दादा मूलराज का चरित्र चित्रण - Dada Mulraj ka Charitra Chitran: दादा मूलराज परिवार के मुखिया हैं। वे सामाजिक आदर्शों, परंपरा को महत्व देने वाले हैं। द
दादा मूलराज का चरित्र चित्रण - Dada Mulraj ka Charitra Chitran
दादा मूलराज का चरित्र चित्रण: दादा मूलराज परिवार के मुखिया हैं। वे सामाजिक आदर्शों, परंपरा को महत्व देने वाले हैं। दादा मूलराज पूरी तरह संयुक्त परिवार के समर्थक हैं। वे साहसी, परिश्रमी, दूरदर्शी और अनुशासन- प्रिय भी हैं। उनके हृदय में सभी के प्रति प्रेम और श्रद्धा है। काफी समझदार और बुद्धिमान होने के कारण पूरा परिवार उन्हें सम्मान करता है। हुक्का गुड़गुड़ाते समय भी दादा मूलराज समाधान करने की बातें सोचते हैं। पूरे परिवार को एक बटवृक्ष की भाँति संभालते हैं और उसकी समस्त शाखाओं को अलग होने नहीं देते। सकारात्मक उपाय से वे अपनी बहू बेला को सही रास्ते पर ले आने में सफल होते हैं। पुत्री इन्दु की गंभीर बातों का भी उनपर प्रभाव होता है। इस प्रकार परंपरा और संस्कृति को महत्व देनेवाले दादा मूलराज एक व्यक्तिवादी प्रतिष्ठित चरित्र हैं।
दादाजी ने परिवार को एकता के सूत्र में बाँध रखा है। परिवार में भिन्न व्यक्तियों के स्वभाव में विभिन्नता होने पर भी दादा जी एक ऐसी डोर हैं जिन्होंने पूरे परिवार को एक कर उसका संचालन किया है, परिवार की डोर उन्हीं के हाथ में है। पूरा परिवार दादा जी का सम्मान करता है, उनके आदेश का पालन करता है। दादा जी गंभीरता से समस्या को सुनते हैं वे निर्णय लेना भी जानते हैं, पर प्रमुख बात है उनके बच्चे व बहुएँ उनका आदर करते हैं।
दादा जी एक दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक की भाँति बड़े सूझबूझ वाले व्यक्ति हैं, परेश के घर छोडने की बात को लेकर वह कहते हैं- “यदि खरोंच पर तत्काल दवा न लगाई जाए तो वही नासूर बन जाती है फिर लाख मरहम लगाओ घाव ठीक नहीं होता।" इससे पता चलता है कि दादा जी को परिवार के हर व्यक्ति का ध्यान है।
दादाजी बेला की मानसिकता समझ जाते हैं और परिवार के सदस्यों को ऐसा व्यवहार करने को कहते हैं जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इन्दु व घर के लोगों के परिवर्तित व्यवहार से आखिर बेला परशान हो जाती है। उसे लगता है सब उससे अपरिचितों का सा व्यवहार कर रहे हैं। वह इंदु से कहती है- तू मुझे भाभीजी' कहकर न बुलाया कर और वह आगे कहती है-” मैं तुम सबके साथ मिलकर काम करना चाहती हूँ।" दादाजी इन्दु के साथ बेला को कपड़े धोते देख बेला से कपड़े धोने के लिए मना करते हैं और इन्दु से कहते हैं कि भाभी के साथ आदर से बोला करें तो बेला फूट पड़ती है वह दादा जी से कहती है-“आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप यह चाहते हैं कि पेड़ से लगी वह डाली सुखकर मुरझा जाए ?" और सिसकने लगती है। अन्त में दादाजी के सिद्धांतों व विचारों की जीत होती है।
दादा जी के चरित्र से सिद्ध होता है कि परिवार के मुखिया को सूझबूझ वाला, साहसी, निष्ठावान, मधुरभाषी होना चाहिए। उसमें सबको एक सूत्र में पिरोने की योग्यता होनी चाहिए जो हम दादा जी के स्वभाव में पाते हैं। दादा जी एक परिपक्व बुद्धि के स्वामी हैं जो एक ऐसा उपाय ढूँढ़ निकालते हैं कि गृहकार्य में सहयोग न करने वाली स्त्री भी घर के कार्यों में स्वेच्छा से सहयोग देने लगती है। दादा जी ने कोमल स्वभाव द्वारा कठोरता को जीतने की बात सिद्ध कर दी है।
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