। धीरे-धीरे उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ कार्य करना प्रारम्भ कर देती हैं। तथा वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा अपने वातावरण का ज्ञान प्राप्त करने लगता है। ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा व्यक्ति पर होने वाले प्रभाव को संवेदना कहते हैं। संवेदना का पूर्व ज्ञान अथवा अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। क्योंकि ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त होता है, इसलिए इन्हें ज्ञान के द्वार भी कहा जाता है। संवेदना के द्वारा प्राणी को विभिन्न वस्तुओं तथा परिस्थितियों का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त होता है।
संवेदना की परिभाषा (Samvedna ki Paribhasha)
चैपलिन (Chaplin,1975) ने संवेदना की परिभाषा देते हुए कहा है, "संवेदना वह प्रारंभिक प्रक्रिया या अनुभव है जिसकी उत्पत्ति किसी उद्दीपन से ग्राहक के उत्तेजित होने पर होती है।"
सेंट्रोक के अनुसार "वातावरण में उद्दीपक उर्जा को कूट संकेतन करने तथा पहचानने की प्रक्रिया को संवेदना कहा जाता है।"
वुड एवं वुड (Wood & Wood, 1999) के अनुसार, "संवेदन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञानेन्द्रियाँ दृष्टि, श्रवण एवं अन्य संवेदी उद्दीपकों की पहचान करता है तथा उसे मस्तिष्क में अंतरित करता है।"
मौरिस (Mouris,1996) ने संवेदन को परिभाषित करते हुए कहा है, "संवेदना से तात्पर्य दृष्ट श्रवण, गंध स्वाद संतुलन, स्पर्श तथा दर्द के ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त मौलिक संवेदी आंकड़ों से होता है।"
जे.पी.दास (J.P.Das 1998) के अनुसार, "उद्दीपकों को प्राप्त करने की पहली अवस्था ही संवेदनना है।"
आइजनेक (1972) एवं उनके सहयोगियों का मानना है कि "संवेदना वह मानसिक प्रक्रम है, जो आगे विभाजन योग्य नहीं होता है, तथा इसकी तीव्रता, उत्तेजना पर निर्भर करती है और इसके गुण ज्ञानेन्द्रियों की प्रकृति पर निर्भर करते हैं ।"
संवेदना के गुण या विशेषताएं
प्रत्येक वस्तु की अपनी विशेषताएं या गुण होते हैं । जिनके बिना वह वस्तु कायम नहीं रह सकती है । संवेदना के भी कुछ गुण या विशेषताएं हैं। ई.बी.टीचेनर (E.B.Tichener 1867-1927) ने संवेदना के तीन सामान्य गुणों (General attributes) 1. गुण (quality) 2. तीव्रता (intensity) 3. सत्ताकाल या अवधि (duration) का उल्लेख किया। इसी तरह उन्होंने संवेदना के दो विशिष्ट गुणों विस्तार (extensity) तथा स्पष्टता (clearness) का उल्लेख किया। इस इकाई के अंतर्गत आप सभी संवेदना के गुणों को विस्तार से जान पाएंगे।
संवेदना के सामान्य गुण (General Attributes)
सामान्य गुण का अर्थ वे गुण या विशेषताएं होती हैं जो प्रत्येक संवेदना में पाई जाती हैं । संवेदना के पाँच प्रकार हैं-दृष्टि संवेदना, श्रवण संवेदना, स्पर्श संवेदना, गंध संवेदना तथा स्वाद संवेदना । सामान्य गुण इन सभी संवेदनाओं में पाए जाते हैं। सामान्य गुण मुख्यत: तीन प्रकार के हैं ।
1. गुण (Quality):-गुण संवेदना की मुख्य विशेषता है । संवेदना का प्रकार वस्तुत: उसके गुण पर ही निर्भर करता है। जैसे:-दृष्टि संवेदना आँख द्वारा होती है, श्रवण संवेदना कान द्वारा होती है, स्पर्श संवेदना त्वचा द्वारा होती है, आदि इसे संवेदना का सामान्य गुण कहते हैं ।
2. तीव्रता (Intensity) :- संवेदना में तीव्रता का गुण भी देखा जाता है । कुछ संवेदना अधिक तीव्र होती हैं और कुछ संवेदना कम तीव्र | 100 कैंडिल पावर का बल्ब जला दिया जाए तो उसका प्रकाश 60 कैंडिल पावर के बल्ब से तीव्र होगा । इसलिए दृष्टि संवेदना अधिक तीव्र होगी। इसी प्रकार कम ध्वनि की अपेक्षा तीव्र ध्वनि अधिक तीव्र संवेदना उत्पन्न करती है।
3. सत्ताकाल या अवधि ( Duration) :- हर संवेदना की अनुभूति अलग-अलग अवधि तक होती है । कुछ संवेदनाएं थोड़ी देर के लिए प्रभावी होती हैं । और कुछ संवेदनाएं अधिक देर तक प्रभावी रहती हैं। जैसे:-यदि किसी व्यक्ति के पैर में पिन चुभ जाए तो दर्द कम देर तक रहेगा, लेकिन यदि पैर की पूरी उँगली कट जाए तो इससे जोदर्द की संवेदना होगी, वह अधिक देर तक रहेगी ।
संवेदना के विशिष्ट गुण (Specific attributes)
संवेदना के विशिष्ट गुणों का अर्थ वे विशेषताएं हैं, जो किसी विशिष्ट संवेदना में पाई जाती । इस प्रकार की विशेषताएं या गुण सभी संवेदनाओं में नहीं पाए जाते हैं । विशिष्ट गुणों या विशेषताओं के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं।
1. विस्तार (Extensity):- संवेदनाओं में विस्तार का गुण भी पाया जाता है । ज्ञानेन्द्रियों के सीमित क्षेत्र पर प्रभाव डालने वाली संवेदनाओं का विस्तार कम व्यापक होता है । जबकि व्यापक क्षेत्र पर प्रभाव डालने वाली संवेदनाओं का विस्तार अधिक होता है। जैसे :-यदि हम एक ऊँगली पानी में डाल दें तो स्पर्श संवेदन का फैलाव एक ऊँगली तक ही होगा। यदि हम समूचे हाथ को पानी में डाल दें तो स्पर्श संवेदन का फैलाव समूचे हाथ तक होगा। इसी तरह स्वर संवेदना में भी यह गुण पाया जाता है । यदि हम एक ऊँगली पानी में डाल दें तो स्पर्श संवेदन का फैलाव एक ऊँगली तक ही होगा। लेकिन दृष्टि, श्रवण तथा गंध संवेदना में यह गुण स्पष्ट रूप से नहीं देखा जाता है, यदि हम एक ऊँगली पानी में डाल दें तो स्पर्श संवेदन का फैलाव एक ऊँगली तक ही होगा।
2. स्पष्टता (Clearness):- संवेदना में स्पष्टता का गुण भी देखा जाता है । उद्दीपन जब अधिक तीव्र होती है तो संवेदना अधिक स्पष्ट होती है, लेकिन उद्दीपन जब कम होती है। तो संवेदना भी कम तीव्र होती है। ध्यान देने के कारण भी संवेदना की स्पष्टता बढ़ती है। जैसे:- खेल के मैदान में खिलाड़ी को चोट लगने पर उसे चोट का अनुभव अधिक नहीं होता है, क्योंकि उसका ध्यान उस और नहीं होता है। जब वह खेल के मैदान से लौटता है, तो उसे चोट का अनुभव अधिक स्पष्ट हो जाता है, क्योंकि अब उसका ध्यान चोट की और चला जाता है।
3. स्थानीय चिन्ह (Local sign) :- व्यक्ति किसी भी संवेदन का मात्र अनुभव ही नहीं करता है। बल्कि उसका स्थान निर्धारण भी कर लेता है। संवेदन की इस विशेषता को जिसके आधार पर व्यक्ति उसका स्थान बता पाता है, स्थानीय चिन्ह कहलाता है। जैसे - यदि कोई व्यक्ति पीछे से हमारी पीठ पर हाथ रखता है, तो हम बिना देखे ही यह निर्धारित कर पा सकने में समर्थ हो जाते हैं कि पीठ के अमुख भाग पर हाथ रखा जा रहा है। स्पर्श संवेदन के आलावा अन्य संवेदनों के भी कुछ स्थानीय चिन्ह होते हैं। जिसके आधार पर व्यक्ति उसका स्थान निर्धारण कर पाता है।
इस प्रकार प्रमाणित हुआ कि संवेदना के कुछ गुण ऐसे हैं, जो सभी संवेदनाओं में पाए जाते हैं, और कुछ गुण ऐसे हैं जो केवल कुछ ही संवेदनाओं में देखे जाते हैं। दूसरे शब्दों में संवेदना में सामान्य गुण तथा विशिष्ट गुण दोनों पाए जाते हैं।
संवेदना के प्रकार
ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभवों को संवेदना कहते हैं। ज्ञानेन्द्रियों के आधार पर संवेदना पाँच प्रकार की होती हैं-
1. दृष्टि संवेदनाएँ - आँख द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाएं जैसे-रूप, रंग, एवं आकार।
2. ध्वनि संवेदनाएँ- कान द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाएँ, जैसे-मंद ध्वनि, उच्च ध्वनि एवं मधुर ध्वनि।
3. गंध संवेदनाएँ- नाक द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाएं, जैसे-सुगंध, दुर्गन्ध एवं विशेष सुगंध
4. स्वाद संवेदनाएं - जिव्हा द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाएँ, जैसे- खट्टा, मीठा, एवं तीखा।
5. स्पर्श संवेदनाएँ - त्वचा से प्राप्त होने वाली संवेदनाएँ, जैसे- ठंडा गर्म एवं कठोर।
6. मांस पेशी संवेदनाएँ- शरीर की मांशपेशियों में होने वाली संवेदनाएँ, जैसे- मांशपेशियों का सिकुड़ना।
7. शारीरिक संवेदनाएँ- शरीर के अन्दर होने वाली संवेदनाएँ जैसे भूख, प्यास, एवं थकान।
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