सृजनात्मकता का अर्थ परिभाषा और विशेषताएं बताइए: सृजनात्मकता शब्द अंग्रेजी के क्रियेटिविटी का हिन्दी रूपांतरण है। सृजनात्मकता अभिप्राय है रचना सम्बंधी
सृजनात्मकता का अर्थ परिभाषा और विशेषताएं बताइए
सृजनात्मकता का अर्थ: सृजनात्मकता शब्द अंग्रेजी के क्रियेटिविटी का हिन्दी रूपांतरण है। सृजनात्मकता अभिप्राय है रचना सम्बंधी योग्यता, नवीन उत्पाद की रचना। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सृजनात्मक स्थिति अन्वेषणात्मक होती है। विभिन्न विद्वानों ने सृजनात्मकता की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए उसे अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करनेका प्रयत्न किया है। कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की परिभाषाओं पर हम विचार करेंगे।
सृजनात्मकता की परिभाषा (Definitions of Creativity in Hindi)
जेम्स ड्रेवर के अनुसार “सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।”
क्रो एवं क्रो- “सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है”।
स्टेगनर एवं कार्बोस्की- “किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन सृजनात्मकता है”।
ड्रैवडाहल - “सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओं या विचारों का उत्पादन करता है जो अनिवार्य रूप से नए हो और जिन्हें वह व्यक्ति पहले से न जानता हो”।
विल्सन, गिलफोर्ड एवं क्रिस्टेनसैन- सृजनात्मक प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई नवीन (कोई नई वस्तु, विचार या पुराने तत्वों का कोई नवीन संगठन या रूप) उत्पत्ति हो। यह नवीन उत्पत्ति किसी समस्या के समाधान में सहयोगी होनी चाहिए।
स्किनर -“सृजनात्मक चिंतन का अर्थ है कि व्यक्ति की भविष्यवाणियाँ या निष्कर्ष नवीन, मौलिक, अन्वेषणात्मक तथा असाधारण हों। सृजनात्मक चिंतक वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है नए निरीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियाँ करता है और नए निष्कर्ष निकालता है"।
यदि हम इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने का प्रयास करें तो ज्ञात होगा कि किसी नई वस्तु का निर्माण या किसी नई वस्तु की खोज इन तमाम परिभाषाओं का केन्द्रीय तत्व है। अतः हम आसानी के साथ इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी नए विचार या नई वस्तु का निर्माण करता है या किसी नई वस्तु की खोज करता है। इसके अंतर्गत व्यक्ति की यह योग्यता भी सम्मिलित है जिसके द्वारा वह पूर्व-प्राप्त ज्ञान का पुनर्गठन करता है।
सृजनात्मकता की विशेषताएं (Characteristics of Creativity in hindi)
1. सृजनात्मकता सार्वभौमिक होती है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ मात्रा में सृजनात्मकता अवश्य होती है।
2. यद्यिप सृजनात्मक योग्यताएं प्रकृति प्रदत होती हैं परन्तु प्रशिक्षण या शिक्षा द्वारा उनको विकसित किया जा सकता है।
3. सृजनात्मक अभिव्यक्ति द्वारा किसी नई वस्तु को उत्पन्न किया जाता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वह वस्तु पूर्ण रूप से नई हो। पृथक रूप से दिए गए तत्वों से नए एवं ताजा मिश्रण का निर्माण करना, पहले से ज्ञात तथ्यों या सिद्वांतो का पुनर्गठन करना, किसी पूर्व-ज्ञात शैली में सुधार करना आदि उतने ही सृजनात्मक कार्य हैं जितना रसायन विज्ञान का कोई नया तत्व ढूंढना या गणित का कोई नया सूत्र खोजना। 'सृजनात्मकता में केवल इस बात के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है कि किसी ऐसी वस्तु की पुनरावृति नहीं होनी चाहिए जिसका व्यक्ति को पहले से ज्ञान हो।
4. कोई भी सृजनात्मक-अभिव्यक्ति सृजक के लिए आनंद तथा संतुष्टि का स्रोत होती है। सृजक जो देखता या अनुभव करता है उसे अपने तरीके से प्रकट करता है। सृजक अपनी रचना द्वारा ही अपने आप की अभिव्यक्ति करता है। सृजक अपने ही तरीके से वस्तुओं, व्यक्तियों तथा घटनाओं को लिखता है। अतः यह आवश्यक नहीं कि रचना प्रत्येक व्यक्ति को वही अनुभव एवं वही संतोष प्रदान करे जो रचनाकर को प्राप्त हुआ हो।
5. सृजक वह व्यक्ति है जो अपने अहं को इस प्रकार प्रकट करता हो, यह में री रचना है, यह मेरा विचार है, मैंने इस समस्या को हल किया है। अतः निर्माणात्मक क्रिया में अहं अवश्य निहित रहता है।
6. सृजनात्मक चिंतन बधा हुआ चिंतन नहीं होता इसमें अनगिनत विकल्पों तथा इच्छित कार्यप्रणाली को चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है।
7. सृजनात्मक अभिव्यक्ति का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है। वैज्ञानिक आविष्कार, कविता, कहानी, नाटक आदि लिखना नृत्य-संगीत, चित्रकला, शिल्पकला, राजनीति एवं सामाजिक सम्बन्ध आदि में से कोई भी क्षेत्र इस प्रकार की अभिव्यक्ति की आधार भूमि बन सकता है। अत: जीवन अपने समूचे रूप से रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए असंख्य अवसर प्रदान करता है।
8. जे0पी0 गिलफोर्ड, टोरैन्स, ड्रैवडाहल आदि कई विद्वानों ने सृजनात्मकता के विविध तत्वों को खोजने का प्रयास किया है। परिणामस्वरूप प्रवाहात्मक विचारधारा, मौलिकता, लचीलापन, विविधतापूर्ण चितन, आत्म-विश्वास, संवेदनशीलता, सबन्धों को देखने तथा बनाने की योग्यता, आदि सृजनात्मक प्रक्रिया में सहायक माने गए हैं।
सृजनात्मक चिन्तन, चिन्तन का एक प्रमुख प्रकार है। सृजनात्मक चिन्तन को कई अर्थों में प्रयोग किया गया है। सृजनात्मक चिन्तन का सबसे लोकप्रिय अर्थ गिलफोर्ड (1967) द्वारा बतलाया गया है। इन्होंने चिन्तन को दो भागों में बांटा है -
- अभिसारी चिन्तन (Convergent Thinking)
- अपसरण चिन्तन (Divergent Thinking)
(1) अभिसारी चिन्तन(Convergent Thinking) - अभिसारी चिन्तन में व्यक्ति दिएगए तथ्यों के आधार पर किसी सही निष्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश करता है, इस तरह के चिन्तन में व्यक्ति रुढ़िवादी तरीका अपना कर अर्थात समस्या सम्बन्धी दी गई सूचनाओं के आधार पर उसका समाधान करता है। अभिसारी चिन्तन में व्यक्ति बहुत आसानी से एक पूर्व निश्चित क्रम में चिन्तन कर लेता है।
(2) अपसरण चिन्तन (Divergent Thinking) - अपसरण चिन्तन में व्यक्ति भिन्न-भिन्न दशाओं में चिन्तन कर समस्या का समाधान करने की कोशिशकरता है। जब वह भिन्न-भिन्न दशाओं में चिन्तन करता है तो स्वभावतः वह समस्या के कई संभावित उत्तरों पर चिंतन करता है और अपनी ओर से कुछ नए एवं मूल चीजों को जोड़ने की कोशिश करता है। इस तरह के चिन्तन की एक और विशेषता यह है (जो इसे अभिसारी चिन्तन से अलग करती है) कि इसमें व्यक्ति आसानी से एक पूर्व सुनिश्चित कदमों के अनुसार चिन्तन नहीं कर पाता है (क्योकि इसमें कुछ नया एवं मूल चिन्तन करना होता है) मनोवैज्ञानिकों ने अपसरण चिन्तन को सृजनात्मक चिन्तन के तुल्य माना है
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