लिंग भेद का शारीरिक क्रियाओं एवं खेलकूद से क्या संबंध है ? स्पष्ट कीजिए शारीरिक क्रियाओं व खेलों में लिंग विभेद अधिकांश शारीरिक क्रियाओं व खेलकूद में
लिंग भेद का शारीरिक क्रियाओं एवं खेलकूद से क्या संबंध है ? स्पष्ट कीजिए
शारीरिक क्रियाओं व खेलों में लिंग विभेद अधिकांश शारीरिक क्रियाओं व खेलकूद में बालक तथा बालिकाओं दोनों को ही लिया जाता है। प्रायः प्राइमरी स्तर पर लड़कों और लड़कियों के भेद को विशेष महत्व नहीं दिया जाता, फिर भी लड़कों के साथ लड़कों की तरह और लड़कियों से लड़कियों की भाँति व्यवहार किया जाना चाहिए। किशोर अवस्था में लड़कियों के लिये सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार तथा कोमल शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है । परन्तु जब तक कठोर तकनीक को न अपनाया जाये तब तक लड़कों को शारीरिक शिक्षा की विभिन्न क्रियाएँ सिखाई ही नहीं जा सकती हैं। अतः लिंग भेद का शारीरिक क्रियाओं एवं खेलकूद से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है जिसे हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं -
शारीरिक रचना सम्बन्धी लिंग भेद
1. भार, कद और परिपक्वता बालक तथा बालिकाओं में भार, कद और परिपक्वता की दृष्टि से कई अन्तर होते हैं, जैसे
- बालिकाओं के शरीर का भार तथा कद अपनी आयु के बालकों की तुलना में कम होता है।
- जन्म के समय बालिकाएँ बालकों की तुलना में छोटी होती हैं।
- युवावस्था में बालिकाओं का भार कुछ समय के लिये बालकों की अपेक्षा अधिक हो जाता है।
- बालिकाओं में बालकों की तुलना में परिपक्वता शीघ्र आती है।
2. कंकाल तथा माँसपेशियाँ बालिकाओं की तुलना में बालकों का कंकाल तथा माँसपेशियाँ अधिक ठोस, सुडौल तथा मजबूत होती हैं। इसी कंकाल एवं माँसपेशियों के कमजोर ढाँचे के कारण बालिकाओं के शरीर के अंग और भी कोमल होते हैं। बालिकाओं का धड़ बालकों की तुलना में लम्बा व अंग छोटे होते हैं।
3. गुरुत्व केन्द्र - छोटे अवयवों के कारण बालिकाओं में शरीर का गुरुत्व केन्द्र बालकों की अपेक्षा नीचे की ओर होता है।
4. मेरुदण्ड अथवा रीढ़ की हड्डी बालिकाओं की रीढ़ की हड्डी का कटि भाग बालकों की तुलना में लम्बा तथा औरस भाग छोटा होता है।
5. श्रोणि भाग - बालकों की तुलना में बालिकाओं का श्रोणि भाग अधिक चौड़ा होता है। यह प्रकृति की देन है कि स्त्री संतान को जन्म देती है। प्रकृति ने स्त्री की श्रोणि मेखला को अधिक चौड़ा इसलिए बनाया है ताकि उसके गर्भ में सन्तान अच्छी तरह से विकसित हो सके। दौड़ने, कूदने, भागने में शरीर के निम्न अवयव अधिक कार्य करते हैं। इसके लिये श्रोणि का पुष्ट और सुडौल होना अति आवश्यक है।
6. स्कन्ध भाग की अस्थियाँ व माँसपेशियाँ बालिकाओं के स्कन्ध भाग की अस्थियाँ बालकों की तुलना में अधिक क्षीण होती हैं। बालिकाओं की अक्षर - अस्थियाँ अधिक पतली और लम्बी होती हैं. जिससे उनकी स्कन्ध शक्ति तथा भुजा शक्ति बालकों की तुलना में पीछे रह जाती है । बालिकाएँ विभिन्न क्रियाओं, जैसे फेंकने, लटकने आदि में बालकों का मुकाबला नहीं कर सकती हैं।
7. टाँगें व घुटने - बालकों की तुलना में बालिकाओं की टाँगें छोटी होती हैं तथा घुटने व कूल्हे के मध्य की अस्थियाँ बाहर की ओर अधिक उभरी हुयी होती हैं। इसके परिणामस्वरूप बालिकाओं के घुटने आपस में टकराते हैं जिस कारण उन्हें भली प्रकार से दौड़ने में कठिनाई का अनुभव होता है।
शारीरिक क्रिया सम्बन्धी लिंग भेद
1. माँसपेशीय शक्ति - बालिकाओं में माँसपेशीय शक्ति बालकों की तुलना में काफी कम होती है । इसीलिए भार प्रशिक्षण वाली शारीरिक क्रियाओं में उनकी माँसपेशियों को कोई लाभ नहीं होता है। बालिकाओं की पकड़ने की शक्ति, खींचने की शक्ति, धकेलने की शक्ति बालकों की अपेक्षा कम होती है।
2. हृदय का आकार एवं धड़कन बालकों की तुलना में बालिकाओं के हृदय का आकार छोटा होता है तथा धड़कन तेज होती है। इसी कारण बालिकाओं में रक्त वितरण क्षमता भी कम होती है।
3. मासिक धर्म तथा गर्भधारण पूर्ण स्वस्थ स्त्रियों को माह के लगभग 5 दिन मासिक धर्म होता है। गर्भधारण के समय चिकित्सक स्त्रियों को कठोर परिश्रम वाली शारीरिक क्रियाओं को करने के लिये रोक देते हैं ताकि स्त्री पर कोई विशेष प्रभाव न पड़े।
सामान्यतः बालिकाओं को संवेगात्मक रूप से बालकों की अपेक्षा कमजोर माना जाता है। बालिकाओं पर हार-जीत का अधिक और गहरा प्रभाव पड़ता है जिससे उनका स्वास्थ्य पर नियंत्रण कम होता है। अतः बालिकाओं तथा बालकों को शारीरिक क्रियाएँ एक साथ नहीं करानी चाहिए और न ही उनमें आपस में प्रतियोगिताएँ करवानी चाहिए। शरीर और समाज के ढाँचे को बिगड़ने से बचाने के लिये बालिकाओं व बालकों के लिये अलग-अलग कार्यक्रम तैयार करने चाहिए ।
व्यायाम सम्बन्धी लिंग भेद
1. दौड़ना - बालिकाओं के कूल्हे बालकों की तुलना में अधिक चौड़े होते हैं जिस कारण बालिकाओं को बालकों की अपेक्षा दौड़ने, भागने इत्यादि में कठिनाई का अनुभव होता है।
2. लटकना एवं झूलना - बालकों की अपेक्षा बालिकाओं की भुजाओं की अस्थियाँ लचीली तथा कोमल होती हैं। अतः शारीरिक शिक्षा के व्यायाम का अभ्यास करवाते समय लड़कियों के अधिक चौड़े कूल्हों के अतिरिक्त उनकी कमजोर भुजाओं का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है।
3. शारीरिक क्रियाएँ - बालकों तथा बालिकाओं की शारीरिक क्षमताओं में विशेष अन्तर होता है। अतः उनकी शारीरिक क्षमताओं के अनुरूप शारीरिक क्रियाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए। बालिकाओं के लिये चलने-फिरने वाली तथा हल्की क्रियाएँ तथा बालकों के लिये भारी क्रियाएँ लाभकारी होती हैं।
4. व्यायाम - बालिकाओं के लिये व्यायाम उतना ही आवश्यक है जितना कि बालकों के लिये। लिंग भेद व्यायाम में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं करता है। व्यायाम शारीरिक रचना व विकास के लिये अति आवश्यक है।
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